क्या कोर्ट से इंसाफ मांगना गुनाह हो गया है- रिहाई मंच

वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लोकतांत्रिक-संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी- रिहाई मंच

लखनऊ 15 जुलाई 2022. रिहाई मंच ने वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले पर कहा कि इससे लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया कमजोर होगी. मंच ने गांधी जी के रास्ते पर चलते हुए हिमांशु कुमार द्वारा जुर्माना न देने के फैसले का स्वागत किया.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि एक तरफ भाजपा द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बना रही है और दूसरी तरफ आदिवासी हित-अधिकारों की आवाज उठा रहे हिमांशु कुमार को जेल भेजने का षडयंत्र किया जा रहा है. गांधी के देश में सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मांगने पर जुर्माना और एफआईआर सबूत है कि इंसाफ की आवाज उठाने वालों को खामोश किया जा रहा है. ठीक इसी तरह तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट के साथ किया गया. इंसाफ से आम अवाम को दूर कर उन्हें गुलाम बनाया जा रहा है. ऐसे दौर में सच और इंसाफ के लिए सच और न्याय के लिए हम लड़ते रहेंगे.

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि हिमांशु कुमार ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बलों ने तलवारों से छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासियों को मार डाला। दरिंदगी की हद की हद पार करते हुए डेढ़ साल के एक बच्चे के हाथ की उंगलियां बेरहमी से कुतर दी गयीं. इस जघन्य कांड में इंसाफ की गुहार लेकर हिमांशु सालों पहले सुप्रीम कोर्ट गए थे. होना तो यह चाहिए था कि इस मामले की जांच करवाई जाती लेकिन उल्टे याचिकाकर्ता के ऊपर 5 लाख रूपये का जुर्माना ठोंक दिया गया। इस कार्रवाई से कोर्ट क्या साबित करना चाहती है कि इंसाफ मांगना अब गुनाह हो गया है. उन्होंने कहा कि आज अगर हम जान रहे हैं कि देश में आदिवासियों के क्या हालात हैं और उनके साथ कैसा सलूक किया जा रहा है तो वो हिमांशु कुमार जैसे इंसाफ पसंद और निर्भीक कार्यकर्ताओं की वजह से.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर देश में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का दमन किया गया है. 13 साल पुरानी याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माना लगाते हुए इस बात की जांच की अनुमति दी कि कुछ लोग और संगठन कोर्ट का इस्तेमाल कथित तौर पर वामपंथी चरमपंथियों के बचाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण फैसला केवल और केवल राजनीति से प्रेरित है. जहां जांच होनी चाहिए थी कि आदिवासियों का कत्ल किसने किया वहां जांच याचिकाकर्ता की हो रही है. इस तरह के आरोप हिमांशु कुमार पर पहले भी लगाने की कोशिश हुई जिसपर तब सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा था. इस मामले के तथ्यों को खत्म करने के लिए आनन-फानन दफन की गई लाशों के हाथ काटने जैसे कृत्य करने का आरोप हिमांशु छत्तीसगढ़ पुलिस पर लगा चुके हैं. इस मामले की रिपोर्टिंग करने गए मीडिया कर्मियों से लेकर जांच एजेंसियों तक पर पुलिस ने हमला किया. याचिकाकर्ता माओवादियों से सहानुभूति रखता है कि नहीं इस बात से ज्यादा देखा यह जाना चाहिए कि शासन, प्रशासन, न्यायपालिका क्या आदिवासियों से सहानुभूति रखती है. देश के सभी आदिवासी और इंसाफ पसंद सांसदों को इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.

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