आज (22 अक्टूबर) को उनका जन्मदिन है, जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ सीख लेने वाली बातें…
अशफ़ाक उल्ला खां एक बहुत अच्छे कवि थे. अपने उपनाम वारसी और हसरत से वह शायरी और गजलें लिखते थे. लेकिन वह हिंदी और अंग्रेजी में भी लिखते थे. अपने अंतिम दिनों में उन्होंने कुछ बहुत प्रभावी पंक्तियां लिखीं, जो उनके बाद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए मार्गदर्शक साबित हुईं.
धर्म से बढ़कर देश
चौरी चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो देश के बहुत से युवा को लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है। उन युवाओं में अशफाक भी शामिल थे। देश को आजाद कराने के उद्देश्य से वह बिस्मिल के करीब आए और आर्य समाज के सक्रिय सदस्य बन गए। बिस्मिल आर्य समाज के सक्रिय सदस्य थे और समर्पित हिंदू थे लेकिन वह हर धर्म को बराबर सम्मान देते थे। दूसरी ओर पक्के मुस्लिम होने के बावजूद अशफाकुल्ला का स्वभाव भी ऐसा ही थी। इससे दोनों गहरे दोस्त बन गए।
किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए, ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना; मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं, जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।
जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा? बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊंगा, फिर आऊंगा,फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आज़ाद कराऊंगा”. जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ, मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं; हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.
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By: Poonam Sharma .