Aligarh News 13 अप्रैल 1903 मिल्लत के अज़ीम क़ायद वक़ार-उल-मुल्क़ की सदारत में अलीगढ़ की सर ज़मीन पर क्रासपेट हॉल में सर सय्यद के सियासी नज़रिए को पहली बार अमली जामा पहनाया गया और एक बड़ी तहरीक की शक्ल अख्तियार की।
आज़ाद हिंदुस्तान में कांग्रेस के ज़रिए मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों, वंचितों से किये हुए वादे कि ” मुल्क़ के मुस्तक़बिल के फैसले तुम्हारी मर्ज़ी के बिना नहीं होंगे” और दस्तूर में मिले हुक़ूक़ का सुबह शाम इस्तेहसाल होते देख ठीक 100 साल बाद 13 अप्रैल 2003 को मरहूम क़ायद मोहसिन-ए-मिल्लत सलीम पीरज़ादा ने उसी सर ज़मीन अलीगढ़ के उसी क्रासपेट हॉल से दोबारा सर सय्यद के सियासी नज़रिये को अमली जामा पहनाते हुए Parcham Party of India (PPI) की बुनियाद रखी और अवाम के सुपुर्द कर दिया ये कहते हुए कि मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों, वंचितों का महफूज़ मुस्तक़बिल इसी नज़रिये में है।
14 साला सियासी जद्दोजहद और ज़ुल्म के खिलाफ बेबाकी से आवाज़ उठाते हुए अपने अज़्म और अपने कौल कि “हिंदुस्तान की टकसाल में वो सिक्का नहीं ढला जो सलीम पीरज़ादा के ईमान को खरीद सके” पर क़ायम 12 दिसंबर 2017 को दुनिया ए फ़ानी से रुखसत हो गए । विरासत में सर सय्यद का हिमालया पहाड़ जैसा मज़बूत सियासी नज़रिया, अज़्म, अमल और इस्तेकलाल जैसे अल्फ़ाज़ों के मायने मतलब और अमल की मिसाल अवाम के हवाले कर गए।
और आज उनकी गैरमौजूदगी में 6 सालों से तहरीक धीरे धीरे महदूद वसाइल में अवाम तक नज़रिये को पहुंचाने और बअख्तेयार और बाइज़्ज़त सियासत देने की हततुल इमकान कोशिश कर रही है।
इस अपील और मोअददाबाना दरख़्वास्त के साथ कि तहरीक के पास वसायल नहीं हैं मगर हौसला और नज़रिये की मिसाल के लिए 21 साल बहुत होते हैं साथ आईये हर मुमकिन तआवून करिये। किसी भी तहरीक की क़ायमयबी अवाम की मदद और तआवुन के बगैर मुमकिन नहीं।
आप तमाम हज़रात को तहरीक की 21वी यौम ए तासीस की दिली मुबारकबाद और तहरीक के वो साथी जो दुनिया से रुखसत हो गए हैं उन सभी को खिराजे अक़ीदत अल्लाह उन सब लोगों के दरजात बुलुन्द फरमाये मग़फ़िरत फरमाये। आमीन 🤲