आज से ठीक 160 साल पहले 20 सितंबर 1857 के दिन बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेजो ने अपने कब्जे में ले लिया था, और भारत की आज़ादी की पहली जंग का आगमन हुआ था:
हमारे देश मे न जाने हर दिन कितने जंग और महान कामो का इतिहास में उल्लेख है, लेकिन आज के दिन ,साल 1857 मे दिल्ली में हुए इतिहासिक जंग को कैसे कोई भुला सकता है।
मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का जिक्र आते ही उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत की भी बात होती है, और जब वह बादशाह बनाए गए तब तक देश के काफी बड़े इलाके पर अंग्रेजों का कब्जा हो चुका था। और जंग की चिंगारिया चारो तरफ फैली थी। दरअसल, मई 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई शुरू हुई थी जिसके बाद अंग्रेजों ने मौजूदा पुरानी दिल्ली जिसे वॉल्ड सिटी भी कहते हैं, उसकी तीन महीने तक घेराबंदी की थी।
14 सितंबर को ब्रिटिश फौजों की जीत हुई थी तथा शहर पर उनका कब्जा हो गया था और 17 सितंबर को बहादुर शाह जफर को लाल किला छोड़ना पड़ा था। जबकि 20 सितंबर को उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था, और उन्हें ब्रिटिश मेजर होसॉन ने पकड़ लिया था। इसके बाद उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
आज की युवा भले ही, यह सवाल पूछती है कि आखिर अंतिम बादशाह बहादुर शाह ज़फर ने जंग में मरने के जगह आत्मसमर्पण करना क्यों चुना? लेकिन यह समझने के लिए तैयार नही की एक 82 वर्षिय बादशाह के तीन बेटों को उन्हीं के आंखों के सामने गोली मार दी गई थी, जिसके बाद और क्या विकल्प बचता है उनके सामने।
इतिहास मे लिखा है कि British Rule के खिलाफ मंगल पांडे ने ही 1857 की क्रांति (1857 Revolt) का आगाज किया था। वैसे तो मंगल पांडे सैनिक के तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) में भर्ती हुए थे, मगर जब उन्होंने देखा कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों को खूब प्रताड़ित करती है, तो उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस जंग में 3,817 लोग ब्रिटिश पक्ष से मारे गए. इनमें से 1,677 भारतीय थे, और साथ ही इस जंग में 5,000 स्वतंत्रता सेनानी बुरी तरह जख्मी हुए थे।