लखनऊ 27 अगस्त 2022. रिहाई मंच ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने को न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताया.
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि हमारे देश के संविधान ने न्यायपालिका को सर्वोच्च मान कर उसे विधायिका और कार्यपालिका द्वारा लिये गए फ़ैसलों की स्क्रूटिनी करने का अधिकार दे रखा है.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने संविधान प्रदत्त अधिकार का प्रयोग न करके अपनी गरिमा को आघात पहुंचाया है. 27 जनवरी 2007 को एक भाषण तत्कालीन गोरखपुर सांसद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया. योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चले कि नहीं ये फैसला निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक आते-आते तकरीबन सोलह साल लग गए. क्या योगी आदित्यनाथ अगर सांसद नहीं रहते एक सामान्य व्यक्ति रहते तो भी न्यायालय का यही रवैया होता. योगी आदित्यनाथ जिन्होंने एक मीडिया चैनल पर सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है की वह भाषण उन्होंने दिया ऐसे में इस याचिका का खारिज होना आरोपी के पक्ष में खड़ा होना है. अगर वो भाषण विवादित नहीं है तो देश-विदेश की मीडिया में योगी आदित्यनाथ की हेट स्पीच के रूप में क्यों प्रचारित है.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा दायर करने वाले परवेज परवाज़ को एक केस में फसा दिया गया है जिसमें वो आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. जबकि जिस बलात्कार के केस में परवेज परवाज को सजा हुई है पुलिस ने विवेचना में क्लीन चिट दे दी थी. बाद में फिर गलत कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करके परवेज को फसाया गया. उन्होंने कहा कि परवेज पर सीडी से छेड़छाड़ का आरोप है जबकि जब एफआईआर दर्ज की गई उस वक़्त जो सीडी दी गई उसके टूटने की बात कही जा रही वहीं बाद में एक और सीडी की बात कही गई. जब सीडी एक बार दी गई तो दूसरी सीडी कहां से आ गई. उन्होंने कहा कि मामला सीधा सा था कि योगी आदित्यनाथ ने एक भाषण दिया जिसकी जांच कर कार्रवाई की मांग की गई. आखिर में इतनी छोटी सी बात के लिए इतनी लंबी न्यायिक प्रक्रिया इसलिए चली जिससे आरोपी को राहत मिल सके.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में अभद्र भाषा का आरोप लगाने वाले एक मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है.
अपीलकर्ता परवेज परवाज़ ने आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ ने 27 जनवरी, 2007 को गोरखपुर में आयोजित एक बैठक में “हिंदू युवा वाहिनी” कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुस्लिम विरोधी अभद्र टिप्पणी की थी. उन्होंने 3 मई, 2017 को यूपी सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को चुनौती दी थी. आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा चलाने और मामले में दायर क्लोजर रिपोर्ट को भी मंजूरी देने से इनकार कर दिया. उन्होंने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने 22 फरवरी, 2018 को याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की थी.