देश में बढ़ते हिंसक घटनाओ पर क्या एक नए कानून की आवश्यकता है ?

मानव एक सामाजिक प्राणी है और समूह में रहना हमेशा से मानव की एक प्रमुख विशेषता रही है जो उसे सुरक्षा का एहसास कराती है।

लेकिन आज जिस तरह से समूह एक उन्मादी भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं उससे हमारे भीतर सुरक्षा कम बल्कि डर की भावना बैठती जा रही है।

भीड़ अपने लिये एक अलग किस्म के तंत्र का निर्माण कर रही है, जिसे आसान भाषा में हम भीड़तंत्र भी कह सकते हैं। भीड़ के हाथों लगातार हो रही हत्याएँ देश में चिंता का विषय बनता जा रहा है।

आए दिन कोई-ना-कोई व्यक्ति हिंसक भीड़ का शिकार हो रहा है। देश में बढ़ते हिंसक घटनाओ पर सरकार के क्या क्या प्रावधान है या किस तरह से इसपर आगे की कारवाही होने की आशा की जाती हैं.

CAB And NRC In Hindi: CAA (Citizenship Amendment Act) या नागिरकता संशोधन कानून पर देशभर में बवाल मचा था। इसका विरोध करने वाले इसे गैर-संवैधानिक बताते हैं जबकि सरकार का कहना है कि इसका कोई भी प्रावधान संविधान के किसी भी हिस्से की अवहेलना नहीं करता है।

वहीं, इस कानून के जरिए धर्म के आधार पर भेदभाव के आरोपों पर सरकार का कहना है कि इसका किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं है।

चलिए सबसे पहले इन दोनों के बीच अंतर समझ लेते हैं क्यूंकि कई बार हम मुद्दा तो सुन लेते हैं लेकिन मुद्दा है क्या बता ही नहीं पाते

NRC Bill ;एनआरसी बिल का मुख्य मकसद देश में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों को उनके देश वापस भेजना है। बता दें कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में अवैध प्रवासियों को लेकर कड़े कानून पहले से ही लागू हैं.

एनआरसी या नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल का मकसद अवैध रूप से भारत में बसे घुसपैठियों को बाहर निकालना है। बता दें कि एनआरसी (NRC Bill In Hhindi) अभी केवल असम में ही पूरा हुआ है। जबकि देश के गृह मंत्री अमित शाह ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी को पूरे भारत में लागू किया जाएगा।

क्या है CAA?

इस नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बुद्ध धर्मावलंबियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।

CAA को लेकर क्यों प्रदर्शन हो रहे है थे ?

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दो तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं। पहला प्रदर्शन नॉर्थ ईस्ट में हो रहा है जो इस बात को लेकर है कि इस ऐक्ट को लागू करने से असम में बाहर के लोग आकर बसेंगे जिससे उनकी संस्कृति को खतरा है। वहीं नॉर्थ ईस्ट को छोड़ भारत के शेष हिस्से में इस बात को लेकर प्रदर्शन हो रहा है कि यह गैर-संवैधानिक है। प्रदर्शनकारियों के बीच अफवाह फैली है कि इस कानून से उनकी भारतीय नागरिकता छिन सकती है।

क्या है भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा (Mob Lynching)?

जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर बिना अपराध किये भी उसी समय सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा (Mob Lynching) कहते हैं। इस तरह भीड़ द्वारा की गई हिंसा में हमेशा एक संदेश निहित होता है जो भीड़ द्वारा समाज में प्रेषित किया जाता है। इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता।

क्यों होती हैं ये घटनाएँ?

बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई होती है जो कि हमेशा एक-दूसरे को संशय की दृष्टि से देखने के लिये उकसाती है और मौका मिलने पर वे एक-दूसरे से बदला लेने के लिये भीड़ का इस्तेमाल करते हैं।

समाज में व्याप्त गुस्सा भी इसमें एक उत्प्रेरक का कार्य करता है, चाहे वह गुस्सा किसी भी रूप में हो; यह गुस्सा शासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था या सुरक्षा को लेकर भी हो सकता है जो कि अंततः उन्मादी भीड़ के रूप में बाहर आता है।

राजनीति भी हिंसात्मक भीड़ का प्रमुख कारण होती है, कभी वोट बैंक के लिये प्रायोजित हिंसा या कभी धर्म के नाम पर करवाई गई हिंसा, राजनीतिक दलों को राजनीति के लिये एक विस्तृत पृष्ठभूमि प्रदान करती है।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश

देश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या यानी मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिये हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है। न्यायालय ने संसद से मॉब लिंचिंग के खिलाफ नया और सख्त कानून बनाने को कहा है।

न्यायालय ने इस संबंध में कहा, ‘कोई भी नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकता है। लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इज़ाज़त नहीं दी जा सकती।’ साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकारों को सख्त आदेश दिया कि वे संविधान के मुताबिक काम करें। न्यायालय ने सरकार को इन बढ़ती घटनाओं की अनदेखी नहीं करने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने आगे कहा कि राज्यों को शांति बनाए रखने की ज़रूरत है। इन घटनाओं के लिये निवारक, उपचारात्मक और दंडनीय उपायों को निर्धारित किया गया है। इससे जुड़े अन्य सुझावों में नोडल अधिकारी की नियुक्ति, फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रायल और पुलिस अधीक्षक स्तर के जाँच अधिकारियों की नियुक्ति जैसे कदम भी शामिल हैं।

इस दिशा-निर्देश में सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषण, संदेश तथा वीडियो इत्यादि को लेकर भी निगरानी करने का निर्देश सरकार को दिया है। जबकि इससे पूर्व एक मामले में न्यायालय ने सरकार पर सर्विलांस स्टेट बनने की टिप्पणी की थी।

केंद्र और राज्यों को निर्देश देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बहुलवादी पहलू की रक्षा की जानी चाहिये। न्यायालय ने राज्य सरकारों को लिंचिंग रोकने से संबंधित दिशा-निर्देश को चार हफ्ते में लागू करने का आदेश दिया है।

अब बात ये आती है की इस तरह के प्रोटेस्ट आये दिन होते रहते है और तो और बात जब मोब लॉन्चिंग की हो तो ये काफी गंभीर होजाता है की कैसे हम कानून अपने हाथ में ले लेते हैं.

अब बात कर लेते हैं इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना की जो की मोब लॉन्चिंग के नाम से आजकल जाना जाता है.

मोब लॉन्चिंग की घटनाये आजकल सामान्य सी होगयी हैं आये दिन ऐसी खबरे आती है जो इंसानियत को शर्मसार करती हैं। हो सकता है पहले भी ऐसा होता रहा होगा लेकिन सोशल मीडिया के आजाने से ये आम नागरिक से छुपाया नहीं जा सकता।

कई बार शक के आधार पर हम किसी बेगुनाह की हत्या कर देते हैं और कानून अपने हाथ में लेलेते है जो की ऐसा नहीं होना चाहिए.कानून को सख्त करने की जरुरत है.

क्यों है नए कानून की आवश्यकता?

देश में कानून तो पर्याप्त हैं, लेकिन उन कानूनों का ईमानदारीपूर्वक पालन न करने से अपराधों में वृद्धि देखी गई है।

कानूनों का क्रियान्वयन उचित ढंग से नहीं किया जा रहा है। कानून का क्रियान्वयन करने की ज़िम्मेदारी व्यवस्थापिका की होती है लेकिन कार्यकारी स्तर पर ही लचरता के कारण इसमें अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त होता है।

राजनैतिक हस्तक्षेप और अपराधियों को महिमामंडित करने की वर्तमान प्रवृत्ति के कारण इस तरह की घटनाओं में शामिल लोगों का मनोबल बढ़ता है, अतः नए कानून के आने से इन घटनाओं में शामिल लोगों के मन में कानून के डर को स्थापित किया जा सकेगा।

कानूनों को लागू करने वाले तंत्र में अपेक्षित समर्पण और व्यावसायिक दक्षता की कमी है। पहले अपराधियों को इस हद तक लाचार कर दिया जाता था की वे दोबारा अपराध के लिये साहस नहीं जुटा पाते थे लेकिन अब प्रशासनिक महकमे में यह कूवत नहीं दिखती।

वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों और समय के हिसाब से भी विद्यमान कानूनों में संशोधन या नए कानूनों की आवश्यकता दिखती है।

अब बात आती है जब देश में इस तरह के प्रोटेस्ट और मोब लॉन्चिंग की घटनाये होती रहती है तो सरकार ऐसा कानून क्यों नहीं बनाती जिस से हिंसक घटनाएं धमे, प्रोटेस्ट किस लिए हो रहा है और लोगो की मांग क्या है ये सरकार का काम है उसे समझना अगर प्रोटेस्ट बिना किसी आधार के किया जा रहा है तो बेशक सर्कार को इसके लिए भी कोई कानून बनाना चाहिए ताकि देश में कई भी हिंसा विकराल रूप न ले सके जैसा की लखीमपुर खीरी केस में हुआ।

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By; Poonam Sharma .

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