कई हिंसक घटनाओं बाद क्या किसानों का लम्बे समय से चला आ रहा आंदोलन अब सहानुभूति खो रहा है?

कई हिंसक घटनाओं बाद क्या किसानों का लम्बे समय से चला आ रहा आंदोलन अब सहानुभूति खो रहा है?

तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में लंबे समय से चल रहा का प्रदर्शन अब सहानुभूति खो रहा है। एक के बाद एक कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं, जो बयां करते हैं कि प्रदर्शन किस हद तक राजनीति से प्रेरित है। सिंघु बार्डर (कुंडली बार्डर) पर निहंगों ने जो किया, उसके बाद तो प्रदर्शन करने वालों को समाज से माफी मांगनी चाहिए थी, लेकिन बुराई का दायित्व कोई नहीं उठाता। यह कहना है दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुनील चौधरी का।

मीडिया हाउस के साथ-साथ किसान संगठनों से जुड़े लोग ये जानने को उत्सुक हो गए कि क्या सचमुच यूपी गेट से किसानों का टेंट उखड़ने लगा है। हर कोई एक दूसरे से ये चीजें जानने को इच्छुक नजर आने लगा फोन की घंटियां घनघनाने लगी
यूपी गेट पर बीते 11 माह से किसानों का आंदोलन चल रहा है। बृहस्पतिवार को दोपहर अचानक से यहां अफरातफरी मच गई। तमाम मीडिया हाउसों का जमावड़ा लग गया। इस तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया कि यूपी गेट से किसान अपना टेंट उखाड़ रहे हैं और अब बार्डर खाली हो जाएगा। कुछ ही देर में ये अफवाह वायरल हो गई। मीडिया हाउस के साथ-साथ किसान संगठनों से जुड़े लोग ये जानने को उत्सुक हो गए कि क्या सचमुच यूपी गेट से किसानों का टेंट उखड़ने लगा है। हर कोई एक दूसरे से ये चीजें जानने को इच्छुक नजर आने लगा, फोन की घंटियां घनघनाने लगी, सभी यह जानना चाह रहे थे कि यूपी गेट पर आखिर हो क्या रहा है।
दूसरी ओर यूपी गेट पर बढ़ी हलचल के बाद दिल्ली पुलिस की भी सक्रियता बढ़ गई। बेरिकेड के दूसरी ओर खड़ी दिल्ली पुलिस के जवान अपने हाथों में मोबाइल लिए वीडियो बनाते रहे। कुछ देर तक काफी गहमागहमी रही उसके बाद सब शांत हो गया। कुछ ही देर में यूपी गेट पर तमाम मीडिया हाउसों का जमावड़ा हो गया, राकेश टिकैत से बेरिकेड हटाए जाने का सवाल पूछा जाने लगा। राकेश टिकैत बोलते रहे बैरिकेडिंग पुलिस ने लगा रखी है। पुलिस हटा ले. पुलिस हटा लेगी तो ट्रैफिक निकल जाएगा। हमारा लगा नहीं हैै। गाड़ी निकल सकती है। पुलिस ने रोक रखा है, हम ये दिखाना चाह रहे है कि किसने रोक रखा है। सुप्रीम कोर्ट में भी हमने यही कहा था।
सच्चाई तो ये है कि यूपी गेट पर जहां मीडिया को बैठने के लिए टेंट लगाया गया था, उसी के कुछ हिस्से को हटा दिया गया और उसके पीछे लगी बेरिकेड को दिखाया जाता रहा। मीडिया से बातचीत के दौरान राकेश टिकैत ने कहा कि यूपी गेट पर हमने अपने हिस्से का बेरिकेट हटा दिया है, अब यदि दिल्ली पुलिस हटा ले तो ट्रैफिक निकल जाएगा। इस सवाल पर कि दिल्ली पुलिस ने इसे किसानों के चलते बंद किया है? तब टिकैत बोले कि सड़क चलने के लिए है, किसी को इस पर चलने से रोकने के लिए नहीं। उन्होंने फिर दोहराया कि हमने नहीं रोक रखा है, यहां से ट्रैफिक को गुजरने से सरकार ने रोक रखा है। जब उनसे पूछा गया कि यदि दिल्ली की तरफ से रास्ता खोल दिया जाए तो आप लोग कहां जाएगें? के सवाल पर उन्होंने इसका साफ जवाब नहीं दिया, बोले सड़क परजाएंगे मगर कहां के सवाल पर फिर चुप्पी साध गए।
प्रदर्शन ने जनता की सुविधाओं को असुविधाओं में तब्दील में कर दिया है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन के बीच हो रहा अपराध सरकार को तो बदनाम कर ही रहा है, साथ ही असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद कर रहा है।चुनाव प्रदर्शन का एक आधार हो सकता है। यह प्रदर्शन कृषि हितैषी न होकर सरकार विरोधी है। कितना लंबा चलेगा, यह निर्धारित नहीं है। सरकार की तरफ से 11 वार्ता के बाद भी इसे लगातार राजनीतिक समर्थन मिल रहा है। नेताओं ने कृषकों की आड़ ले रखी है।राजनीतिक दलों की भूमिका और बाहरी फं¨डग कई मौकों पर सामने आ चुकी है। सरकार के निवेदन ठुकराए जा रहे हैं। निश्चित तौर पर इस तरह की घटनाएं वैश्विक स्तर पर सरकार को बदनाम करती हैं।
लाल किले पर हुए उपद्रव के बाद ही यह प्रदर्शन खत्म होना चाहिए था, लेकिन जिद और राजनीति ने ऐसा नहीं होने दिया पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव के चलते इस प्रदर्शन को हवा दी जा रही है प्रदर्शनकारी कुंडली बार्डर की बर्बरता के बाद समाज से माफी मांगने के बजाए मुंह फेरे बैठे हैं
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By: Poonam Sharma
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