महिलाएं मल्टीटास्कर होती हैं, वे घर को संभाल सकती हैं और बाहर का काम कर सकती है, फिर वो न्याय का अधिकार क्यों नहीं ले सकती? वे आना नहीं चाहती? या फिर उन्हें एक धक्के की ज़रूरत है, यह आवाज उनके लिए कोई और नहीं उठाएगा बल्कि उन्हें ये आवाज खुद बनना पड़ेगा।
न्यायाधीश (CJI) NV Ramanna ने इस मुद्दे को तूल देते हुए इसे लैंगिक असंतुलन को ख़त्म करने के लिए अति आवश्यक सुधार बताया। और कहा कि आपको गुस्से से चिल्लाना होगा, मांग करनी होगी कि आपको 50 फ़ीसदी आरक्षण चाहिए। यह छोटा मुद्दा नहीं है, ये हज़ारों वर्षों से दबाया हुआ मुद्दा है।
ये आपका हक़ है और ये आपके अधिकारों का मामला है। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में ये महिला जजों की एक वक्त में सबसे ज्यादा संख्या है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में कभी भी एक साथ दो से ज्यादा महिला जज नहीं रही हैं। और उन्होंने ने यह भी आश्वस्त किया कि उनका पूरा समर्थन है।
अब तक का महिलाओं का चयन supreme court:
भारत का संविधान लागू होने के बाद 26 जनवरी 1950 को जस्टिस हरिलाल कानिया देश के पहले चीफ जस्टिस बने। उनके साथ कुल पांच जजों की नियुक्ति हुई। तब से अब तक सुप्रीम कोर्ट में 256 जज नियुक्त हो चुके हैं, इनमें सिर्फ 11 जज महिला हैं।
वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट में जजों की कुल संख्या 33 है, जिनमें केवल 4 महिलाएं हैं। जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस हिमा कोहली फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जज हैं। इनमें से इंदिरा बनर्जी को छोड़ बाकी तीन महिला जजों की नियुक्ति हाल ही में की गई है।
मार्च 2021 में जस्टिस इंदु मल्होत्रा के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट में अकेली महिला जज थीं।
देश की पहली महिला CJI कब और कौन बनेगा:–
सुप्रीम कोर्ट में जज जस्टिस BV Nagratna वरिष्ठता के आधार पर 2027 में भारत की चीफ जस्टिस बन सकती हैं। उनका कार्यकाल केवल 36 दिनों का ही होगा। और उनकी नियुक्ति के लिए 2027 तक इंतजार करना होगा।
High court की स्थिति:
सबसे ज्यादा 11 महिला जज पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, देशभर के 25 हाईकोर्ट में केवल 78 महिला जज हैं। वहीं, पुरुष जजों की संख्या 1079 हैं। यानी हाईकोर्ट में केवल 7% महिला जज हैं। 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा को टॉप करने वाली फातिमा पहली महिला थीं। न्यायमूर्ति फातिमा बीबी ने 1989 में शपथ ली थी। 1959 में अन्ना चांडी केरल हाईकोर्ट की पहली महिला जज रही। और उनका कार्यकाल इस पद पर 1967 तक चला ।
न्याय पालिका में नियुक्ति और अड़चनें:
- न्यायपालिका में महिलाओं के लिए 50 फीसदी प्रतिनिधित्व का हक संविधान में संशोधन
- संसद की सीटों में महिलाओं के आरक्षण पर कानून पिछले कई दशकों से लटका हुआ है, महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को न्यायिक आदेश पारित करना पड़ सकता है।
- जज बनने के लिए वकील होना जरूरी है। फिलहाल क्लैट के तहत हो रही प्रवेश परीक्षा में कॉलेजों में महिलाओं के आरक्षण 50 फीसदी आरक्षण का कोई नियम नहीं है।
- निचली अदालतों से जजों का हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन होता है, लेकिन कॉलेजियम के तहत होने वाली जजों की सीधी नियुक्ति में महिलाओं के आरक्षण के लिए अभी तक कोई नियम या कानून नहीं।
अन्य देशों की स्तिथि:
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में स्थिति भारत से भी खराब है। अमेरिकी ज्यूडिशियरी सिस्टम 232 साल पुराना है। इन 115 जजों में केवल 5 महिलाएं हैं। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज Sandra De O’corner 1981नियुक्ति हुई थी। 9 जजों में 3 महिला जज हैं।
पाकिस्तान में भी ऐसा पहली बार होगा जब चीफ जस्टिस कोई महिला बनेगी। पाकिस्तान के निवर्तमान चीफ जस्टिस मुशीर आलम ने जस्टिस Aeysha Malik को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने की सिफारिश की है।
Aeysha Malik पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की पहली चीफ जस्टिस भी बन सकती हैं। क्योंकि उनका कार्यकाल 2031 तक सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर रहेगा।
बाकी अन्य ऐसे कई देश है जहां आरक्षण 50%तो महिलाओं को दिया गया है, पर नियुक्तियो के नाम पे जगह खाली है।
‘निष्कर्ष’ बस एक सोच:
देश की सबसे बड़ी न्याय पालिका में ही अगर महिलाओं का बराबर का योगदान नहीं होगा तो समाज और देश का स्वरूप नही बदलेगा। महिला जजों के उच्च पदों पर आने से लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
इससे महिलाओं व पुरुषों की भूमिका को लेकर दृष्टिकोण भी बदलेगा और लैंगिक रूढ़िवादिता खत्म होगी। युवा पुरुष हों या महिलाएं आपको रोल मॉडल के रूप में देख रहे हैं।
आपकी सफलता की कहानियां उन्हें प्रेरित करेंगी और हम उम्मीद करते हैं कि अधिक महिलाएं इस पेशे में शामिल होंगी और हम जल्द ही 50 प्रतिशत के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।
जनसंख्या में महिला का हिस्सा 49 फ़ीसदी है लेकिन क्या हमें उसके मुताबिक अधिकार मिले हैं? पुरुष प्रधान सोच से टक्कर लेने के लिए हमें आरक्षण की ज़रूरत पड़ेगी। वैसे भी आप अगर महिलाओं से जुड़े मामले जैसे घरेलू हिंसा, बलात्कार, तलाक़, संपत्ति के अधिकार को लें तो उन्हें महिलाएं ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाती हैं।
CJI Raman ने एक लाइन में बहुत बड़ी बात कही है… ‘दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ, तुम्हारे पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के अलावा कुछ नहीं है, इसमे संशोधन करते हुए कहा कि..
“दुनिया की महिलाएं एकजुट हो जाएं, तुम्हारे पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के अलावा कुछ नहीं है”
पूरे देश व अधीनस्थ न्यायालयों में 30 फीसदी से भी कम महिलाएं हैं। देश के 17 लाख वकीलों में से सिर्फ 15 फीसदी महिलाएं हैं और राज्यों की बार काउंसिलों में सिर्फ 2 फीसदी महिला प्रतिनिधि हैं।तो अब महिलाओं का खुद जागरूक होना बहुत जरूरी है।
“एक पुरुष तेरी आवाज़ क्यू बने,
तू खुद कर अपनी आवाज बुलंद,
बन कर न्याय की देवी,
कर तू न्याय अपने पर।”
By: Tanwi Mishra