साहब और शिक्षक के बीच का दिलचस्प किस्सा

जब गणित के शिक्षक का वेतन रोक दिया गया था तब उनकी मदद के लिए आए थे गरीबों के बाहुबली, जनता के भगवान और मोहम्मद शहाबुद्दीन साहब।

घटना है बिहार के साहब, पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन और एक शिक्षक के बीच के कहानी उस वक्त के छात्र की जुबानी।

साहिर अहमद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखते हुए बताया कि मैं उस स्कूल का छात्र था जहां की है घटना है।

आइए जानते हैं उस वक्त आखिर क्या हुआ था, साहीर अहमद लिखते हैं।

बात बहुत पुरानी है, सन् 1997, जब मैं महेन्द्र उच्च विधालय -जिरादेई का 9वीं कक्षा का विधार्थी था उस समय एक बहुत ही अच्छे अध्यापक हुआ करते थे जो बड़ी मेहनत करते थे पढ़ाने में और अगर कोई ज़रा भी बदमाशी किया उनकी कक्षा में तो वो कम उनकी छड़ी ज़्यादा बोलती थी। उनका पुरा नाम भी पता है लेकिन बस उनका सरनेम लिख रहा हूँ जो “यादव” था।

बिहार में लालू जी की सरकार थी और सिवान में शहाबुद्दीन साहब साल भर पहले ही जो जिरादेई विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे अब सिवान ज़िला से सांसद चुन लिए गए थे। बिहार में सरकारी महकमा काम करे न करे सिवान में करना प्रारंभ कर चुका था।

एक दिन की बात है के कोई शिक्षा पदाधिकारी विधालय आये और छान-बीन करके चले गए। यादव जी उस दिन विधालय नहीं आये थे और कोई ठोस कारण या काग़ज़ भी नहीं था तो उनकी सैलरी रोक दी गई थी, कारण बताओ नोटिस के साथ।

अब यादव दी भन्नाये हुए थे, कह रहे थे के अच्छा पढ़ाने का अंजाम मिला मुझे, कुछ घंटो के लिए सिवान के अस्पताल में गया के मेरी बेटी वहाँ एडमिट थी और फिर वापस आकर कक्षा में पढ़ाया भी और मेरी ही सैलेरी रोक दी गई है।

कुछ दिन बीते तो मैंने सुझाया के अगर काम नहीं बन रहा तो क्यों नहीं समय निकाल के शहाबुद्दीन साहब से जा के मिल ले रहे हैं। वो ज़रुर कुछ करेंगे। टाल मटोल करते-करते एक दिन गए उनके गाँव मिलने। आकर बताये के बड़े समय बाद मुझे अपनी बात कहने का मौक़ा मिला और मेरी पुरी बात सुन कर उन्होंने एक पुर्ज़ा लिखकर मुझे दिया और कहा के शिक्षा विभाग में जा के दे दिजिए काम हो जाएगा।

कुछ दिन और बीते और जब सबकी सैलेरी आई तो यादव जी की सैलेरी नहीं आई। कक्षा में आके भड़क गए के किस किसने मुझे बोला था शहाबुद्दीन के पास जाने के लिए? हम लोग डरे के कहीं पिटाई नहीं हो जाए। कोई नहीं बोला तो खुद ही बताने लगे के कोई फ़ायदा नहीं हुआ शहाबुद्दीन के पास जाने का।

मैंने पुछा के क्या ये बात शहाबुद्दीन साहब को पता है के उनके लेटर के बाद भी आपकी सैलेरी नहीं आई? वो बोले उनको कौन बताने जाएगा? मैंने कहा एक दिन बस एक दिन और कभी जा के बता आईये। एक दिन सुबह-सुबह गए तो मुलाक़ात नहीं हुई।

और कोई सहायता ना देख, एक दिन फिर गए और मिल कर अपनी बात बताए। वापस आकर जो बताये वो ?

शहाबुद्दीन साहब ने कहा के आप साईड में बैठें, मैं थोड़ी देर में नहा कर टाऊन में निकलूँगा तो आप साथ चलेंगे। मेरे तो हाथ पाँव फुल गए के पता ना क्या हो लेकिन बैठ गए।

जब वो जाने लगे तो मुझको भी एक गाड़ी में सम्मान के साथ बैठाया गया और क़ाफ़िला रुका शिक्षा अधिकारी के दफ़्तर के पास।

मुझको आगे बुलाया गया और फिर शहाबुद्दीन साहब दफ़्तर में दाखिल हुए, इनको देख के अधिकारी इधर से उधर भगने लगे, जिनको चिट्टी देने को बोला गया था उनकी हाज़िरी हुई, वो हाथ जोड़े और बोलने लगे के मेरे से भुलवश हुई है क्षमा दे दें। शहाबुद्दीन साहेब ने कहा के क्षमा मेरे से नहीं इन यादव जी से माँगिये के आपके एक भुल के वज़ह से इनके छह व्यक्तियों का परिवार भुखे़ रहने लगेगा और इनके बच्चे छोटे हैं। भविष्य में ऐसी भुल ना हो जिस से मुझे चल कर आना पड़े कह कर साहेब बाहर आये। साथ मैं भी और वापस गाँव छोड़ने के लिए गाड़ी को बोल साहेब कहीं और चल दिये। मैं वापस अपनी साइकल उनके गाँव के घर के पास से लिया और विधालय आ गया।बाद में उनकी दो सैलेरी साथ आई।

मिडिया तो बस बाहुबली, गैंगस्टर आदि ईत्यादि कहता है और ये भी कहता है के सिवान में इतना कैसे वो लोकप्रिय हैं। असल वजह ऐसी उनके द्वारा किए गये कार्य भी हैं जो कोई अख़बार में नहीं छपा लेकिन लोगों के दिल पर छप गया।

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