Amu Aligarh News 11 नवंबरः अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र (अटलांटा, अमेरिका के निवासी) सैयद हसन कमाल के अलीगढ आगमन पर अल्लामा इकबाल की जयंती के उपलक्ष में मनाये जाने वाले उर्दू दिवस के अवसर पर एक विशेष काव्य सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन यूनिवर्सिटी गेस्ट हाउस में जनाब हसन कमाल साहब की अध्यक्षता और डॉ. शारिक अकील, सीएमओ, यूनिवर्सिटी हेल्थ सर्विस के संचालन में किया गया।
विशिष्ट अतिथि पूर्व उपकुलपति प्रोफेसर तबस्सुम शहाब ने अपने पिता स्वर्गीय श्री शहाब अशरफ की दो गजलों को आकर्षक पाठ के साथ प्रस्तुत किया। डॉ. शारिक अकील के संचालन में मुशायरा बेहद सफल रहा। उन्होंने इकबाल दिवस और उर्दू दिवस को लेकर भी अपने विचार व्यक्त किये। कुछ कवियों की कविताएँ निम्नलिखित हैंः-
अपनी जात से आगे जाना है जिसको
उसको बर्फ से पानी होना पड़ता है (मोईद रशीदी)।
तू है मगरूर तो फिर ढूंढ ही लेंगे कोई और
इश्क है, सिलसिला-इ-खत्म-इ-नुबूवत तो नहीं (बाबर इलियास)
उर्दू जिसे कहते हैं मुहब्बत की जबां है
दुनिया-इ-मुहब्बत की एहि शाह-इ-जहाँ है
उर्दू न तो हिन्दू न मुसलमां की जबां है
ये दिल की जबां, दिल की जबां, दिल की जबां है (शारिक अकील)
वो ताल्लुक जिसको दोनों ही समझते थे मजाक
इस कदर बाकायदा हो जायेगा सोचा न था (सिराज अजमली)
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाजों पे दूँ
कितनी दहलीजों पे सजदा एक पेशानी करे (महताब हैदर नकवी)
जो हो रहा है उसे देखते रहो चुप चाप
यही सुकून से जीने की एक सूरत है (गजनफर)
मुशायरे में बड़ी संख्या में शिक्षक व छात्र भी शामिल हुए।