सुप्रीम कोर्ट ने कहा- किसी की भी जासूसी को मंजूरी नहीं, कमेटी एक्सपर्ट इसकी जांच करेगी

रिपोर्ट को पढ़ने के बाद अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर दें।

 

पेगासस जांच पर इजरायल के राजदूत नाओर गिलोन का कहना ये भारत का आंतरिक मामला है,

 

उन्होंने कहा कि हमने NSO को लाइसेन्स देते वक्त शर्त रखी थी कि ये सिर्फ सरकारों को दिया जाएगा।

 

साइबर एक्सपर्ट की राय है कि इस मामले की जांच की जानी चाहिए।

 

उनका मानना है कि ये अब तक का सबसे ताकतवर सॉफ्टवेयर है जिससे जासूसी हो सकती है।

 

बता दें कि पेगासस जासूसी मामले में निष्पक्ष जांच के लिए 15 याचिकाएं दायर की गई थीं।

 

 

पूरी जानकारी: 

इजरायल के पेगासस (Pegasus) सॉफ्टवेयर के जरिए फोन टैपिंग की रिपोर्ट आने के बाद बवाल मचा हुआ है।

विपक्ष केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) को घेर रही है तो वहीं सरकार भी इन आरोपों से पल्ला झाड़ रही है। लेकिन इस बीच साइबर एक्सपर्ट (Cyber Expert) की राय है कि इस मामले की जांच होना बेहद जरूरी है। 

 

 इस पूरी जानकारी ये समझ में आता है कि पेगासस ने प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की NSO ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन  हैक करके उनकी निगरानी की गई या फिर वे सरकार के निशाने पर थे।

 

द वायर से मिली जानकारी के अनुसार पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के आधिकारी पे भी निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे।

 

एक जानकारी के अनुसार जिनकी पेगासस के जरिये हैकिंग हुई है। इसमें से द वायर  के दो संस्थापक संपादकों- सिद्धार्थ वरदाजन और एमके वेणु, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, कई अन्य पत्रकार जैसे- सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी, मरहूम डीयू प्रोफेसर एसएआर गिलानी, कश्मीरी अलगाववादी नेता बिलाल लोन और वकील अल्जो पी. जोसेफ के फोन में पेगासस स्पायवेयरके होने की संभावना जताई थी। 

 

 कोई डिवाइस पेगासस का शिकार हुआ है या नहीं, इसका जवाब डिवाइस की फ़ोरेंसिक जांच के बाद ही पता लगाया जा सकता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की टेक लैब ने 67 डिवाइसों की फ़ोरेंसिक जांच की है और पाया कि 37 फ़ोन पेगासस का शिकार हुए थे। इनमें से 10 डिवाइस भारत के थे।

 

हालांकि, NSO ने पहले ख़ुद पर लगे सभी आरोपों को गलत बताए हैं। ये कंपनी दावा करती रही है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य “आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना” है। फिलहाल इन आरोपों को लेकर भी NSO ने ऐसे ही दावे किए हैं।

 

 एक न्यूज एजेंसी द वायर  ने ऐसे 161 नामों का ज़िक्र किया है, (जिसमें पत्रकार, मंत्री, नेता, कार्यकर्ता, वकील इत्यादि शामिल हैं)  के दो संस्थापक संपादकों- सिद्धार्थ वरदाजन और एमके वेणु, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, कई अन्य पत्रकार जैसे- सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी, मरहूम डीयू प्रोफेसर एसएआर गिलानी, कश्मीरी अलगाववादी नेता बिलाल लोन और वकील अल्जो पी. जोसेफ के फोन में पेगासस स्पायवेयर उपलब्ध होने की पुष्टि हुई थी।

 

“सुप्रीम कोर्ट ने एक सिमित समय के बाद कमिटी से अंतरिम रिपोर्ट देने के लिए कहा है। उसके बाद उस हिसाब से कमिटी को समय दिया जाएगा। कोर्ट की कोशिश होगी की मामले की जाँच सही तरीक़े से हो और बिना किसी वजह से देरी न हो।”

 

“सरकार ने बात न ही स्वीकारा है और न ही नकारा है”

कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल ये था कि कि केंद्र या किसी राज्य सरकार ने पेगासस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं। सरकार ने इस मामले पर कोई स्पष्ट रुप से जवाब नहीं दिया, न तो संसद में और ना ही सुप्रीम कोर्ट में।

 

“इसके अलावा पूरी जाँच में सात बिंदु हैं, जिनमें साइबर सुरक्षा से जुड़े पहलू भी हैं। राज्य सरकारों का पक्ष भी सुनेगी, तो यह भी अंदेशा जताया जा रहा है कि कहीं मुद्दा सरकार की जवाबदेही से ही ना भटक जाए।

 

कई दूसरे जानकारों का मानना है कि इस तरह से निष्कर्ष तक पहुँचने से पहले कमिटी की रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में आगे की सुनवाई और रूख़ का इंतज़ार करना चाहिए।”

 

पेगासस के इस्तेमाल से हैक करने वाले को उस व्यक्ति के फ़ोन से जुड़ी सारी जानकारियां मिल सकती हैं।

 

By: Tanwi Mishra

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