एएसआई द्वारा नमाज पाबंदी पर क़ुतुब मीनार की मस्जिद के इमाम मौलाना शेर मोहम्मद ने क्या कहा?
कुतुब मीनार की मस्जिद में नमाज पढ़ाने वाले मौलाना साहब ने बताया कि 10 सितंबर 1976 से यानी 46 साल से वह यहां नमाज पढ़ा रहे।
एएसआई ने कहा आपको बता दें कुतुबमीनार स्मारक है पूजा स्थल नहीं।
कुतुब मीनार की मस्जिद के इमाम साहब ने कहा 13 मई 2022 को यहां जुमे की नमाज से पाबंदी लगा दी गई है।
उन्होंने कहा यह फैसला बजरंग दल और आरएसएस के लोगों की वजह से एएसआई ने यह फैसला लिया है।
इमाम साहब ने कहा कि जब ऐसा एएसआई नमाज बंद करने की वजह पूछी तो जवाब में मिला कि ऊपर से आर्डर है और आप वहां से परमिशन लेकर आएं तो मौलाना साहब ने कहा हम तो यहां 46 साल से नमाज पढ़ रहे हैं और पढ़ा रहे हैं कभी कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन फिर भी अधिकारी नहीं माने और उस दिन जुमे की भी नमाज पढ़ने नहीं दी।
कुतुब मीनार के मस्जिद के इमाम ने कहा कि मुझसे पहले भी लोग नमाज पढ़ाया करते थे और यह मस्जिद वकफ बोर्ड में रजिस्टर्ड है इसका पूरा एक खाखा तैयार है।
आपको बता दें एक पक्ष ने आरोप लगाया है कि यह 27 मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के पुख्ता सबूत मिले हैं और यहां पहले मंदिर था और यह विष्णु स्तंभ है इसलिए हमें पूजा करने की इजाजत दी जाए मामला साकेत कोर्ट में है जो 9 जून को फैसला आएगा।
मौलाना शेर मोहम्मद ने बताया परिसर में जो मस्जिद है कुवत उल इस्लाम और मुगल मस्जिद। उन्होंने कहा कुवत उल इस्लाम मस्जिद में कोई मूर्ति नहीं है और उसके सामने के बरांडा में लोग उसके नक्काशी को मूर्ति बता रहे हैं और मुगल मस्जिद 300 या 400 साल बाद बनी है, और उसी में नमाज हो रही थी और आज तक किसी ने मना नहीं किया था।
कुतुब मीनार के इमाम मौलाना शेर मोहम्मद कहते हैं कि जब मैं 10 सितंबर 1976 को वर्क बोर्ड का पेपर लेकर आया था तो वहां मौजूद सी ओ थे कबीर सिंह और उनको पर्चा दिखाया तो उन्होंने कहा आप यहां नमाज पढ़ें कोई दिक्कत नहीं है।
मौलाना शेर मोहम्मद कहते हैं मेरे पास सारे पेपर रखे हुए जब मैं आया था तब बिजली के लिए कहा गया था और उसका भी पेपर है और मस्जिद से रिलेटेड दिल्ली वक्फ बोर्ड के पेपर के अलावा 1995 और 1998 का भी पेपर है जिससे यह साबित होता है पहले कोई दिक्कत नहीं आई जो अब आ रही है।
एएसआई ने हिंदू पक्ष को जवाब में कहा यह भारत का महत्व स्मारक है। और यहां कोई पूजा स्थल नहीं है।
जब बाबरी मस्जिद पर विवाह था उस दौर में आर एस एस के बड़े-बड़े नेता कहते थे कि बस मुसलमान इस इसके लिए दिल बड़ा कर ले देश का बहुसंख्यक उसको गले लगाकर रखेगा। पर कहानी यहीं नहीं रुकी 9 नवंबर 2019 को बाबरी पर फैसला आने के बाद से लगातार विशेष संगठन लोगों की हिम्मत और बढ़ गई है और लगातार मुस्लिम समारोह और पुराने मस्जिदों पर पीआईएल दाखिल कर रहे हैं जोकि 1991 व्हाट्सएप एक्ट के खिलाफ भी है जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि 1947 के दौरान जो धर्म स्थल जिस स्थिति में थी उसी स्थिति में रहेगी।
हाला की नौबत यहां तक आ गई है कि विशेष संगठन अब ज्ञानवापी और मथुरा ईदगाह पर तो पीआईएल कर ही रहा है भारत का धरोहर कहे जाने वाला ताज महल और कुतुब मीनार के के खिलाफ पीआईएल हो रही है हालांकि कोर्ट ने कई बार फटकार लगाया है लेकिन ज्ञानवापी और मथुरा ईदगाह पर भी फटकार लगाया था लेकिन अंत में पीआईएल एक्सेप्ट कर ली गई।
विशेष संगठन को लगता है कि भारत के हर पुराने धरोहर के खिलाफ पीआईएल करके विवादित बना दो आज नहीं तो कल फैसला आ जाएगा और जिसकी उम्मीद बाबरी फैसले के तौर पर रखते हैं और इसमें कुछ मीडिया कथित तौर पर बड़े चैनल कहे जाने वाले जिस तरीके से फैक्ट के बजाय एक तरफा प्रोपेगेंडा करते हैं उस पर सरकार और कोर्ट दोनों की चुप्पी कई सवाल खड़े कर देते हैं।
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