1994 में, मैं नया नया बलरामपुर में सरावगी लायंस आई हॉस्पिटल में में तैनात हुआ । पता चला कि डा मसूद साहब जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ओल्ड ब्वॉय हैं यानी मेरे सीनियर,वो यूपी सरकार में शिक्षा मंत्री हैं और कांशीराम जी के बहुत करीब हैं।
लखनऊ एक बार जाना हुआ तो मेरे एक अलीगढ़ के दोस्त ने कहा की चलो डा मसूद से मिलकर आते हैं ।वहां पहुंचने पर देखा तो एक बड़ी भीड़ डा साहब के बंगले के बाहर खड़ी थी ।हम ने अपना कार्ड भेजा तो थोड़ी देर बाद ही हम बुला लिए गए ।अपने ड्राइंग रूम में ले गए चाय का ऑर्डर दिया और कुछ खाने पीने का सामान भी आया ।बड़े खुश हुए कुछ अलीगढ़ के बारे में बाते हुई ।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पुराने दिनों को याद करते हुए ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता डॉक्टर अब्दुल मन्नान ने बताया.
फिर पूछा कैसे आना हुआ ।
मैं ने कहा कोई काम नहीं था बस मन किया आप से मिल लूं ।बोले सुबह से शाम हो गई पहले आदमी हो जो बिना काम के सिर्फ मिलने के लिए आए हो तुम्हारे साथ बैठ के थोड़ा रिलेक्स हुआ ।
बातों बातों में मैं ने पूछा की मसूद भाई पहली बार ऐसा लग रहा है की कांशीराम जी के पार्टी में हम भागीदार हुए हैं ताबेदार नहीं ।उन्होंने हामी भरी और हम मुतमांइन होकर घर आ गए । हमे लगा ,हम लोगो के छात्र जीवन का, भागीदारी का सपना पूरा हो गया ।
डॉक्टर अब्दुल मन्नान बताते हैं उर्दू शिक्षक की भर्ती में डा मसूद ने शिक्षा मंत्री रहते हुए नुमाया किरदार अदा किया था । जिसकी क्रेडिट लोग मुलायम सिंह यादव को देते हैं ।
खैर वो सपना जो भागीदारी का हमने देखा था, वो कुछ दिन बाद ही चकनाचूर हो गया जब मुलायम और कांशीराम आपस में लड़े और एक शिक्षा मंत्री डा मसूद का सामान सड़को पर फेंक दिया गया उसे बर्खास्त कर दिया गया।
डॉक्टर अब्दुल मन्नान ने बताया डा मसूद की खता ये थी कि वो मायावती का हुकुम ना मानकर कांशीराम को अपना नेता मानते थे ।उस वक्त मायावती कांशीराम के बहुत करीब थी और अपना दब दबा यूपी में कायम करना चाहती थीं ।
कांशीराम ने मुलायम पर आरोप लगाया की वो मसूद को भड़का रहे थे ।शायद ये आरोप सही भी था ।लेकिन डा मसूद जैसे कार्यकर्ता को बेइज्जत करना ये कांशीराम और मायावती का सामंतवाद था जो कि मुसलमान को गुलाम की हैसियत से देखते थे ।
डॉक्टर अब्दुल मन्नान कहते हैं जिस मुलायम को आप बहादुर समझते हो उन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए डा मसूद को बर्खास्त कर दिया ।आखिर में वो सरकार बची भी नहीं ।कांशीराम और मायावती बाद में बीजेपी के गोद में बैठकर यूपी की सरकार चलाने लगे ।
डा मसूद ये समझ चुके थे कि ये शूद्र और पिछड़े भी उसी तरह के सामंतवादी है जैसे कि सवर्ण हुआ करते थे । उन्होंने कौम को भागीदारी दिलाने के लिए और ताबेदारी से नेजात के लिए जी जान लगा दिया ।
डॉक्टर मन्नान डॉक्टर मसूद के बारे में सोशल मीडिया पर लिखते हुए कहा 17 अक्टूबर 1995 को सर सय्यद डे पर अपनी पार्टी बना ली जिसको हम लोग निलोपा के नाम से जानते हैं । डा मसूद ने कौम को भागीदारी दिलाने के लिए तेरह , चौदह सालो तक जी जान से मेहनत किया लेकिन समाजवादी और बहुजन के दल्ले उन पर वही इल्जाम लगाते रहे जो आज ओवैसी साहब और अयुब साहब पर लगा रहे हैं।
मैं कभी नीलोपा का मेंबर तो नहीं रहा क्योंकि उस वक्त मैं राजनीति में नहीं था लेकिन निलोपा के कार्यकर्ताओं ने जितना चंदा मुझ से मांगा मैं उनको उतना चंदा देता रहा ।
जब डॉक्टर मसूद को कांग्रेस और सपा से समझौता करना पड़ा.
आखिर ये कौम जब नहीं जागी तो मसूद भाई फिर मजबूर हो गए ,टूट गए और मुलायम की पार्टी की सदस्यता ले ली । मुलायम ने टांडा से टिकट देने वादा किया और नहीं दिया । कांग्रेस में भी गए मगर मसूद भाई जैसे आदमी को कौन बर्दाश्त करता ।फिर अजीत सिंह की पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष बने मगर फिर टांडा से टिकट न देकर जयंत और अखिलेश ने उन्हे अपमानित किया ।
एम आई एम नेता डॉक्टर अब्दुल मन्नान सोशल मीडिया पर लिखते हुए जनता को आगाह किया.
आज मसूद भाई को फिर वही बात याद आई कि हमे चाहिए कि हम अपना वोट अपने आप को दे और किसी जयंत या अखिलेश पर भरोसा ना करें।
ज़रा सोंचो आप ,अपने लोगों पर बिजपी का एजेंट होने का इल्जाम कब तक लगाओगे और किस किस पर लगाओगे.
डा मासूद साहब, बीजेपी का एजेंट
डा अयुब साहब, बीजेपी का एजेंट
ओवैसी साहब, बीजेपी का एजेंट
शायद अल्लाह तुम्हे इसी बात की सजा दे रहा है कि तुम अखिलेश के साथ पिछले कई सालों से बीजेपी के हाथों जलील वा ख्वार हो रहे हो ।
अखिलेश के नेतृत्व में 2014 हारे, 2017 हारे, 2019 हारे ,2022 हारे ।
आखिर तेजस्वी और अखिलेश जैसे ठगो के हाथ कब तक ठगे जावोगे।
ज़रा सोंचो जब अपनी लड़ाई खुद लड़नी है तो अपनी कयादत क्यों नहीं ।