किसानों के प्रदर्शन स्थल पर शख्स की पीट-पीटकर हत्या, बैरिकेड से बांधकर काट डाली कलाई, शव लटकाया

दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर (Delhi-Haryana Border) पर सोनीपत जिले के सिंघु बॉर्डर पर एक युवक की बर्बर तरीके से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई.
मारे गए युवक पर गुरु ग्रंथ साहिब से छेड़छाड़ करने का आरोप है. तीनों कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग पर चल रहे किसानों के विरोध-प्रदर्शन के मुख्य स्थल के पीछे बैरिकेड पर युवक की लाश बंधी और लटकी हुई मिली है. लाश देखने से साफ होता है कि उसके साथ बर्बरता की गई है. मौके पर खून बिखरे पड़े थे.
मृतक की पहचान कर ली गई है. उसका नाम लखबीर सिंह है जो पंजाब के तरनतारन का रहने वाला था. उसकी उम्र करीब 35 साल थी और वह मजदूरी करता था. जानकारी के मुताबिक मंच के नजदीक पकड़ कर हत्या की गयी है. लखबीर सिंह को हरनाम सिंह ने गोद लिया था, जब उसकी उम्र 6 महीने ही थी. लखबीर के जैविक पिता दर्शन सिंह हैं, जिनकी मौत हो चुकी है. इसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा है.
प्रारंभिक रिपोर्टों में निहंगों- एक ‘योद्धा’ सिख समूह- पर हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडली इलाके में हुई इस क्रूर और बर्बर हत्या का आरोप लगाया जा रहा है. वाकये का एक वीडियो सामने आया है जिसमें निहंगों के एक समूह को शख्स के ऊपर चढ़ा हुआ दिखाया जा रहा है. शख्स के बाएं हाथ की कलाई कटी हुई है और जमीन पर बहुत खून बिखरा पड़ा है.
वीडियो में दिख रहा है कि निहंग, जिनमें से कुछ भाले लिए हुए हैं, उस शख्स के चारों ओर खड़े हैं और उससे अपना नाम और पैतृक गांव के बारे में पूछ रहे हैं. वीडियो में दिख रहा है कि घायल शख्स की मदद करने कोई आगे नहीं आ रहा है.
तस्वीर से साफ होता है कि हत्या से पहले उसके साथ मारपीट की गई है और उसे घसीटा गया है. लाश के दोनों हाथ बैरिकेड से बंधे हुए हैं. आरोप है कि धरना स्थल पर ही मौजूद कुछ लोगों ने इस वारदात को अंजाम दिया है. आरोप निहंगों पर लग रहे हैं. सोनीपत पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया है. शुक्रवार की सुबह प्रदर्शनकारी किसानों के मुख्य मंच के पीछे यह लाश मिली है. सूचना पर जैसे ही पुलिस वहां पहुंची, उसे विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन बीच-बचाव के बाद पुलिस ने शव को अपने कब्जे में कर लिया. पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस वारदात के बाद दोपहर 12 बजे एक बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि मोर्चा उसके बाद कोई बयान जारी कर सकता है.
1989 के एससी/सटी कानून में विभिन्न स्वरूपों या आचरणों वाले 22 ऐसे कृत्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो अपराध के दायरे में आते हैं और जो अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय के आत्म सम्मान और उनके मान को ठेस पहुंचाते हैं। इसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों के हनन के साथ साथ भेदभाव, शोषण और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरूपयोग शामिल है।
भीड़ के हाथों हत्या (मॉब लिंचिंग) के खतरे से निपटने के लिए एक विशेष कानून की तत्काल आवश्यकता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए बने विशेष कानून (एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून, 1989) से जातिगत भेदभाव भले ही खत्म नहीं हो सका हो लेकिन इसने एक सशक्त प्रतिरोधी (deterrent) का काम जरूर किया है।
आखिरकार, मॉब लिंचिग एक मामूली अपराध नहीं है। इंडियास्पेंड द्वारा संग्रहित आंकड़ों के मुताबिक 2010 के बाद से नफरत जनित अपराधों की 87 घटनाएं हुई हैं जिनमें 289 व्यक्ति गाय से जुड़ी हिंसा के शिकार हुए हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से 98% मई 2014 के बाद घटित हुई हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गौ रक्षकों पर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मद्देनजर अपने लिखित जवाब में इंडियास्पेंड के आंकड़ों का उल्लेख किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त भाषा में केन्द्र सरकार से मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा “नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते और खुद कानून नहीं बन सकते।” यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा भीड़तंत्र की नृशंस घटनाएं नये मानदंड नहीं बन सकतीं।
मॉब लिंचिंग पर रोक के लिए हमें विशेष कानून की जरूरत क्यों है
1989 के एससी/सटी कानून में विभिन्न स्वरूपों या आचरणों वाले 22 ऐसे कृत्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो अपराध के दायरे में आते हैं और जो अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय के आत्म सम्मान और उनके मान को ठेस पहुंचाते हैं। इसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों के हनन के साथ साथ भेदभाव, शोषण और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरूपयोग शामिल है।
भीड़ लंचिंग, एससी, एसटी, नियम, विशेष कानून, कानून, व्यवस्था, अनुसूचित जाति, अनुसूची जनजाति, आर्थिक, गाय सतर्कता, लोकतांत्रिक, सामाजिक अधिकार, भेदभाव, शोषण,
भीड़ के हाथों हत्या (मॉब लिंचिंग) के खतरे से निपटने के लिए एक विशेष कानून की तत्काल आवश्यकता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए बने विशेष कानून (एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून, 1989) से जातिगत भेदभाव भले ही खत्म नहीं हो सका हो लेकिन इसने एक सशक्त प्रतिरोधी (deterrent) का काम जरूर किया है।
आखिरकार, मॉब लिंचिग एक मामूली अपराध नहीं है। इंडियास्पेंड द्वारा संग्रहित आंकड़ों के मुताबिक 2010 के बाद से नफरत जनित अपराधों की 87 घटनाएं हुई हैं जिनमें 289 व्यक्ति गाय से जुड़ी हिंसा के शिकार हुए हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से 98% मई 2014 के बाद घटित हुई हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गौ रक्षकों पर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मद्देनजर अपने लिखित जवाब में इंडियास्पेंड के आंकड़ों का उल्लेख किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त भाषा में केन्द्र सरकार से मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा “नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते और खुद कानून नहीं बन सकते।” यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा भीड़तंत्र की नृशंस घटनाएं नये मानदंड नहीं बन सकतीं।
आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभालने वाले मंत्रालय ने हमले के स्थान, हमलावरों की पहचान और पीड़ित का भी खुलासा नहीं किया।
दैनिक भास्कर के 29 जुलाई 2018 के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 12 राज्यों में मॉब लिंचिंग से संबंधित मुकदमों में सिर्फ दो आरोपियों को सजा सुनाई गयी है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसी साल मार्च में स्वीकार किया था कि 2014 से लेकर 3 मार्च 2018 के बीच नौ राज्यों में मॉब लिंचिंग की 40 घटनाओं में 45 लोगों की मौत हो गयी। हांलाकि मंत्रालय ने ये स्पष्ट किया कि उनके पास इन घटनाओं के इरादे के लेकर विस्तृत जानकारी नहीं है कि ये घटनाए गौ रक्षकों की गुंडागर्दी, सांप्रदायिक या जातीय विद्वेष या बच्चा चुराने की अफवाह की वजह से घटी हैं। इसी तरह आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभालने वाले मंत्रालय ने हमले के स्थान, हमलावरों की पहचान और पीड़ित का भी खुलासा नहीं किया।
केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने 18 जुलाई 2018 को राज्य सभा को बताया: “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) देश में लिंचिंग से संबंधित घटनाओं के मद्देनजर आंकड़ा नहीं रखता।” अहीर ने एक सवाल के जवाब में ये जानकारी दी थी जिसमें पूछा गया था कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय देश के विभिन्न इलाकों में बढ़ती जा रही मॉब लिंचिग की घटनाओं को लेकर आंकड़े रखता है कि नहीं। असल में, एनसीआरबी के मुताबिक मॉब लिंचिंग शब्दावली की व्याख्या भी अभी तक कानूनी रूप से नहीं हो पाई है। इसके अलावा इस तरह के मामलों में हिंसा के तरीकों, संबंधित कारणों और संगठनों की संलिप्तता के बारे में विश्वसनीय आंकड़ों का भी अभाव है।
मॉब लिंचिंग की हिंसा पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशके मद्देनजर केन्द्र सरकार ने 23 जुलाई 2018 को इस तरह की घटनाओं के प्रति पहली बार अपनी चिंता और ठोस पहलकदमी का संकेत दिया। केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया है जिसे चार हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देनी है। कानून मंत्रालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों के सचिवों और वरिष्ठ अधिकारियों को इस कमेटी का सदस्य बनाया गया है।
साथ ही सरकार ने उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों पर विचार के लिए केन्द्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह (जीओएम) का भी गठन किया है। विदेश मंत्री, सड़क परिवहन और राजमार्ग; जहाजरानी, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री, विधि एवं न्याय मंत्री, सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्री को जीओएम का सदस्य बनाया गया है। जीओएम अपनी सिफारिशें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपेगा।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने ये रेखांकित किया कि भारतीय संवैधानिक प्रणाली के मुताबिक ‘पुलिस’ और ‘कानून व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं। इसलिये अपराध पर नियंत्रण, कानून व्यवस्था की बहाली और नागरिकों के जीवन और सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है। राज्य सरकारों को इसी वजह से अपने क्षेत्र में कानून बनाने और कानूनों को लागू करने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने ये भी रेखांकित किया कि चार जुलाई 2018 को राज्य सरकारों को परामर्श जारी किया गया है। इसके पहले 9 अगस्त 2016 में भी गाय की रक्षा के नाम पर असामाजिक तत्वों के उपद्रवों को लेकर परामर्श जारी किया गया था।
mob lynching, SC/ST Act, special law, law and order, cow vigilante
इंडियास्पेंड द्वारा संग्रहित आंकड़ों के मुताबिक 2010 के बाद से नफरत जनित अपराधों की 87 घटनाएं हुई हैं जिनमें 289 व्यक्ति गाय से जुड़ी हिंसा के शिकार हुए हैं। छवि: Press Trust of India
हांलाकि कई कानूनी विशेषज्ञों और सामुदायिक नेताओं का मानना है कि ये उपाय पर्याप्त नहीं होंगे। उनका मानना है कि मॉब लिंचिंग एक अलग तरह का अपराध है और इसके लिए विशेष सावधानी और बर्ताव की जरूरत है। मॉब लिंचिंग के मामलों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 324, 326, 307 और 302 के तहत समुचित रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
आईपीसी की धारा 323 स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के मामले में सजा का निर्धारण करती है जबकि धारा 324 खतरनाक हथियारों से जान बूझ कर चोट पहुंचाने के संदर्भ में है। धारा 326 गंभीर चोट पहुंचाने को लेकर है जबकि धारा 307 और धारा 302 क्रमश: हत्या के प्रयास और हत्या के मामले में सजा का निर्धारण करती है। दैनिक भास्कर की जांच के मुताबिक मॉब लिंचिंग के मामलों में अलग अलग लोगों पर अपराध की जिम्मेदारी साबित कर पाना खासा मुश्किल होता है। इस तरह के भी उदाहरण हैं कि जहां इस तरह के मामलों में अनियंत्रित भीड़ पुलिस को ही फंसाने की कोशिश करती है। जब इस तरह के मामलों में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति पुलिस को सौंपा जाता है और उसकी अस्पताल के रास्ते में मौत हो जाती है तो पुलिस पर आरोप ये लगाया जाता है कि संबंधित व्यक्ति की मौत पुलिस हिरासत में हुई है।
कुछ राज्यों में इस तरह के मामले सामने आये हैं जहां राजनीतिक वर्ग का एक हिस्सा इन आवारा उपद्रवियों के प्रति सहानुभूति जताता दिखता है। कड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस बात की संभावना है कि नया कानून कड़ाई से लागू नहीं किया जा सके।
कुछ लोगों का तर्क है कि नया कानून बनाने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि केन्द्र और राज्य सरकारें मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति जाहिर करें। कुछ राज्यों में इस तरह के मामले सामने आये हैं जहां राजनीतिक वर्ग का एक हिस्सा इन अवारा उपद्रवियों के प्रति सहानुभूति जताता दिखता है। कड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस बात की संभावना है कि नया कानून कड़ाई से लागू नहीं किया जा सके।
यही वो जगह है जहां 1989 के एससी/एसटी एक्ट से इसकी तुलना की प्रासंगिकता है। यद्यपि कई सरकारें और कानून लागू करने वाली एजेंसियां एससी/एसटी कानून लागू करने को
लेकर आम तौर पर बहुत उत्साहित नहीं रहतीं लेकिन कानून के विधिक प्रावधानों ने बड़ा बदलाव लाया है।
केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा को एक साल पहले बताया था कि गलत सूचनाएं, अफवाह और फर्जी समाचार भीड़ की हिंसा के स्रोत हैं। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि कानून व्यवस्था कायम रखना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
1989 के एससी/सटी कानून में विभिन्न स्वरूपों या आचरणों वाले 22 ऐसे कृत्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो अपराध के दायरे में आते हैं और जो अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय के आत्म सम्मान और उनके मान को ठेस पहुंचाते हैं। इसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों के हनन के साथ साथ भेदभाव, शोषण और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरूपयोग शामिल है। एससी/एसटी कानून की धारा 14 के मुताबिक इस कानून के अंतर्गत इस तरह के मामलों में तेजी से मुकदमा चलाने और देश के हर जिले में सत्र न्यायालय के गठन का प्रावधान है जो विशेष अदालत के रूप में काम करेगा।
द हिंदू अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में जांच के लिए आये 11,060 मुकदमों में आरोप पत्र दाखिल करने की दर 77% थी। केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार इन मुकदमों में सजा सुनाने की दर मात्र 16% रही। इसके पीछे कई कारण थे जैसे गवाहों का मुकर जाना, मुकदमों का लंबा खिंचना, सुनवाई पूरी होने में लंबा समय लगने की वजह से पीड़ित और गवाहों की रूचि खत्म हो जाना और संबंधित सबूत का अभाव होना।
द इंडियन एक्सप्रेस में 3 अप्रैल को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक एससी/एसटी के अंतर्गत दर्ज मामलों में ये खुलासा हुआ है कि 2010 से 2016 के बीच सुनवाई के लिए आये मामलों में लंबित मुकदमों की संख्या काफी बढ़ गयी, उन मुकदमों की संख्या काफी घट गयी जिनमें सुनवाई पूरी हो पाई और उन मुकदमों की संख्या में भी कमी आई जिसमें सजा का निर्धारण हो पाया।
इन सारी सीमाओं के बावजूद एससी एसटी कानून की तर्ज पर मॉब लिंचिंग के खिलाफ विशेष कानून बनाना एक प्रभावी प्रतिरोधी के रूप में काम करेगा। जैसा कि कॉलमनिस्ट और लेखक कंचन गुप्ता ने ट्विटर पर कुछ दिन पहले लिखा: “अगर आप एक राष्ट्रवादी हैं तो आपको #लिंचिंग से भयभीत होना चाहिए क्योंकि ये आपके देश का नाम देश के अंदर और विदेश में कलंकित करता है। ये निश्चित रूप से वो #नया इंडिया *नहीं* है जिसकी बात प्रधानमंत्री मोदी करते हैं और आप खुश होते हैं। इस पर बीजेपी को विचार करना है और ये फैसला करना है कि वो किस तरह के मानदंड निर्धारित करने की इच्छा रखते हैं।”
सवाल ये उठता है कि, क्या हमारे देश में कानून व्यवस्था इतनी लचर हो चुकि है कि हर बार इस तरह के मामले होते रह रहे हैं और सिर्फ हम इन पर कानून बनाया जाये, सख्त कानून बनायीं जाये और हम बस इस तरह की मांग करते रहे और लोग इसी तरह से भीड़ के हाथो मरते रहे .
क्या इंसानियत इस कदर
धर्म नाम पर बट चुकी है है की उसे कुछ दिखाई नहीं देता .
क्या देश की सरकार इतनी कमजोर हो चुकी है की इस पर कोई कठोर फैसला नहीं ले प रही
ताज़ातरीन खबरों के लिए हिंदराष्ट्र के साथ जुड़े रहे आपको आर्टिकल कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताएं आपके सुझाव का हम स्वागत करते हैं, और हाँ हमे सोशल मीडिया पर फॉलो करना न भूलें।
खबर वही जो आपके लिए सही। हिंद राष्ट्र
By; Poonam Sharma .
Open chat
1
हमसे जुड़ें:
अपने जिला से पत्रकारिता करने हेतु जुड़े।
WhatsApp: 099273 73310
दिए गए व्हाट्सएप नंबर पर अपनी डिटेल्स भेजें।
खबर एवं प्रेस विज्ञप्ति और विज्ञापन भेजें।
hindrashtra@outlook.com
Website: www.hindrashtra.com
Download hindrashtra android App from Google Play Store