देश के सामने सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठा रहे हैं – लेकिन उसके बाद अगर कोई खतरा लग रहा है तो वो है – मॉब लिंचिंग.
“गोरक्षा का कार्य केवल एक धार्मिक पंथ का नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का कार्य देश में रहने वाले हर नागरिक का है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट
बुधवार को हाईकोर्ट का एक बहुत अहम फैसला आया जिसमे कहा गया की भारत में गाय को माता मानते हैं।
यह हिन्दुओ की आस्था का विषय है।आस्था पर चोट से देश कमजोर होता है।
कोर्ट ने कहा कि गो मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है।
जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता।
‘जब संस्कृति और आस्था को चोट पहुंचती है तो देश कमजोर होता है’
कोर्ट ने कहा, ‘हम जानते हैं कि जब किसी देश की संस्कृति और उसकी आस्था को चोट पहुंचती है तो वह देश कमजोर हो जाता है।
‘ हाई कोर्ट ने कहा कि बीफ खाने का अधिकार कभी भी मूल अधिकार नहीं हो सकता।
कोर्ट ने कहा कि देश तभी सुरक्षित रहेगा जब गायों की सुरक्षा होगी और तभी देश आगे बढ़ेगा।
गोकशी के आरोपी की जमानत याचिका की खारिज करते हुए जस्टिस शेखर यादव की बेंच ने कहा कि आरोपी ने पहले भी गोकशी की है जिससे समाज का सौहार्द बिगड़ा था।
कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी को जमानत दी गई तो वह फिर से इस अपराध को करेगा और समाज के माहौल को खराब करेगा।
‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए संसद में कानून बनना चाहिए’ इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश में गोहत्या रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध के आरोपी जावेद को बेल देने से मना करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।
हाई कोर्ट ने कहा, गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ हिन्दू ही गाय के महत्व को नहीं समझते हैं, बल्कि मुस्लिम शासनकाल में भी गाय को भारत की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया था।
गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटना।
28 सितंबर, 2015 को दादरी में मोहम्मद अखलाक को पीट पीट कर मार डाला गया था. एक सनकी हमलावर भीड़ को शक था कि अखलाक के घर के फ्रीज में जो मीट रखा है वो गोमांस है. तीन साल बाद भी मॉब लिंचिंग की घटनाओं में कोई खास फर्क नहीं लगता।
दादरी की घटना को लेकर देश भर में बवाल हुआ था. असहिष्णुता और अवॉर्ड वापसी पर भी जोरदार बहसें हुई. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का बयान आया और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे ब्रह्म-वाक्य की तरह मान लेने की सलाह दी।
गोरक्षकों के उत्पात पर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकारों को डॉजियर बनाने को भी कहा था, लेकिन ऐसी घटनाओं में कभी कोई फर्क नहीं देखने को मिला.
1989 के एससी/सटी कानून में विभिन्न स्वरूपों या आचरणों वाले 22 ऐसे कृत्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो अपराध के दायरे में आते हैं और जो अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय के आत्म सम्मान और उनके मान को ठेस पहुंचाते हैं।
इसमें आर्थिक, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों के हनन के साथ साथ भेदभाव, शोषण और कानूनी प्रक्रियाओं का दुरूपयोग शामिल है।
भीड़ के हाथों हत्या (मॉब लिंचिंग) के खतरे से निपटने के लिए एक विशेष कानून की तत्काल आवश्यकता है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए बने विशेष कानून (एससी/एसटी अत्याचार निरोधक कानून, 1989) से जातिगत भेदभाव भले ही खत्म नहीं हो सका हो लेकिन इसने एक सशक्त प्रतिरोधी (deterrent) का काम जरूर किया है।
त्रिपुरा में बच्चे उठाने के शक में तीन लोगों को भीड़ ने मार दिया. एक झूठे सोशल मीडिया मैसेज के चलते क्रिकेट बैट और लातों से मार-मार कर बेरहमी से उनकी जान ले ली गई।
एक व्हाट्सऐप मैसेज ने तमिलनाडु में हिंदी बोलने वाले लोगों को संगठित कर दिया. अगरतला में बच्चे उठाने की अफ़वाह में दो लोगों को मार दिया गया.
इस सबके पीछे सोशल मीडिया दुआर तयार हिंसक भिड़ ज़िम्मेदार है.यहां सबकुछ बहुत तेज़ी से होता है. किसी को शक़ हुआ, उसने मैसेज भेजा और भीड़ जमा हो गई. ऐसे में न्याय होने की संभावना न के बराबर रह जाती है।
आखिरकार, मॉब लिंचिग एक मामूली अपराध नहीं है।
इंडियास्पेंड द्वारा संग्रहित आंकड़ों के मुताबिक 2010 के बाद से नफरत जनित अपराधों की 87 घटनाएं हुई हैं जिनमें 289 व्यक्ति गाय से जुड़ी हिंसा के शिकार हुए हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से 98% मई 2014 के बाद घटित हुई हैं।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गौ रक्षकों पर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मद्देनजर अपने लिखित जवाब में इंडियास्पेंड के आंकड़ों का उल्लेख किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त भाषा में केन्द्र सरकार से मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा “नागरिक कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते और खुद कानून नहीं बन सकते।” यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा भीड़तंत्र की नृशंस घटनाएं नये मानदंड नहीं बन सकतीं।
9 जुलाई 2018 के सूत्रों के मुताबिक 12 राज्यों में मॉब लिंचिंग से संबंधित मुकदमों में सिर्फ दो आरोपियों को सजा सुनाई गयी है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसी साल मार्च में स्वीकार किया था कि 2014 से लेकर 3 मार्च 2018 के बीच नौ राज्यों में मॉब लिंचिंग की 40 घटनाओं में 45 लोगों की मौत हो गयी।
हांलाकि मंत्रालय ने ये स्पष्ट किया कि उनके पास इन घटनाओं के इरादे के लेकर विस्तृत जानकारी नहीं है कि ये घटनाए गौ रक्षकों की गुंडागर्दी, सांप्रदायिक या जातीय विद्वेष या बच्चा चुराने की अफवाह की वजह से घटी हैं।
इसी तरह आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभालने वाले मंत्रालय ने हमले के स्थान, हमलावरों की पहचान और पीड़ित का भी खुलासा नहीं किया।
एक तरफ़ गौव वंध पर चर्चा दूसरी तरफ़ बीफ़ निर्यात मै सिर्ष पर
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) और आॅर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोआॅपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत बीफ़ निर्यात के मामले में विश्वस्तर पर तीसरे स्थान पर है. इस सूची में ब्राज़ील पहले और ऑस्ट्रेलिया दूसरे स्थान पर हैं।
अब सवाल उठता है जब भारत ही बीफ के आयात को इतना प्रोत्साहित कर रहा है तो लोगो को इस तरह भीड़ क्यों मार रही है, इसके लिए कानून कहाँ है अगर हम ही कानून को अपने हाथ में लेले तो आतंकवाद और हम में क्या फर्क रह जायेगा। बहुत ही गंभीर विषय है और इसपर कानून बनाना उतना ही आवश्यक।
इस रिपोर्ट को लिखने वाली पूनम शर्मा है।