“Mental” को अगर सरल भाषा में देखा जाए तो यह (Men) यानी पुरूष और “tal” मतलब जो वह बोले,
पर आज कल की इस भाग दौड़ की दुनिया में सब ऐसे खो गए है की किसी को किसी की परेशानी, सुख दुख से कोई लेना देना नही। आज मैं इस लेख के द्वारा इसी टॉपिक पे कुछ बाते लिख रही।
हम हमेशा वूमेंस की मेंटल,फिजिकल, फाइनेंशियल हर सिचुएशन के बारे में बात करते हैं, पढ़ते है, लिखते है, आवाज भी उठाते है। जिससे एक बदलाव का निर्माण भी हुआ है, पर अभी भी वक्त लगेगा सोच को बदलने में। क्योंकि यहां भी “MENtal” की बात आ जाती है।
आज यहां मुझे पुरूष की मेंटल कंडीशन के बारे में बात करना है, और मेरा इससे अभिप्राय उसकी मानसिक स्वास्थ्य से है। ना की किसी पुरूष का अपमान करना, और न ही उसकी किसी की सोच को चुनौती देना है।
बचपन से उन्हें हमेशा यही सिखाया गया है की वो मर्द है, और उसे दर्द नही होना चाहिए। उसे पढ़ लिख कर अपने कंधो पर परिवार का दायित्व उठाना है। वह औरत के जीवन का मसीहा है। जो उनकी सारी परेशानियों को समाधान करेगें।
रोना, कमजोर पड़ना, दूसरों से मदद मांगना और काम्प्रोमाइज करना आमतौर पर महिलाओं से ऐसी उमीदे होती है। लेकिन अगर ये काम पुरुष कर लें तो समाज उन्हें बुजदिल कहने लगता है। सर्वे बताते हैं कि समाज की ये सोच पुरषों को मेंटल हेल्थ का शिकार बनाती है।
कुछ पॉइंट्स देखे गए है जहां इनकी मानसिक रूप को बढ़ावा दिया गया है:
*लड़कों को अपने इमोशन को कंट्रोल में रखना आना चाहिए ( उन्हे अपनी फीलिंग्स शेयर करने का कोई हक नही)
* अपनी प्रॉब्लम को खुद सॉल्व करें, वो अपनी परेशानियों के साथ खुद डील करना सीखें।
*पढ़ाई का बोझ( बचपन से ही जिम्मेदारियों का एहसास कराना)
ऐसी ही बहुत सी बातें जहां हम सोच भी नही पाते की कब , क्या ,कैसे करना चाहिए। भावनाओं को कंट्रोल में रखना तो ऐसे सिखाया जाता इन्हे जैसे ‘बंदूक में गोली’ रखो पर बाहर नहीं निकाल सकते, और ऐसे में कई बार लड़के चाहकर भी रो नहीं पाते कुछ कह नहीं पाते हैं।
फीलिंग्स ऐसी होती है जो किसी के कंट्रोल में नहीं होती है। पुरुष ऐसा करते हैं जिसके चलते उनका मानसिक स्वास्थ्य (Men’s Mental Health) बुरी तरह से प्रभावित होता है।
मानसिक और शारारिक दोनो इसी शरीर का हिस्सा है, जिस तरह से हम शरीर की बीमारी के लिए फिजिशियन या एक्सपर्ट के पास जाते हैं, उसी तरह से हम मानसिक बीमारी के लिए भी मनोचिकित्सक के पास जा सकते हैं।
इससे कोई व्यक्ति कमजोर नहीं बल्कि और भी अच्छा महसूस करेगा। इसकी पहल सबसे पहले परिवार में होनी चाहिए। मां बाप को बच्चों से और बच्चो को अपने पैरेंट्स से खुलकर बात करना होगा, पैरेंट्स अपने बच्चों से पूछे की वो क्या चाहते है, क्या सोचते है, उनकी प्रॉब्लम्स को सुने, समझे प्रतिक्रिया ना जाहिर करे, आपस में खुल के बाते करें, जिससे घर में खुशनुमा माहौल बनेगा।
बीते कुछ समय में हमने सुसाइड, हार्ट अटैक, और कोरोना की दूसरी लहर से गई जिंदगियो को जाते देखा, जो इस बात की ओर बार बार इशारा कर रही की हमें अपने दिल दिमाग का अच्छे से ख्याल रखने की जरूरत है।
दिमाग साफ और स्वस्थ रहेगा तो दिल खिल उठेगा, और दिल स्वस्थ तो शरीर मजबूत। ये सब एक दूसरे से जुड़े है, इसलिए अगर इनमे से एक को भी हमने नजरंदाज किया तो ज़िंदगी जा सकती है।
तो बस मेरा सभी पुरुषों से निवेदन है की अपनी प्रॉब्लम को अपने परिवार, दोस्त और चाहने वालों को, बताइए। खुल के बाते करें, जिससे भी आप कर पाए। स्वस्थ रहें..खुश रहें.
“सोच की दिशा बदल लें….
और
जिंदगी को थोड़ा अपने नाम कर लें….”
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By- Tanwi Mishra