फर्न यूनिवर्सिटी, हेगन, जर्मनी में सांस्कृतिक और सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन और गैर-यूरोपीय इतिहास के प्रोफेसर, डॉ जुर्गन जी नागेल ने जर्मन विद्वानों और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ ज्ञान के आदान-प्रदान और शैक्षिक सहयोग के अवसर ढूंढ़ने के उद्देश्य से एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अलीगढ मसुलिम विश्वविद्यालय का दौरा किया और विदेशी भाषा विभाग और इतिहास विभाग के शिक्षकों और छात्रों के साथ संवाद किया।
जर्मन भाषा का अध्ययन करने वाले एएमयू के एक पूर्व छात्र के सहयोग से आयोजित इस दौरे में 28 जर्मन प्रोफेसरों और छात्रों के प्रतिनिधिमंडल ने ऐतिहासिक महत्व के सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों में अनुसंधान के अवसरों पर चर्चा की।
विदेशी भाषा विभाग में एक विशेष संवाद सत्र में प्रो नागेल ने कहा कि चूंकि भारत-जर्मनी संबंधों में विकास की काफी संभावनाएं हैं और दोनों देशों में शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र शीर्ष स्तरीय संस्थानों के साथ संपन्न हो रहा है, यह उचित समय है कि हम एक साथ एएमयू-जर्मन संबंधों की खोई हुई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए काम करें।
उन्होंने एएमयू और जर्मन विश्वविद्यालयों के बीच अकादमिक आदान-प्रदान के लिए भी सुझाव दिए।
प्रो जावेद इकबाल (डीन, अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संकाय और अध्यक्ष, विदेशी भाषा विभाग) ने कहा कि यह आदान प्रदान वास्तव में संयुक्त सहयोगी गतिविधियों के माध्यम से यहाँ के शिक्षकों और जर्मन भाषा के एएमयू छात्रों के लिए एक बड़ा अवसर होगा।
उन्होंने कहा कि यह कदम जर्मन विश्वविद्यालयों के साथ एएमयू के जुड़ाव का विस्तार करेगा और विश्व स्तर पर सक्षम छात्रों की संस्कृति को विकसित करेगा।
डॉ शिव प्रकाश यादव ने उद्घाटन और समापन भाषण दिया, जबकि सैयद सलमान अब्बास ने सत्र की अध्यक्षता की।
एएमयू विदेशी भाषा के छात्रों, मोहम्मद इंतिजार और हमाद ने सर सैयद के जीवन और संदेश और ऐतिहासिक एएमयू-जर्मनी संबंधों पर बात की।
इस बीच, इतिहास विभाग में आयोजित एक इंटरैक्टिव सत्र में, प्रोफेसर गुलफिशां खान (अध्यक्ष, इतिहास विभाग और समन्वयक, एडवांस्ड स्टडी सेंटर) ने एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के जर्मन विद्वानों के साथ संबंधों के बारे में बात की।
उन्होंने कहा कि 19वीं शताब्दी के एक प्रमुख प्राच्यविद् और दिल्ली कॉलेज के प्रधानाचार्य, एलॉयस स्प्रेंगर (1813-93), जिन्हें बाद में बर्न विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया, ने भारत और जर्मनी के बीच बौद्धिक संबंध और आदान-प्रदान स्थापित करने में सर सैयद की काफी मदद की थी।
गुलफिशां ने स्प्रेंगर के प्रकाशित कार्यों के बारे में भी बताया और कहा कि उन्होंने भारत को कई दुर्लभ अरबी, फारसी और उर्दू पांडुलिपियों दी हैं जो बर्लिन राज्य पुस्तकालय में संग्रहीत हैं।
सर सैयद के जीवन और विचारधारा के अध्ययन में अग्रणी जर्मन विद्वान क्रिश्चियन डब्ल्यू ट्राल के योगदान पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ट्राल की किताबें जैसे ‘सैयद अहमद खानः मुस्लिम धर्मशास्त्र की एक पुनर्व्याख्या’ और ‘सैय्यद अहमद खान के अनुसार सुसमाचार, 1817-1898’ ने सर सैयद के आदर्शों को सुदृढ़ किया है।
उन्होंने एएमयू के इतिहास और सर सैयद के जीवन पर एक प्रस्तुति भी दी और सर सैयद और कई ऐतिहासिक एएमयू इमारतों और संरचनाओं जैसे बाब-ए-सैयद, स्ट्रेची हॉल, विश्वविद्यालय मस्जिद, मौलाना आजाद पुस्तकालय, मेस्टन स्विमिंग पूल, अब्दुल्ला गर्ल्स कॉलेज, कैनेडी हॉल ऑडिटोरियम, मूसा डकरी म्यूजियम, मोइनुद्दीन पिक्चर आर्ट गैलरी और स्टूडेंट्स यूनियन हॉल की दुर्लभ तस्वीरें प्रदर्शित कीं।
सर सैयद अकादमी के उप निदेशक, डॉ मोहम्मद शाहिद ने प्रोफेसर नागेल को क्रिश्चियन डब्ल्यू ट्राल कि पुस्तकें भेंट कीं।
शिक्षकों ने प्रतिनिधियों के लिए विश्वविद्यालय के दौरे की भी व्यवस्था की और उन्हें इतिहास विभाग के पुरातत्व अनुभाग, सर सैयद हाउस, स्ट्रैची हॉल, विक्टोरिया गेट, विश्वविद्यालय मस्जिद और मूसा डकरी संग्रहालय सहित अन्य स्थानों का भ्रमण कराया।
डॉ मोहम्मद नजरूल बारी ने स्वागत भाषण दिया और डा. सना अजीज ने धन्यवाद ज्ञापित किया।