ये जंग इस्लामी तारीख में एक फैसलाकुन फतह के तौर पर गुजरी है जो इलाही मुदाख्लत से मंसूब है और दूसरे सोर्सेस के मुताबिक मुहम्मद ﷺ की हिकमते-अमली की ताकत से।
बद्र की जंग में तकरीबन 14 मुसलमान शहीद हुए थे, जबकि इस जंग में कुल मुसलमानों की तादाद 313 है। इस जंग में मुसलमानों ने मक्का के तक़रीबन 1000 कुरैश के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इस जंग में कुरैश का सरदार अबू जहल मारा गया था।
अरब रस्मों-रिवाज के मुताबिक, कुरैश के तीन सरदारों शाइबा, उत्बा और वलीद बिन उत्बा ने तीन मुस्लिम जनरलों को जंग का चैलेंज दिया और इस चैलेंज को ओबैदा, हमजा और अली रजि. ने कबूल कर लिया। कुरैश सरदार बहादुरी से लड़े और शिकस्त खा कर मारे गए।
इस्लामिक सोर्सेस के मुताबिक, पैग़म्बरे इस्लाम ﷺ ने जंगी कैदियों को 4000 दिरहम की अदायगी की एवज में आजाद कर दिया। इसके आलावा सभी कैदियों से हुस्नो-सुलूक के साथ पेश आया गया, व उनको खाने को खाना व पहनने के लिए कपड़े दिए गए। बहुत से पढ़े-लिखे कैदियों से यह भी कहा गया व 10 मुसलमान लड़कों को पढ़ना-लिखना सिखाएं यही उनका तआउन होगा।
इस शिकस्त के बाद क़ुरैशे मक्का का गुरुर व ताकत खत्म हो गयी जबकि दूसरी ओर पैग़म्बरे इस्लाम ﷺ व मुसलमनों का असरो-रुसूख़ मदीना के बाहर भी बढ़ने लगा.