विरोध के अधिकार को क्रिमनलाइज कर रही है योगी सरकार
एकतरफा कार्रवाई, छापेमारी और आरोपी के नाम पर होर्डिंग लगाकर मुसलमानों का दमन कर रही है सरकार
कानपुर 7 जून 2022. कानपुर में तीन जून को हुए हिंसक तनाव को लेकर पीयूसीएल, रिहाई मंच, ऑल इंडिया लायर्स कौंसिल ने प्रेस वार्ता कर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच की मांग की. प्रेस कांफ्रेंस को पीयूसीएल नेता आलोक अग्निहोत्री, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, ऑल इंडिया लायर्स कौंसिल महामंत्री शरफुद्दीन अहमद ने संबोधित किया.
प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि बीजेपी प्रवक्ता नुपर शर्मा के खिलाफ सरकार से कार्रवाई की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन को पुलिस की आपराधिक भूमिका ने हिन्दू-मुस्लिम तनाव में तब्दील कर दिया, जिसमें पुलिस भी दंगाइयों के साथ नजर आई. पुलिस ने कार्रवाई के नाम पर एकतरफा एफआईआर, गिरफ्तारियां करते हुए कथित आरोपी के नाम पर शहर भर में लगाए गए पोस्टर नागरिक अधिकारों-निजता की धज्जियां उड़ा रहे हैं. विरोध के आह्वान को तनाव का कारण बताते हुए एक समुदाय के विरोध-प्रदर्शन को आपराधिक घोषित कर लोकतांत्रिक अधिकारों को योगी सरकार बुल्डोज कर रही है.
पुलिस मनमाने तौर पर दबिश देकर वर्ग विशेष के नागरिक अधिकारों का दमन कर रही है.
कानपुर में तीन जून 2022 को घटित भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा के बयान के विरोध में कानपुर बाजार बंद की स्थानीय संगठनों द्वारा घोषणा की गई थी.
चूंकि इसी दिन शहर में माननीय राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री का कार्यक्रम था जिसमे माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश को सम्मलित होना था इसके मद्देनजर प्रशासन के साथ वार्ता में आयोजकों ने कार्यक्रम को पांच जून के लिए स्थगित कर दिया था.
किन्तु विरोध स्वरूप कुछ दुकानदारों ने दुकानें बंद रखीं क्योंकि यह शुक्रवार का दिन था दोपहर नमाज के बाद लोग वापस लौट रहे थे जिसपर चंद्रेश्वर हाता पर कहासुनी के बाद तनाव बढ़ गया.
पूरे घटनाक्रम को देखते हुए प्रथम द्रष्टया ये स्पष्ट होता है कि खुफिया तंत्र और पुलिस प्रशासन ने अपनी नाकामी को छिपाते हुए दो एफआईआर व चंदेश्वर हाते के नागरिक द्वारा एक और एफआईआर कराकर वर्ग विशेष के लोगों को नामजद कर दिया. जिसकी बिनाह पर वर्ग विशेष के लोगों की गिरफ्तारियां की जा रही हैं. साथ ही बदले की कार्रवाई के तहत गैंगेस्टर, एनएसए, बुलडोजर चलाने की धमकियां दी जा रही हैं. पूरा घटनाक्रम संदिग्ध और न्यायिक अवधारणाओं के विपरीत है इसलिए माननीय उच्च न्यायालय के सिटिंग जस्टिस की निगरानी में स्वतंत्र जांच एजेंसी की एसआईटी बनाकर निष्पक्ष विवेचना कराई जाए.
पुलिस प्रशासन कार्रवाई के नाम पर मनमाने तौर पर फ़ोटो पोस्टर, होर्डिंग के जरिए मुस्लिम वर्ग विशेष के बच्चों को अपराधी के तौर पर सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा कर दिया है. यह कृत्य नागरिकों के मौलिक अधिकार, निजता, सम्मान और कानून के विपरीत है. उनको आपराधीकृत कर बदनाम करने की साजिश है. साथ ही इसबात का खतरा है कि भीड़ तंत्र उन्हें जानमाल की क्षति मॉबलिंचिंग भी कर सकता है.
इस तरह के पोस्टर-होर्डिंग लगाने के मामलों में माननीय सर्वोच्च व माननीय उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश सरकार को लताड़ लगाते हुए इसे विधि विरुद्ध घोषित कर चुकी है. सीए/एनआरसी विरोधी आंदोलनों के मामलों से भी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. उक्त प्रस्ताव पर वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश चंद्र अग्निहोत्री, इमरान एडवोकेट, गीता सिंह, राजकुमार आदि ने सहमति देते हुए नागरिक जांच की मांग की.