सर सैयद का राजनीतिक विचार, 1857 से लेकर 1947 तक बर्रेसगीर (subcontinent) की तारीख ने बहुत सारे करवट लिए।

1857 से लेकर 1947 तक मुसलमानों ने दुनिया के नक्शे को चेंज कर दिया। जब 1857 में मुगलिया सल्तनत का जवाल हो गया।

जो मुसलमान कल तक हिंदुस्तान के हुक्मरान होते थे आज उनको अंग्रेजों द्वारा बर्बाद नेस्तनाबूद कर दिया गया था ।

हिंदुस्तान का बादशाह बहादुर शाह जफर जिसे रंगून भेज दिया गया जो कल तक हिंदुस्तान का बादशाह हुआ करता था। आज उसको सिर्फ अंग्रेजों ने गद्दारी करने के जुर्म में कैद कर लिया था अंग्रेजों ने बादशाह को ही गद्दार बताया।

1857 की बगावत के बाद सर सैयद को अंदर तक झकझोर दिया था । सर सैयद के खानदान मे ज्यादातर लोग 1857 मे शहीद हो गए थे। फिर भी सर सैयद ने जज्बात से काम ना लेके ।

 

 

1857 के असबाब कि बजाह खोजने में लग गए।

सर सैयद अहमद खां ने बहुत गहरा मुताबला किया और असबाब ए बगावतें हिंद एक किताब लिखी जिसमें सर सैयद ने अंग्रेजों को बताया कि अगर आप मुसलमानों को उनका हक और उनके साथ न्याय नहीं करेंगे तो यह हक तल्खी फिर असबाब का कारण बनेगी।

और सर सय्यद का मानना था कि मुसलमानो का तकनीक और तालीम में अंग्रेजों से पिछे रहना दुनिया से पीछे कर देगा । सर सैयद ने तालीम के लिए मुसलमानों को बेदार किया । हिंदुस्तान का मुसलमान जौ कल तक हिंदुस्तान का हुक्मरान था। आज नंही था। और दूसरी तरफ सर सैयद जो 200 साल आगे की सोचते थे।
सर सैयद ने भांप लिया था की अब यह राजाशाही नहीं चलने वाली जम्हूरियत का असर यूरोप से हिंदुस्तान में बहुत जल्दी देखने को मिलेगी। तभी हिंदुस्तान में एक जम्हूरि कांग्रेस पार्टी की 1885 में स्थापना होती है। सर सैयद ने हिंदुस्तानी मुसलमान को कांग्रेस से दूर रहने को कहा। इसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी । सर सैयद का मानना था की जो मुसलमान कल तक हिंदुस्तान पर राज करते थे उनको जम्हूरियत का इल्म ही नंही यह अंग्रेजों और हिंदुओं की तालीम में बराबरी नहीं कर सकते। इसलिए सर सैयद ने मोहमडन एजुकेशन कॉन्फ्रेंस की स्थापना की और फिर हिंदुस्तान के कोने कोने में जाकर मुसलमानों को मदरसे स्कूल बनाने का और तालीम हासिल करने का मिशन चलाया।
सर सैयद ने साइंटिफिक सोसायटी बनाई साइंटिफिक सोसायटी बनाने की अहम बजह यह थी की जो रिसाले यूरोप में तकनीक को लेकर छपते हैं उनको उर्दू में ट्रांसलेट कर के पढया जाए।MAO  कॉलेज सर सैयद ने सिर्फ इसलिए बनाया यहां से क़ौम के नौजवान तालीम हासिल करके निकले और मिल्लत की रहनुमाई करे।
जब हिंदुस्तान में जम्हूरियत  नहीं था तब M.A.O कॉलेज के अंदर डिबेटिंग यूनियन क्लब हुआ करता था। इसकी स्थापना 1884 में हुई थी।और हिंदुस्तान की पहली जम्हूरि पार्टी की स्थापना 1885 में हुई थी‌‌।
सर सैयद को पता था अब दुनिया किधर करवट लेने वाली है।
सर सैयद ने अलीगढ़ में जो कॉलेज बनाया उसमें छात्रों को सियासत में भी तालीम दी गई जब हिंदुस्तान के पास अपना पार्लियामेंट्री सिस्टम नहीं था तब M.A.O कॉलेज के पास अपना एक डेमोक्रेटिक डिबेटिंग क्लब था जो आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यूनियन क्लब बना।
सर सैयद की वफात के बाद । सर सैयद की सोच जिंदा रही आगे चलकर सर सैयद के लगाए गए पेड़ की शाखाएं पूरे देश में फैल गई। नवाब मोहसिन उल मुल्क ने प्रोफेसर आर्चीबोर्ड की मदद से हिंदुस्तान के वायसराय लोड मिंटू से मुलाकात का वक्त मांगा और एक ड्राफ्ट तैयार किया लॉर्ड मिंटो 1906 मैं मुसलमानों को मिलने का वक्त दे देते हैं 35 मुस्लिम इंटेलेक्चुअल वायसराय से मिले और फिर वायसराय से मांग की मुसलमानों को हिंदुस्तान में सेपरेट इलेक्टरेट मिले और मुसलमानों के पास अपनी एक सेपरेट डेमोक्रेटिक पार्टी हो लॉर्ड मिंटो ने मुसलमानों को एक मुस्लिम सियासी पार्टी तो दे दी पर सेपरेट इलेक्टरेट पर हामी नहीं भरी 1906 मैं मुस्लिम लीग का कयाम होता है।
1857 से लेकर 1906 के एक लंबे वक्त पर अगर रोशनी डाली जाए तो पता चलता है सर सैयद का पॉलिटिकल विजन साफ था सर सय्यद ने महसूस कर लिया था। की मुसलमानों के पास अपनी एक सियासी जमात हो पर 1898 मैं सर सैयद के इंतकाल के बाद सर सैयद के सिपाहियों ने इस सोच की बागडोर को संभाला। और हिंदुस्तान के मुसलमानों को जम्हूरियत में हक दिलाया ‌।
By: Mohammad Paras 
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