“गोरक्षा का कार्य केवल एक धार्मिक पंथ का नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का कार्य देश में रहने वाले हर नागरिक का है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट
बुधवार को हाईकोर्ट का एक बहुत अहम फैसला आया जिसमे कहा गया की भारत में गाय को माता मानते हैं।
यह हिन्दुओ की आस्था का विषय है। आस्था पर चोट से देश कमजोर होता है।
कोर्ट ने कहा कि गो मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता।
कोर्ट ने टिपण्णी में ये भी कहा की जब गाय का कल्याण होगा तो देश का भी कल्याण होगा।
कोर्ट ने ये भी कहा की भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहाँ विभिन्न धर्मो के लोग रहते हैं, जो अलग-अलग तरीके से प्रार्थना करते हैं लेकिन उनकी सोच देश के लिए समान है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने ये फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार को अब सदन में एक बिल लाना चाहिए. गाय को भी मूल अधिकार मिलने चाहिए. समय आ गया है कि इसपर एक बिल पास किया जाए।
2015 से इस मामले ने ज्यादा टूल पकड़ा था जब गाय को लेकर दंगे तक शुरू हो गए थे, लोगो ने सहिष्णु और असहिष्णु तक देश को बता दिया था, तमाम तरह की खबरों से अख़बार, टीवी पटे पड़े होते थे।
यहाँ तक की याहू ने पर्सन ऑफ़ थे ईयर गाय को घोषित किया था। तब मुझे लगा था की गाय बहुत महत्वपूर्ण है इसे हमारी संस्कृति में बहुत सम्मान दिया गया है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इसे संस्कृति से जोड़कर अपना फैसला सुनाया, उन्होंने इसे पुराण, रामायण, उपनिषद सभी तरह के हिन्दू ग्रंथो से जोड़कर बताया की गाय हमारी संस्कृति है।
ये गर्व की बात मानी जाती रही है गाय को अब पूरी दुनिया ने अपनाया है इसके महत्त्व को समझा है, अब तो दुनिया भर से लोग इसके साथ समय बिताते हैं ताकि खुद को रिलैक्स महसूस कर सके. इसके महत्व को हमने अपने ग्रंथो के माध्यम से जाना लेकिन इसके कई साइंटिफिक उपयोगिता भी है कहते हैं कि देसी गाय की गर्दन का उभरा हुआ भाग शिवलिंग है जबकि वास्तविकता यह है कि इसमें सूर्य केतु नाम की नाड़ी होती है जो सूर्य की ऊष्मा को अपनी ओर आकर्षित करती है, इससे गाय के दूध में शक्ती आती है।
श्याम वर्ण की गाय का दूध वात सम्बन्धी रोगो का निवारण भी किया जाता है। गाय को पर्यावरण की सरक्षिका भी कहा जाता है वैज्ञानिक भी मानते है की गाय ही एकमात्र ऐसी प्राणी है जो न केवल ऑक्सीजन ग्रहसँ करती है बल्कि छोड़ती भी है।
और न जाने कितने फायदे हैं गाय के, बात अब ये उठती है की इतनी सारी उपयोगिता होते हुए भी हमने गाय को अभी तक ये दर्जा क्यों नहीं दिया था, हमें अपनी परंपरा को जीवित रखने के लिए हमेशा से कुछ नियम कानून तो बनाना ही चाहिए आखिर ये हमारे अस्तित्व का सवाल है, हमारी संस्कृति हमारी परंपरा की बात है इसे इतने हलके हम नहीं ले सकते तमाम तरह की बातो को जोड़कर गाय की उपयोगिता को देखते हुए हाई कोर्ट का फैसला आया है।
अब कहीं न कही अब लोगो को ये बात समझने की जरुरत हैं कि वो किस तरह से इस फैसले का स्वागत करते हैं किसी विशेष धर्म समुदाय से इसका लेना देना नहीं होना चाहिए बल्कि हम सभी देशवासियो को मिलकर इस फैसले का आदर करना चाहिए आखिर वतन से हम है।
और देश के लिए ये फैसला अच्छा है तो सभी को इसे अपनाना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं की जो फैसला जस्टिस शेखर कुमार यादव ने दिया है बहुत ही सोच विचारकर दिया होगा।
अब बारी हमारी है कि हम गाय पर अब और न लड़े। बहुत हमने इसपर लड़ाई कर ली ये सोचना जरुरी है की अगर कोई चीज़ हमारे हित में है तो उसे स्वीकारना भी हमारी ही जिम्मेदारी है।
हाई कोर्ट की कुछ बाते भी हमारे लिए जानना जरुरी है जैसे ;
– मौलिक अधिकार केवल गोमांस खाने वालो का नहीं है, बल्कि जो गाय की पूजा करते हैं और आर्थिक रूप से गायो पर निर्भर है, उनके पास भी हैं।
-जीवन का अधिकार मारने के अधिकार से ऊपर है और गोमांस खाने के अधिकार को कभी भी मौलिक अधिकार नहीं मन जा सकता।
-गाय बूढी होने और बीमार होने पर भी उपयोगी है उसके मूत्र और गोबर से कृषि और दवा के लिए आवश्यक है।
-ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दू ही गायो के महत्व को समझ चुके हैं, मुसलमानो ने भी गाय को भारत की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना है।
पांच मुस्लिम शासको ने जैसे बाबर ने गाय की क़ुरबानी पर प्रतिबन्ध लगाया था इसके दस्तावेज भी मौजूद हैं 1921 में ख्वाजा हसन निज़ामी देहलवी की किताब तर्क ए गाऊं में इसका जिक्र है गायो के वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। हुमायु ने भी पिता की बात मानते हुए ऐसा ही किया, अकबर, जहांगीर, नवाब हैदर इन तमाम तरह के मुस्लिम शासको ने गाय के वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जो की अविश्वनीय कदम था।
इस रिपोर्ट को लिखने वाली पूनम शर्मा।