जो मुगलों से नहीं लड़ सके,वो मुसलमानों से लड़ रहे हैं।

मुगल और मुसलमान दोनों उतने ही अलग है

जितनी आज बिजेपी और देश कि जनता!

मुगल शासक या अन्य शासक अपने अपने क्षेत्रों में शासन चलाते थे। दोनों शासकों में युद्ध होते रहते थे।

कहीं मुग़ल बादशाह अन्य शासकों को हराकर उस क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ देते तो कहीं अन्य शासक, मुगलों को हराकर अपना झंडा गाड़ देते।
यह उन दो शासकों की लड़ाई थी। जो जितता वही अपनी हुकूमत चलाता।

लड़ाई दो राजाओं की बीच होती थी, ना कि दो धर्मो के बीच।
युद्ध दो राजाओं, सैनिकों, और राज्यों के बीच होता था।
हिन्दू मुस्लिम कुछ नहीं था। जो आज लोगों ने बना दिया।
दोनों शासकों के सेनाओं में हर धर्म के सैनिक होते थे। और वो अपने राजा के लिए लड़ते थे ना कि धर्म के लिए।

मुगल अगर इतने ही मुसलमानों पर मेहरबान होते तो आज जो हालात मुसलमानों के हो रहे हैं, वो ना होते। वो 200 सालों में जैसा चाहते, कर सकते थे।
मुगल शासक इतने ही कटर होते तो 200 सालों में पूरे हिन्दुस्तान को मुस्लिम देश बना जाते। यहां के मुस्लिम को हर तरह से सक्षम कर जाते।

फिर तो हर जगह मुस्लिम हर पक्ष से मजबूत होता।
फिर आज यूं मुगलों के वंशज भीख मांगते ना फिरते।
मगर वो कुंठित इरादे से नहीं आए थे। वो अपने राजकाज में अच्छे शासन की परिभाषा सीखा कर गए।

वो लूटने नहीं लूटाने आए थे
वो सीखने और सीखाने आए थे
मस्जिद भले ही मुगलों बनाई हो, मगर आज उन मस्जिदों में जो मुसलमान नमाजी हैं वो कोई और बाहर से नहीं आए, वो मुगलों के साथ नहीं आए, वो सब इसी हिन्दुस्तान की मिट्टी से पैदा हुए हैं।

बड़ी हैरत की बात है जो मुगलों के सताए हुए हैं, जिन्होंने मुगलों की गुलामी सहर्ष स्वीकार कर ली, आज वो उस समय की फड़ास मुसलमानों पर निकाल रहें हैं।

सबसे बड़ा सवाल मुसलमानों पर अत्याचार क्यों?

Writer: Farouq Sulemani

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