सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud)ने कहा कि जातिगत भेदभाव (Caste discrimination) खत्म होना चाहिए। जबकि उच्च जाति की व्यावसायिक उपलब्धियां उनकी जाति की पहचान को दूर लिए पर्याप्त हैं।
लेकिन यह निम्न जाति के व्यक्ति के लिए कभी भी सच नहीं होगा। जातिविहीनता एक विशेषाधिकार है जिसे केवल उच्च जाति ही वहन कर सकती है।
निम्न जाति के सदस्यों को आरक्षण जैसे कानून के संरक्षण का लाभ उठाने के लिए अपनी जाति की पहचान को बनाए रखना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के जज (Supreme Court) जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,अन्याय और बहिष्करण की प्रक्रिया को समाप्त किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि समाज के विशेषाधिकार प्राप्त सदस्य अतीत की बेड़ियों से मुक्त हों। हाशिए पर पड़े समुदाय के सदस्यों को मान्यता और सम्मान प्रदान की जाए। हमें समाज में परिवर्तन लाने के लिए डॉ. बी आर. अम्बेडकर के विचारों का उपयोग करना चाहिए।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आगे ये भी कहा कि मुझे संस्था और समाज द्वारा किए गए अपमानों के बारे में भी याद दिलाना चाहिए। आज से 72 साल पहले हमने खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सभी के लिए समानता पर आधारित एक संविधान दिया था। वैसे तो 2005 से ही महिलाओं को समान सहयोगी के रूप से स्थान दिया गया था। 2018 में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त कर दिया गया था। एक भेदभावपूर्ण कानून को निरस्त करने से, भेदभावपूर्ण व्यवहार स्वतः उलट नहीं होता है। यह अपमान का संस्थागत अपराध है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन की अनुमति देने, समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने जैसे निर्णय मौजूद हैं, लेकिन उनके प्रभाव अभी भी अनियंत्रित हैं।
कार्यक्रम का अयोजन
जस्टिस चंद्रचूड़ 13वीं बी. आर. अम्बेडकर स्मृति व्याख्यान पर “संकल्पना सीमांतकरण: एजेंसी, अभिकथन, और व्यक्तित्व” पर बोल रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज, नई दिल्ली और रोजा लक्जमबर्ग स्टिफ्टुंग, दक्षिण एशिया द्वारा किया गया था।