अलीगढ़ 21 मार्चः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की सर सैयद अकादमी के तत्वाधान में ‘सर सैयद, आधुनिक जीवनी के प्रणेता’ विषय पर एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें देश-विदेश के विद्वानों ने सर सैयद अहमद खान की कृतियों पर चर्चा करते हुए खुतबात-ए-अहमदिया के भेद स्पष्ट किए। इस अवसर पर सर सैयद के भाषणों का सातवां खंड, जिसमें खुतबात-ए-अहमदिया भी शामिल है, का विमोचन भी किया गया।
कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सर सैयद का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक शिक्षाविद, वकील, पुरातत्ववेत्ता, पत्रकार और समाज सुधारक थे। खुतबात-ए-अहमदिया में शामिल उनके व्याख्यान जीवनी पर उनके शोध और आधुनिक और प्राचीन स्रोतों का उपयोग करने की उनकी क्षमता को दर्शाते हैं।
प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि सर सैयद एंडोमेंट फण्ड ने सर सैयद अकादमी और विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के लिए सर सैयद और अलीगढ़ आंदोलन पर इस तरह के शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करना आसान बना दिया है। उन्होंने सर सैयद अकादमी को एक विशिष्ट विषय पर सम्मेलन आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्तित्व और उनकी सेवाओं का उसके युग के संदर्भ में विश्लेषण किया जाना चाहिए, तभी हम उसके महत्व को समझ सकते हैं और विषय के साथ न्याय कर सकते हैं।
मुख्य अतिथि एनसीपीयूएल के निदेशक प्रोफेसर अकील अहमद ने अपने संबोधन में कहा कि सर सैयद सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने आधुनिक उर्दू गद्य की शुरुआत की और आधुनिक जीवनी की नींव रखी। खुतबात-ए-अहमदिया को आधुनिक शोध का मॉडल भी कहा जाता है।
राइस यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर क्रेग कंसीडीन ने अपने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि इस्लाम के पैगंबर ने धार्मिक सहिष्णुता, सद्भाव और भाईचारा सिखाया और जीवन भर इसे अपनाया। मदीना समझौता का उल्लेख करते हुए, उन्होंने हजरत मुहम्मद मुस्तफा के मदीना में अन्य जनजातियों और धर्मों के लोगों के साथ व्यवहार का उल्लेख किया और कहा कि इस्लाम के पैगंबर को पश्चिम में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है या उन्हे गलत समझा गया है।
अपने अंग्रेजी कार्य, ‘द ह्यूमैनिटी ऑफ मुहम्मदः ए क्रिश्चियन व्यू’ का उल्लेख करते हुए, प्रोफेसर कंसीडीन ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम नस्लवाद के सख्त खिलाफ थे और उनके द्वारा प्रस्तावित राज्य में विभिन्न धर्मों और विश्वासों को मानने वाले लोग एक साथ रह सकते हैं।
अमेरिकी प्रोफेसर ने इस्लाम के पैगंबर और ईसाइयों के बीच संबंधों के बारे में भी बात की। उन्होंने सम्मेलन के विषय की सराहना करते हुए सर सैयद अकादमी का आभार व्यक्त किया।
ईरान के प्रोफेसर रजा शाकरी ने प्रारंभिक टिप्पणी में कहा कि मानव विज्ञान के इतिहास, भारतीय सभ्यता के इतिहास और सामाजिक सुधार में सर सैयद की सेवाएं अनुकरणीय हैं। वे बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने लंदन जाकर इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ विलियम म्योर की किताब का जवाब लिखा, जिसके लिए उन्होंने अपनी बेशकीमती संपत्ति बेच दी। उन्होंने कहा कि ष्सर सैयद की व्यावहारिक उपलब्धियों ने उन्हें क्रांतिकारी शख्सियतों की श्रेणी में ला खड़ा किया।
प्रो. अख्तरउल वासे ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि सर सैयद ने उर्दू में पहली जीवनी पुस्तक ‘खुत्बात-ए-अहमदिया’ लिखी, जो इस्लाम पर ओरिएंटलिस्टों की आपत्तियों के संबंध में इस्लामी दुनिया का पहला औपचारिक वस्तुनिष्ठ जवाब है। सर सैयद ने यह पुस्तक लंदन में लिखी और वहीं से प्रकाशित की। प्रोफेसर अर्नोल्ड के अनुसार, इस पुस्तक को प्राथमिकता का दर्जा प्राप्त है कि इसने यूरोप में इस्लाम के प्रति आपत्तियों का जवाब दिया, जो कि ईसाई धर्म की हृदयभूमि है।
उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में 12 अध्याय हैं और इसकी शैली तर्कपूर्ण नहीं बल्कि समझौतापरक है। आपत्तियों के उत्तर भी इसमें तर्कयुक्त होते हैं। प्रो. अख्तर उल वासे ने कहा कि हालाँकि ‘खुतबात-ए-अहमदिया’ विलियम म्योर की किताब के जवाब में लिखी गयी थी लेकिन सर सैयद ने इसमें कई नई और उपयोगी जानकारी एकत्र कर दी है, जिसका उपयोग बाद के जीवनीकारों ने किया है।
केए निजामी कुरानिक स्टडीज सेंटर के मानद् निदेशक प्रो एआर किदवई ने अपना मत व्यक्त किया कि सर सैयद ने खुत्बात-ए-अहमदिया के माध्यम से उर्दू में जीवनी का एक नया मानक स्थापित किया, जिसे बाद में अल्लामा शिबली नौमानी, सैयद सुलेमान नदवी आदि ने अपनाया। उनहोंने कहा कि खुतबात-ए-अहमदिया एक विद्वतापूर्ण और विश्लेषणात्मक कार्य है जिसमें तुलनात्मक धर्मों के पहलू भी शामिल हैं। यह यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम का तुलनात्मक अध्ययन प्रदान करता है और इंटरफेथ संवाद के महत्व पर प्रकाश डालता है।
धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रो. तौकीर आलम ने अपने भाषण में कहा कि सर सैयद ने खुतबात-ए-अहमदिया में तर्कों के आलोक में विलियम म्योर के आरोपों का उपयुक्त उत्तर दिया है। इस पुस्तक को लिखते समय, सर सैयद अंगरेज शासकों से प्रभावित नहीं थे और परिणामों को न देखते हुए अपने दिल की आवाज का अनुसरण कर रहे थे। सर सैयद का यह उच्च साहस ईष्र्या के योग्य और विचार और अनुसरण के योग्य है।
इससे पूर्व, सर सैयद अकादमी के निदेशक प्रोफेसर अली मोहम्मद नकवी ने अतिथियों और उपस्थितजनों का स्वागत किया और विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सर सैयद की सबसे बड़ी महानता यह है कि उन्होंने मुस्लिम कौम को मध्य युग की मानसिक से बाहर निकाला और आधुनिक मानसिक युग से परिचित कराया। आधुनिक शिक्षा, मुसलमानों में वैज्ञानिक चिंतन का अभ्यास, आधुनिक राजनीतिक युग, आधुनिक उर्दू साहित्य, आधुनिक गद्य, आधुनिक आलोचना, आधुनिक व्याख्या, आधुनिक भाषाशास्त्र और आधुनिक जीवनी सर सैयद के साथ शुरू हुई।
सर सैयद अकादमी के उप निदेशक डॉ मुहम्मद शाहिद ने अपने संबोधन में कहा कि सर सैयद अकादमी ने सर सैयद, उनके सहयोगियों और समकालीनों की शैक्षणिक सेवाओं पर चालीस मोनोग्राफ सहित कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। कुल्लियात-ए-सर सैयद शृंखला में सर सैयद के लेख प्रकाशित हुए हैं, जिसके सातवें खंड में खुतबात-ए-अहमदिया शामिल है और सर सैयद अकादमी के महत्वपूर्ण कार्यों में इनका संरक्षण शामिल है। इसके लिए हम कुलपति के आभारी हैं।
कार्यक्रम का संचालन सैयद हुसैन हैदर ने किया। सम्मेलन में बड़ी संख्या में विद्वान और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।