अलीगढ़, 16 जूनः उर्दू साहित्य के प्रख्यात आलोचक एवं भाषाविद प्रोफेसर गोपी चंद नारंग के निधन पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बिरादरी ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
एएमयू कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि प्रोफेसर नारंग एक जीवित किंवदंती थे और उनका एएमयू के साथ घनिष्ठ और लंबा संबंध था।वे यूनिवर्सिटी कोर्ट के सदस्य और विजिटर नॉमिनी रहे और उन्हें एएमयू द्वारा मानद डी. लिट. डिग्री की उपाधि से सम्मानित किया गया। उर्दू साहित्य की विभिन्न शैलियों में प्रोफेसर नारंग के मौलिक कार्य के आधार पर उन्हें पिछले साल विश्वविद्यालय द्वारा सर सैयद राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
कुलपति ने कहा कि प्रोफेसर नारंग उर्दू भाषा और भारतीय मूल्यों के प्रबल समर्थक थे। उनका निधन मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है क्योंकि उनके साथ मी मधुर व्यक्तिगत संबंध थे। मैं डा मनोरमा नारंग और यूएसए में रहने वाले उनके दो बेटों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं।
प्रसिद्ध फ़ारसी विद्वान और फारसी अध्ययन संसथान की मानद निदेशक, प्रोफेसर आजरमी दुख्त सफवी ने कहा कि प्रोफेसर नारंग फारसी साहित्य से भी अच्छी तरह से वाकिफ थे और उन्होंने अपने लेखन में हाफिज, रूमी, खुसरो, बेदिल और अन्य प्रमुख फारसी लेखकों को संदर्भित किया, जिन्होंने उर्दू साहित्य में एक नई राह उत्पन्न की।
प्रसिद्ध भाषाविद् और डीन, कला संकाय, प्रोफेसर इम्तियाज हसनैन ने कहा कि प्रोफेसर नारंग ने अपने लेखन में शैली, फोनेटिक्स और अन्य भाषाई साधनों को त्रुटिहीन रूप से प्रयोग किया। उन्होंने भाषा विज्ञानं में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उनके निधन से जो रिक्ति उत्पन्न हुई है उसका भर पाना मुश्किल है।
प्रख्यात लेखक और साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2019 विजेता, प्रोफेसर एम शाफे किदवई ने कहा कि प्रोफेसर नारंग ने अपनी आलोचनात्मक योग्यता और नवीनतम सैद्धांतिक संवाद में पूर्ण रूप से पारंगत होने के कारण उर्दू भाषा में विद्वेता को जीवंत कर दिया। उनके अच्छे लेखन का उर्दू साहित्य में कोई समानांतर नहीं है।
उर्दू विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर मोहम्मद अली जौहर ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और प्रोफेसर नारंग को उर्दू भाषा के प्रचारक के रूप में सबसे शक्तिशाली आवाज बताया जिनका भारतीय साहित्य में योगदान अतुल्य है।
अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर आसिम सिद्दीकी ने कहा कि प्रोफेसर नारंग ने आलोचनात्मक कौशल के साथ कथा और नए आलोचनात्मक सिद्धांतों पर विस्तार से लिखा। अंग्रेजी में उनका लेखन समान रूप से प्रमुख और हितकर है। अंग्रेजी में ग़ालिब, मीर और उर्दू ग़ज़ल पर उनकी पुस्तकों ने गैर-उर्दू भाषी पाठकों में नई रुचि पैदा की।
हिंदी विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर आशिक अली ने कहा कि प्रोफेसर नारंग उर्दू साहित्य तक ही सीमित नहीं थे क्योंकि उन्होंने साहित्य में भारतीय सिद्धांतों की उपयोगिता एवं प्रचलन के लिए अथक प्रयास किया। उनकी किताबें हिंदी में प्रकाशित हुई हैं और उन्हें व्यापक प्रशंसा भी मिली।