काफी लंबे समय से चल रहे बीमार जम्मू कश्मीर में हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी का 91 साल की उम्र में बीती रात को निधन हो गया l कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक के नेता उनकी मौत पर शोक जता रहे हैं l कश्मीर में लोकप्रिय रह चुके गिलानी को वहां की जनता उन्हें बाबा कहती थी l
सैयद अली शाह गिलानी श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके के निवासी थे जिनका जन्म 29 सितंबर 1929 में हुआ था l जोकि सोपोर जिले के मूल्य रूप से निवासी थे और पाकिस्तान के लाहौर से उन्होंने अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की थी l
उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1950 में की, सबसे पहले वह जमात–ए–इस्लामी कश्मीर के सदस्य बने थे पर उसके बाद उन्होंने तहरीक–ए–हुर्रियत के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना करी और वह तीन बार सोपोर के विधायक के रुप में भी नजर आ चुके हैं (1972 ,1977 और 1987) l अब तक वह एक दशक से भी अधिक समय तक जेल में अपना समय व्यतीत कर चुके हैं l
कहा जाता है कि गिलानी की एक आवाज से ही कश्मीर को बंद कर दिया जाता था, ऐसा बहुत बार हुआ है कि उनके बोलने पर कई बार कश्मीर पूरी तरह से बंद हुई है, लेकिन बहुत बार ऐसा भी समय आया है कि गिलानी के विरोध में बहुत से लोग खड़े हुए और उनको बॉयकाट किया है l
साल 2014 में गिलानी का कहना था कि जैसे उन्होंने चुनाव का बॉयकाट किया है उसी तरह कश्मीर की जनता भी चुनाव का बॉयकाट कर दें और इस में भाग ना ले, लेकिन कश्मीर की जनता ने चुनाव की जगह उनका ही बॉयकाट कर दिया l
इस दौरान जो भी व्यक्ति चुनाव में भाग ले रहा था वह सब आतंकियों द्वारा मारे गए, किंतु इसके बावजूद भी जम्मू–कश्मीर ने इतिहास रचा और 25 साल बाद वहां से 65 फ़ीसदी मतदान हुआ l
केन्दिय मंत्री फारूक अब्दुल्ला और गिलानी के पिता ने उनसे आग्रह भी किया था की वो ऐसा मार्ग चुने जो कश्मीर को और वहा के लोगो को विनाश से बचाये l
गिलानी वो सख्श है जिनको पड़ोसी देश पाकिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा था और वह भारत विरोधी बयानों के लिए बहुत सुर्खियों में आए थे l
वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे और हमेशा कश्मीर को भारत से अलग करने की ही बात करते थे l माना जाता है की उनको आतंकियों से बहुत हमदर्दी थी, इसलिए इन पर आतंकवाद को बढ़ाने का आरोप भी लगा था l
कश्मीर
गिलानी ने कहा था कि पाकिस्तान जहां जम्मू–कश्मीर के लोगों के स्वदेशी संघर्ष का समर्थन करता है, वहीं नैतिक, कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान हमारी ओर से कोई फैसला ले सकता है।
गिलानी केवल राज्य के लोगों की इच्छाओं और आकांक्षाओं के अनुसार कश्मीर मुद्दे को हल करने के उद्देश्य से एक संवाद प्रक्रिया का समर्थन करेंगे। लेकिन उनका मानना था कि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत कूटनीतिक मजबूरी के तहत शुरू होती है, और कश्मीरी भारत का दुश्मन नहीं हैं या इसके निवासियों के प्रति कोई द्वेष नहीं रखते हैं।
उन्होंने कहा कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है जिसे वे द्विपक्षीय समझ से सुलझा सकते हैं। यह 15 मिलियन लोगों के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है। हुर्रियत सैद्धांतिक रूप से बातचीत प्रक्रिया के खिलाफ नहीं है, लेकिन कश्मीरी लोगों की भागीदारी के बिना, ऐसी प्रक्रिया अतीत में निरर्थक साबित हुई है। हमें भविष्य में भी इसके फलदायी होने की कोई उम्मीद नहीं है। “उन्होंने आगे कहा, “भारत को तुरंत और बिना शर्त राजनीतिक कैदियों को रिहा करना चाहिए, और युवाओं के खिलाफ मामले वापस लेना चाहिए, जो पिछले 20 वर्षों से अदालतों में लटका हुआ हैं।
सैयद अली शाह गिलानी के कुछ कार्य हैं:
- रुदाद–ए काफास, 1993। लेखक के अपने कारावास के संस्मरण।
- नवा–यी हुर्रियत, 1994l कश्मीर मुद्दे पर पत्रों, स्तंभों और साक्षात्कारों का संग्रह।
- दीद ओ शुनीद, 2005। कश्मीर मुद्दे से संबंधित विभिन्न प्रश्नों के उत्तर पर आधारित संकलन।
- भारत के इस्तिमारि हर्बे! : कुराला गुण से जोधपुर तक!, 2006। कश्मीर की मुक्ति के लिए उनके संघर्ष के विशेष संदर्भ में आत्मकथात्मक संस्मरण।
- सदाए दर्द: मजमुवः तकरीर, 2006। कश्मीर मुद्दे पर भाषणों का संग्रह।
- मिल्लत–ए–मज़लूम, 2006। कश्मीर की स्वायत्तता और स्वतंत्रता आंदोलनों के विशेष संदर्भ में जम्मू और कश्मीर के विभिन्न मुद्दों पर लेखों और स्तंभों का संग्रह।
- सफ़र–ए–महमूद ज़िक्र–ए–मज़लूम, 2007 । कश्मीर मुद्दे से संबंधित विभिन्न प्रश्नों के उत्तर पर आधारित संकलन।
- मकतल से वाप्सी: रांची जेल के शब ओ रोज़, 2008। आत्मकथात्मक यादें।
- इक़बाल रूह–ए दिन का शानासा, 2009। मुहम्मद इकबाल के कार्यों पर अध्ययन।
- ईदैन, 2011. ईद उल फितर, ईद उल अधा और जुमे की नमाज के अवसर पर दिए गए उपदेशों का संग्रह।
- वुलर किनारे : आप बीती, 2012। आत्मकथा।
इस रिपोर्ट को लिखने वाली कृति राज सिन्हा है।