अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वन्यजीव विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर, डा नाजनीन जेहरा ने कैटमॉस्फियर फाउंडेशन के सहयोग से अफ्रीका मैसिव द्वारा ‘बहुतायत, निवास स्थान, भोजन की आदतें, होम रेंज, मूवमेंट पैटर्न और गिर परिदृश्य, गुजरात, भारत में तेंदुआ-मानव सेघर्ष एक व्यवहार्य माडल की आवश्यकता‘ विषय पर आयोजित 5-दिवसीय ऑनलाइन आभासी सम्मेलन में एक तीन व्याख्यान प्रस्तुत किय।
डा नाजनीन ने तेंदुओं की पूरी रेंज में उनके संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि वैश्विक तेंदुओं की आबादी में तेजी से गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि बड़ी बिल्लियों की यह प्रजाति सबसे अधिक अनुकूलनीय है और कहीं भी जा सकती है, और तेंदुए के जीवित रहने के लिए बड़े खतरे आमतौर पर 63 देशों में व्याप्त हैं।
उन्होंने कहा कि एक बड़ी रेंज और व्यापक मूवमेंट पैटर्न के साथ, तेंदुए कहीं भी रह सकते हैं और पनप सकते हैं, चाहे संरक्षित क्षेत्रों में या गांवों या कृषि-खेतों के करीब।