एक यूनिवर्सिटी ही तो बनाई थी जिसका ख़ामियाज़ा आज़म खान का परिवार भुगत रहा है,योगी सरकार ने मोहम्मद अली ज़ोहर यूनिवर्सिटी की 1400 बीघे जमीन अपने नाम कर लिया है,यूनिवर्सिटी कभी भी गिराई जा सकती है यूनिवर्सिटी का नामोनिशां मिटाया जा सकता है क्योंकि अब ज़ोहर ट्रस्ट के पास जमीन बाक़ी ना रही,जिस 1400 बीघा जमीन को योगी सरकार ने एडीएम से सरकारी घोषित कराया उसी में यूनिवर्सिटी खड़ी हुई है।
देशभर में जितनी भी यूनिवर्सिटी है सभी को जमीने सरकार देती है यूनिवर्सिटीज को सरकार की तरफ़ से जमीन देने की शुरुआत कांग्रेस सरकार में हुई थी,आज़म खान ने मुस्लिमों को तालीम जोड़ने के लिए स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मोहम्मद अली ज़ोहर के नाम पर यूनिवर्सिटी की नींव रखी तो मुस्लिमों को तालीम हासिल कराने का भी सपना देखा और यूनिवर्सिटी के लिए चंदा मांग मांगकर कार्य को पूरा कराया,मरहूम सांसद मुनव्वर सलीम और आज़म खान की मेहनत ने यूनिवर्सिटी को मुकम्मल किया,2014 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे Aziz Qureshi साहब ने यूनिवर्सिटी के बिल पर हस्ताक्षर कर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया तो उन्हें सरकारों ने डराया धमकाया था,उन्होंने कहा कि फिर भी जौहर यूनिवर्सिटी के बिल पर हस्ताक्षर कर उन्होंने नाइंसाफी और जुल्म के खिलाफ काम किया।
दिसंबर 2014 में अज़ीज़ कुरैशी साहब ने जौहर यूनिवर्सिटी में याद-ए-जौहर कार्यक्रम में कहा था कि “जब उत्तर प्रदेश का राज्यपाल रहते हुए मैंने जौहर यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक किरदार के बिल पर हस्ताक्षर किया तो मुझे डराया और धमकाया गया, लेकिन मैं डरने वाला नहीं हूं,मुझे पद और ओहदे का लालच नहीं है,सच्चाई का झंडा हमेशा बुलंद रहेगा, जौहर यूनिवर्सिटी का विरोध करने वालों का मुंह काला होगा, वह कटघरे में खड़े होंगे, यूनिवर्सिटी देखकर मैं हैरत में हूं, कैबिनेट मंत्री आजम खान को तारीख कभी भी भुला नहीं सकेगी।
कार्यक्रम में मौजूद कैबिनेट मंत्री आजम खान ने कहा था कि अजीज कुरैशी साहब ने यूनिवर्सिटी के बिल पर हस्ताक्षर कर हम पर बहुत बड़ा अहसान किया है जिसे चुका नहीं पाएंगे, यह नस्लों पर अहसान है,तीन राज्यपाल बदल गए,उनके दिल को हमारे आंसू भी नहीं पिघला सके,हम उनके पास जाकर रोते थे,राज्यपाल कहते थे कि यह तालीमी इदारा नहीं बल्कि साजिश है,बिल गुमनामी के खयाल में चला गया था,जिस पर कभी हस्ताक्षर नहीं होते,हमने दुआ मांगी कि अजीज कुरैशी साहब को चार्ज मिल जाए और हमारी दुआ कुबूल हुई”
गौरतलब है कि पूर्व राज्यपाल राजेश्वर और बीएल जोशी ने इस यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा के विधेयक को इसलिए रोक रखा था क्योंकि इसमें संविधान के अनुसार, अल्पसंख्यक दर्जे के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी लिए जाने का प्रावधान नहीं था,इस विधेयक को लेकर कई वर्षों से आजम खान और राजभवन के बीच रिश्ते तल्ख बने हुए थे,उत्तर प्रदेश के राज्यपाल अज़ीज़ कुरैशी साहब बने तो यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्ज़ा प्राप्त हो गया।
राज्य में सरकार बदल गई क़िस्मत से योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने,2017 से अब तक यूपी विकास की राह पर तो नही चला लेकिन राजनितिक विरोधियों को फ़र्ज़ी केसों में जेलों में डाल दिया गया उनकी संपत्ति कुर्क की गई खासकर मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है मुस्लिमों को तालीम कराने के लिए आज़म साहब ने यूनिवर्सिटी बनाई तो आंखों में चुभ गई, कभी लाइब्रेरी को लूट लिया गया तो कभी उर्दू गेट को तोड़ दिया गया, यूनिवर्सिटी के फाउंडर और उनके परिवार को पाज़ेब, चोरी, बकरी चोरी, किताब चोरी समेत सैकड़ो फ़र्ज़ी केस लगा जेल में डाल दिया और तो और आज़म खान की मरहूम माँ के ख़िलाफ़ भी योगी आदित्यनाथ सरकार ने एफआईआर दर्ज कर दी,हिंदुस्तान के इतिहास में संवैधानिक पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति पर सरकारों ने इतना ज़ुल्म नही किया जितना सांसद आज़म खान व उनके परिवार पर हो रहा है, एक यूनिवर्सिटी बनाने की इतनी बड़ी सज़ा तो क्या 10 यूनिवर्सिटी बनाने की सज़ा सज़ा-ए-मौत होगी?
देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने 2018 में इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में बोलते हुए कहा था कि मैं मुस्लिम युवाओं के एक हाथ मे कंप्यूटर तो दूसरे हाथ मे क़ुरआन देखना चाहता हूँ, मोदी के इस बयान के फ़ौरन बाद NIA ने यूपी से दर्जनों युवाओं को गिरफ्तार कर आतंकवाद का ठप्पा लगा जेल में डाल दिया, हाल ही में जामिया के क़ई छात्रों पर दिल्ली दंगे का आरोप लगा UAPA दर्ज कर जेल में डाल दिया, और अब मौलाना मोहम्मद अली ज़ोहर यूनिवर्सिटी को सरकार की तरफ़ से मिली ज़मीन को सरकार ने कब्ज़ा कर अपने नाम इसलिए कर लिया है क्योंकि वह यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त था और उस यूनिवर्सिटी का फाउंडर सांसद आज़म खान जो कि मुस्लिम है इसलिए जेल की सलाखों में परिवार सहित ज़िन्दगी बशर कर रहा है,अब सीधा सीधा लिखा जा सकता है कि सरकार का निशाना मुस्लिम है जो कि ना तो मुस्लिमों के हाथ मे कंप्यूटर देखना चाहती है ना क़लम और ना क़ुरआन,बल्कि उनके हाथ मे रिक्शो के हैंडल और पंक्चर की दुकान,सब्जी और फलों के रेहड़ी देखना चाहती है, अब मुस्लिमों को शायर वाहिद अंसारी के इस शेर पर मंथन करना चाहिए।
पहले तालीम से तुम मोड़ दिये जाओगे,
फिऱ किसी जुर्म से तुम जोड़ दिये जाओगे।
हाथ से हाथ से हाथ की जंजीर बनाकर निकलो,
वरना धागे की तरह तोड़ दिये जाओगे।।
संवैधानिक पद पर रहते हुए आज़म खान 16 महीने से जेल में है,ना उनके मामलों में अदालतें तेज़ी से सुनवाई कर रही है ना ही दलीलें सुन रही,12 मई को मैंने आज़म साहब के अस्पताल में भर्ती होने के दौरान CJI को लैटर भेज सुनवाई तेजी से करने का अनुरोध किया लेकिन कोई सुनवाई नही,आज़म खान का कसूर यह है कि उन्होंने रामपुर से नवाबों की राजनीति को उखाड़ दिया?उनका कसूर यह है कि मुस्लिम बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए यूनिवर्सिटी की नींव रखी?क्या उनका कसूर यह है कि वह संसद में तेज़ तर्रार व बेबाक़ी से बोलते है?या सपा की नींव रखी यह कसूर है?
#ReleaseAzamKhan
इस पोस्ट को एक्टिविस्ट और जर्नलिस्ट जाकिर अली त्यागी ने लिखा है।