नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक महिला अपने ससुराल में रहने की हकदार है। यह अधिकार वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित हिंदू विवाह अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अन्य अधिकार से अलग है। एक महिला के घर में रहने के अधिकार के संबंध में निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली एक दंपति की याचिका खारिज कर दी। याचिका में कहा गया है कि शुरू में उसके अपनी बहू के साथ अच्छे संबंध थे। हालांकि, समय के साथ, यह बदलने की संभावना है।
महिला 16 सितंबर 2011 को घर से निकली थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच एक दूसरे के खिलाफ 60 से अधिक दीवानी और आपराधिक मामले दर्ज हैं। पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत एक मामला दायर किया गया था और कार्यवाही के दौरान प्रतिवादी ने संबंधित संपत्ति में रहने के अधिकार का दावा किया था। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने महिला की याचिका को मंजूर करते हुए कहा कि पत्नी संपत्ति की पहली मंजिल पर रहने की हकदार है।