जो मुद्दा कोर्ट में चल रहा है जिसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है कि बनारस का मुद्दा बनारस कोर्ट में निपटाना चाहिए पर जिस तरीके से मीडिया ट्रायल हुआ और बिना जांच के फव्वारे को शिवलिंग बताया गया, और फिर कोर्ट कमिश्नर बदले गए और सनातन संघ के लोगों ने अब अपने वकील बदल दिए और इसी बीच मोहन भागवत का जो एक राष्ट्रीय समाज के नेता हैं संघ संचालक हैं उस मुद्दे पर अपना बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है उनका कोई भी वासन बिना विवादित चर्चा में आए हुए पूरा नहीं होता।
और अभी शुरुआत ज्ञानवापी मस्जिद से शुरू होकर ज्ञानवापी पर आई है धीरे-धीरे मीडिया का इतिहास बताता है कि कब वह एक धर्म स्थल परिवर्तन का रूप ले ले अतीत में भी देखा गया है और यह किसी से छुपा नहीं।
जिस मुद्दे को कोर्ट लोकल स्तर पर निपटाने की बात कर रहा है उस स्तर में आकर मोहन भागवत का यह बयान देना कि ज्ञानवापी एक इतिहास है जिसे बदला नहीं जा सकता मतलब बदलने की कोशिश में हर कोई अपना छोटा-छोटा योगदान दे रहा है।
जो बात इतिहासकार नहीं साबित कर पाए वह संघ संचालक प्रमुख मोहन भागवत अपने बयान से साबित करने की कोशिश कर रहे हैं और उनके इसी कोशिश से विवाद खड़ा हो गया है उनका गुरुवार को यह कहना की हर एक मस्जिद में शिवलिंग को क्यों देखना झगड़ा क्यों बढ़ाना वह इतिहास हमने नहीं बनाया है और ना के हिंदू और मुसलमानों ने बनाया है और फिर अगले ही पल में यह कहते हैं कि बाहर से आए हुए इस्लाम के आक्रमण द्वारा देवस्थान तोड़ गए और यह मामला हजार के तादाद में और उठते रहेंगे।
तब मोहन भागवत यही बताएं एक तरफ कहते हैं विवाद को बढ़ावा नहीं देना है और दूसरी तरफ जाएं हिंदू भाई और मुस्लिम भाई करते हैं फिर इस्लाम को टारगेट करके और उनके नाम पर अकर्मक बताना और यह भी बता देना कि ऐसे हजारों मामले हैं तो आप खुद बता दें कि आप विवाद खत्म करवा रहे हैं बढ़ा रहे हैं और खत्म करवा रहे हैं तो क्या आपने लोगों से अपील किया कि अतीत को अतीत के तरह से देखा जाए और जो आज है उसको आज की तरीके से देखा जाए और एक बेहतर भारत के कल्पना के लिए सबको योगदान देना चाहिए पर बड़े खामोशी से संघ प्रमुख मोहन भागवत विवाद को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभा जाते हैं।
उन्होंने आगे कहा, ”मुसलमानों के विरूद्ध हिंदू नहीं सोचता है. आज के मुसलमानों के पूर्वज भी हिंदू थे.
हर बार की तरह इस बार भी मोहन भागवत अपनी मीठी भाषा से कभी जहरीली बात कह जाते हैं उन्होंने कहा कि मुसलमानों के विरोध हिंदू नहीं सोचता है और आज के मुसलमान के पूर्वज भी हिंदू थे।
कभी मोहन भागवत यह भी कहते हुए नजर आए हैं कि मुसलमानों के बगैर हिंदू अधूरा है तो मोहन भागवत खुद ही एक बार फैसला कर ले। किस तरफ से हैं और उनकी बात कौन से सही मानी जाए कि मुसलमानों के पूर्वज हिंदू हैं या फिर वह बात मानी जाए कि हिंदू का वजूद मुसलमानों के बगैर नहीं। मोहन भागवत भारत के सबसे बड़े संगठन के संचालक हैं और केंद्र में और कई राज्य में सरकार उनके सहयोगी बीजेपी की है।
राष्ट्रीय सेवा संघ कभी भी कोई काम सामने से आकर नहीं करती है अगर उसको अपना सरकार चलाना है तो उसके द्वारा बनाई गई पार्टी है और कोई मुद्दा उठाना है तो कई छोटी-छोटी संगठन है जो संघ के इशारे पर आए दिन देश में विभिन्न विभिन्न स्थलों पर विवाद खड़ा करने के काम करती है।
मोहन भागवत ने ज्ञानवापी पर जो बयान दिया है उनको अपना ही बयान एक बार 2009 में एक मीडिया चैनल पर दिया गया दोबारा सुन लेना चाहिए।
जब वरिष्ठ पत्रकार ने सवाल पूछा क्या बाबरी का मुद्दा आखिरी मुद्दा है अगर यह फैसला अगर आप के हक में होता है तो क्या कोई और मुद्दा नहीं होगा तब उन्होंने कहा था कि भारत का मुसलमान दिल बड़ा करें और राम की आस्था है इसका ख्याल रखें और यह मुद्दा का समाधान हो जाता है तो इस देश का हिंदू कोई और मुद्दा खड़ा नहीं करेगा बल्कि मुसलमानों के साथ खड़ा रहेगा।
हमने 9 नवंबर को कह दिया कि एक राम जन्मभूमि का आंदोलन था, जिसमें हम सम्मिलित हुए. हमने उस काम को पूरा किया. अब हमें आंदोलन नहीं करना है. लेकिन मन में मुद्दे उठते हैं. ये किसी के विरूद्ध नहीं है. मुसमानों को विरूद्ध नहीं मानना चाहिए, हिंदुओं को भी नहीं मानना चाहिए. अच्छी बात है, ऐसा कुछ है तो आपस में मिल बैठकर सहमति से कोई रास्ता निकालें. लेकिन हर बार नहीं निकल सकता तो कोर्ट जाते हैं तो जो कोर्ट फैसला देता है उसको मानना चाहिए.”
हाला के मोहन भागवत ने यह कहा कि रोज एक मामला निकालना ठीक नहीं है उन्होंने कहा ज्ञानवापी के बारे में लोगों की श्रद्धा है परंपरा है ठीक है परंतु हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना, स्टेटमेंट अपने आप में विवादित है बात ज्ञानवापी की कर रहे हैं और बता श्रद्धा के बारे में रहे हैं और हर मस्जिद के बारे में कह रहे हैं कि शिवलिंग क्यों ढूंढना यानी अब एक मस्जिद की बात नहीं उन्होंने बातों बातों में कई मस्जिद का जिक्र कर दिया।
आर एस एस के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह के दौरान बा मोहन भागवत ने कहा हमें सब को जोड़ना है ना की जितना है।
हालांकि मोहन भागवत अपने भाषा के आखिरी के दौरान यह कहा की आपस में एकजुटता होना चाहिए एक दूसरे के दुख सुख में शामिल होना चाहिए।
आर एस एस चीफ रूस यूक्रेन युद्ध का जिक्र करते हुए कहा शक्ति उपद्रवी बनाती है, रूस के पास ताकत है इसलिए कोई उसके रोक नहीं सकता।
हालांकि भारत के ताकत के बारे में मोहन भागवत का यह बयान कुछ लोग विवादित बता रहे हैं बताया जा रहा है कि मोहन भागवत का यह बयान देना कि भारत एक संतुलित भूमिका सिर्फ इसलिए निभा रहा है क्योंकि उसके पास पर्याप्त मात्रा में शक्ति नहीं है अगर होता तो रशिया और यूक्रेन की युद्ध रोक सकता था।
जानकारों का यह कहना है कि भारत हमेशा से न्यूट्रल रहता है वह किसी के जंग में पडता नहीं है और किसी का साथ देता नहीं है पर शांति समझौते के लिए हर वक्त तैयार रहता है चाहे वह किसी के पक्ष में हो, अपनी बात खुलकर कहता है पर मोहन भागवत का यह बयान देना की पर्याप्त मात्रा में शक्ति नहीं है यह देश के डिफेंस का अपमान है इसके लिए मोहन भागवत को देश से माफी मांगनी चाहिए।
वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत के विवादित बयान पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद पर संघ संचालक मोहन भागवत के भड़काऊ भाषण को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
एमआईएम प्रमुख हैदराबाद सांसद असद ओवैसी ने कहा कि बाबरी के लिए एक आंदोलन “ऐतिहासिक कारणों से” जरूरी था.
दूसरे शब्दों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट का सम्मान नहीं किया और मस्जिद के विध्वंस में भाग लिया. क्या इसका मतलब यह है कि वे ज्ञानवापी पर भी कुछ ऐसा ही करेंगे?