लखनऊ, 31 अगस्त 2021। रिहाई मंच ने मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को किसान आंदोलन, बढ़ती बेरोज़गारी और सरकारी सम्पत्तियों को बेचने जैसे ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सत्ता का संरक्षण प्राप्त गुंडों द्वारा की जाने वाली सुनियोजित हिंसा करार दिया।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि को औचक प्रतिक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से पुलिस की मौजूदगी में अराजक तत्व हिंसा को अंजाम दे रहे हैं और उसके बाद पुलिस अपराधियों के खिलाफ ऐसी धाराओं में मुकदमा दर्ज करती है उसे समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है।
मंच अध्यक्ष ने कहा कि ऐसी घटनाओं के बाद स्वंय पीड़ितों के खिलाफ पुलिस लव जिहाद, गो तस्करी, धर्मांतरण, चोरी आदि जैसे आरोपों में मुकदमे दर्ज करती है जिससे सत्ता पक्ष की साम्प्रदायिक राजनीति के लिए खाद पानी मिले और हिंसा को स्वभाविक प्रतिक्रिया समझा जाए।
उन्होंने कानपुर में ऐसे ही अराजक तत्वों द्वारा आटो रिक्शा चालक की लिंचिंग करते हुए जय श्रीराम का नारा की बात कहते हैं और पुलिस धर्मांतरण कराने का मुकदमा दर्ज करती है। इसी तरह से मध्य प्रदेश के इंदौर में चूड़ी बेचने वाले मुसलमान की लिंचिंग की जाती है और उस पर यौन शोषण के आरोप में मुकदमा दर्ज किया जाता है तो मुज़फ्फरनगर में मुस्लिम नौजवान को लक्ष्य बनाकर भीड़ द्वारा पीटा जाता है और पुलिस उस पर बिना किसी बरामदगी के चोरी के आरोप में मुकदमा लिखती है।
ग्रेटर नोयडा से भाजपा विधायक और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह कहते हैं कि जो भारत माता की जय नहीं बोल सकता उसे देश छोड़ देना चाहिए। लिंचिंग में लिप्त अराजक तत्वों को ‘जय श्रीराम’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगवाने की प्रेरणा ऐसे ही नेताओं से मिलती है।
मुहम्मद शुऐब ने कहा कि भाजपा सरकारों में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग इस हद तक बढ़ गया है कि हरियाणा के करनाल में एक बड़ा प्रशासनिक अधिकारी पुलिस वालों को आंदोलनकारी किसानों के सीधे सिर फोड़ देने का खुला आदेश देता है।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार जन समस्याओं के समाधान में बुरी तरह नाकाम रही है। तीनों काले कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन, बेरोज़गारी, सरकारी सम्पत्तियों को पूंजीपतियों के हाथों कौड़ियों के भाव बेचने, विकास के नाम पर देश को विनाश की तरफ ले जाने जैसे ज्वलंत मुद्दों से जनता ध्यान भटकाने और आगामी विधान सभा चुनावों में पराजय से बचने के लिए साम्प्रदायिक आधार पर नई बहस छेड़ने के लिए भाजपा सरकारों की बेचैनी को समझा जा सकता है।