एमपी साहब, ये लफ़्ज़ हमारा ग़ुरूर था, महताब आलम का भावुक पोस्ट

कोरोना महामारी में ना जाने कितने लोगों के जिंदगी जा रही है अफसोस की बात यह है कि ज्यादातर लोग को वक्त पर स्वास्थ्य सुविधा ना मिलने पर उनकी मौत हो रही है.

सवाल यह है कि देश के मीडिया सिस्टम को दोष बता रही है शायद यह वही सिस्टम है जो बीते 10 साल से दो चेहरे पर ब्रांडिंग की जा रही है चांद पर रॉकेट भेजने से लेकर क्रिकेट मैदान में वर्ल्ड कप जिताने तक पर उस चेहरा से उसकी जिम्मेदारियों के बारे में सवाल नहीं किया जा रहा है.

इसी बीच महामारी या फिर साजिश कथित तौर पर,

बिहार के कद्दावर नेता सिवान से पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन साहब पहले क्रोना से संक्रमित होते हैं और फिर हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें दिल्ली के डीडीयू अस्पताल में भेज दिया जाता है जो कि 4 बार सांसद और दो बार विधायक होने के नाते लोगों के मुताबिक उनका इलाज एम्स में होना चाहिए पर नहीं हुआ.

और नतीजा क्या निकलता है 1 मई 2021 को लोगों के चहेते गरीबों के भगवान विकास पुरुष के नाम से चर्चित पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन साहब इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं.

3 मई 2021 बेटा ओसामा साहब के जिद पर पोस्टमार्टम करा कर दिल्ली के आईटीओ कब्रिस्तान में बिहार के लाल पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को सुपुर्द ए खाक किया जाता है.

हालांकि बेटे द्वारा तमाम कोशिश के बावजूद बिहार के सर जमी पर सुपुर्द ए खाक करने की इजाजत नहीं मिली, आखिर इसकी वजह क्या है क्यों नहीं दी गई एक बड़ा सवाल है.

हालांकि समर्थक और परिवार का आरोप है साहब का कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आया था उसके बावजूद केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपनी मनमानी कर रही थी.

यह सब हो रहा था साहब के सिपाही मोहम्मद महताब आलम खुद भी करोना से जूझ रहे थे जिसकी वजह से वह पटना से दिल्ली नहीं आ सके और जैसे उनकी कोविड रिपोर्ट नेगेटिव आई तुरंत उन्होंने पटना से दिल्ली के आईटीओ कब्रिस्तान के लिए रवाना हुए.

और अपने एमपी साहब के कब्र पर फूल चढ़ाकर फातिहा पढ़ा और इस दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर सोशल मीडिया पर भावुक पोस्ट लिखा.

एमपी साहब, ये लफ़्ज़ हमारा ग़ुरूर था।

इसी वजह कर मुझे पहचान मिली; आज भी अधिकतर लोग मुझे एमपी साहब की वजह कर जानते हैं… करोना महामारी में साज़िश के तहत एमपी साहब को हमसे छीन लिया गया। ये वो ग़म है जिसकी भरपाई कभी हो नही सकती है, ख़ुद को यतीम सा महसूस करता हूँ, एमपी साहब हमारे गरजियन थे।

साज़िश करने वालों ने एमपी साहब जैसे चट्टान आदमी को 18 साल तक जेल में रखने के बाद भी झुका नही पाए; उन्हें उनके उसूल से पीछे नही ढकेल सके। एमपी साहब हिम्मत का नाम, जुर्रत का, सदाक़त का नाम, शुजाअत का नाम है, वफ़ादारी और ईमानदारी का नाम है। एमपी साहब जैसे उसूलप्रस्त आदमी के मय्यत को जब सिवान लाने की जद्दोजहद भाई ओसामा दिल्ली में कर रहे थे; तब मै घर के कमरे में क़ैद ख़ून के आँसू बहा रहा था। ये आख़री मौक़ा था जब एमपी साहब यानी हमारे क़ायद को हमारी ज़रूरत थी, पर ख़ुद करोना पॉज़िटिव होने की वजह कर उनका आख़री दीदार न कर सका, उनके जनाज़े को कंधा नही दे सका; जिसका मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा।

कल ही आप लोगों की दुआओं से मेरा करोना निगेटिव आ गया है। और मै आज एमपी साहब के क़ब्र पर हाज़री देने पटना से दिल्ली के आईटीओ क़ब्रिस्तान पहुँच गया।

अब के इस बरसात में गंज ए शहीदां पर चलें

आसमां रोयेगा और अपनी ग़ज़ले गाएंगे हम।

क़ब्रिस्तान में वही ख़ामोशी थी; जैसी एमपी साहब के दरबार में हुआ करता था। अब हम एमपी साहब के लिए सिर्फ़ एक काम के इलावा कुछ नही कर सकते थे; सिवाय हाथ उठा कर अल्लाह से उनके लिए दुआ, तो वही किया मैने।

सब्ज़ा-ए-नौरस्ता उस घर की निगहबानी करे

आसमाँ तेरी लहद पर शबनम अफ़्शानी करे…

हमारे लिए एमपी साहब ग़ाज़ी भी हैं, और शहीद भी, एमपी साहब कभी कोई जंग नही हारे;

हमेशा फ़ातेह रहे; और साज़िश करने वालों ने उन्हें बिस्तर ए मर्ग पर शहीद किया। क्यूँकि वो कभी उनसे आमने सामने नही जीत सकते थे। वैसे ये एमपी साहब का ख़ुद का क़ौल था के मैं ये कहकर जाऊंगा कि सांसों ने मुझे हरा दिया, किसी जम्हूरियत ने मुझे नहीं हराया।

आज एमपी साहब हमारे बीच नही हैं, पर उनके उसूल आज भी ज़िंदा हैं, मज़लूमों के लिए आवाज़ बुलंद होते रहेगी। ज़ालिमों से लोहा लेते रहेंगे। साज़िश करने वाले जेल की सलाख़ों के पीछे डाल दें; पर उसूल से कोई भी समझौता नही होगा।

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