कासगंज अल्ताफ़ केस : PUCL की ओर से हाई कोर्ट इलाहाबाद के समक्ष आज दाखिल होगी जनहित याचिक.वरिष्ठ अधिवक्ता फ़रमान अहमद नक़वी करेंगे पैरवी.

पुलिस हिरासत में हत्या होने का कोई यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी अनेक मामले हो चुके हैं.

 

देश के विभिन्न हाई कोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों में दोषी पुलिस कर्मियों को दण्डित किया है. NHRC ने ऐसे मामलों में जाँच के लिए गाइड लाइन भी जारी की है. अभी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी है.

 

पुलिस अभिरक्षा में हुई मौतों पर एक जजमेंट में जस्टिस काटजू साहब ने इसे ” मत्स्य न्याय ” की संज्ञा दी थी यानि जिस तरह समुंदर में बड़ी मछली अपने से छोटी मछली को निगल जाती है, ठीक वैसे ही पुलिस करती है लेकिन लोकतंत्र में यह नहीं चलेगा.

 

अल्ताफ मामले में कासगंज पुलिस ने जो कहानी बताई वो हास्यास्पद ही नहीं बल्कि सामान्य बुद्धि से परे है. इस मामले में अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी के युवा छात्र नेताओं सैय्यद नाज़िम अली और शाहरुख़ राजा ने एक्टिविस्ट की जो भूमिका निबाही वो सराहनीय है.

 

अल्ताफ़ मरहूम के घर जाकर और पीड़ित परिवार से मिलकर, FIR दर्ज कराने की कार्यवाही इन युवा नेताओं ने शुरू कराई. यह इस मामले की पहली ज़रूरत थी. उस वक़्त मुझ से भी इन युवा साथियों ने फोन पर इस केस पर बातचीत की थी.

 

मेरी कल इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जनाब फ़रमान अहमद नक़वी साहब से बात हुई. उन्होंने बताया कि अल्ताफ़ केस के संदर्भ में PUCL की ओर से एक जनहित याचिका हाई कोर्ट में लगायी जा रही है, जिसमें ये भी प्रार्थना की जायेगी कि कोर्ट एक गाइड लाइन जारी करे कि ऐसे मामलों में इन्वेस्टीगेशन किस तरह से हो, जिस तरह की गाइड लाइन सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर केस के लिए 2014 में जारी की थी.पुलिस अभिरक्षा या जेल में हुई मृत्यु के संदर्भ में NHRC ने जो गाइड लाइन जारी की हुई है वह पर्याप्त नहीं है.

 

अल्ताफ के परिजनों को उचित मुआवजा मिले और निष्पक्ष विवेचना के लिए इन्वेस्टीगेशन हाई कोर्ट की निगरानी में विशेष टीम करे. अलग से अल्ताफ के परिजन भी याचिका दाखिल कर सकते हैं.

 

सैय्यद नाज़िम अली और शाहरुख़ राजा व उनके साथियों ने जो कार्यवाही की है, वह दूसरे युवाओं के लिए उदाहरण है. अपने राजनीतिक कार्यों में धरना प्रदर्शन और ज्ञापन देने के साथ साथ कानूनी प्रक्रिया के साथ कार्यवाही करने से ही प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस का मनमानापन रोका जा सकता है.

 

असद हयात वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिखी गई। एडवोकेट असद हयात आरटीआई एक्टिविस्ट भी हैं जो इस तरह के मुद्दों को हमेशा उठाते रहते हैं।

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