दादरी लिंचींग के दौरान सरकार किसकी थी?

दादरी में एक परिवार बसा हुआ था जिसके मुखिया का नाम अखलाक था | 28 सितम्बर 2015 को कुछ शरारती तत्वों ने मंदिर के लाउडस्पीकर से यह अफवाह फैलाई की अखलाक के फ्रीज में बीफ है फिर क्या था यह खबर जंगल के आग की तरह फेल गई इसके परिणाम स्वरूप कुछ फिरंज एलिमेंट एकत्रित हुए और अखलाक के साथ एक खूनी खेल खेला जिसे आजकल मॉब लांचिंग कहते हैं|

आज लगभग सात वर्ष हो गए इस खूनी घटना को लेकिन अखलाक के परिजनों को अब तक न्याय नहीं मिला है। अखलाक के छोटा भाई मौहम्मद जान बताते हैं कि 7 वर्षों से ईद नहीं मनाया है बकरीद के अवसर में फिर ज़ख्म हरा हो जाता है।

फॉरेंसिंक रिपोर्ट से भी यह सिद्ध हो गया है मटन था बीफ नहीं/राज्य सरकार मूकदर्शक बनी हुई थी कानून व्यवस्था ठीक करने से ज़्यादा शाख बचाने में लगी थी देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के सामने एक ख़ास राजनेतीक दल को पराजित करने का टारगेट रख दिया जाता है |

रवि सिसोदिया दादरी के आरोपी को तिरंगे में लपेटकर दफनाना तिरंगे का अपमान है या नहीं यह भी तय नहीं हो पाया|

अब सबसे बड़ा सवाल यह है भारत का सबसे बड़ा

अल्पसंख्यक समुदाय कोई किसी विशेष राजनीतिक पार्टी को क्यों हराए और किसी को क्यों जीताए।

क्या उसको यह अधिकार नहीं कि अपने मुद्दे पर वोट करें?

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मोहम्मद साजिद अली

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