एक तवील मुहासरे के बाद 29 मई 1453 की सुबह उस्मानी तुर्कों ने कुस्तुन्तुनिया को फ़तेह कर लिया था, पिछले 700 सालों से किये जा रहे इंतजार को 21 साला नौजवान सुल्तान मुहम्मद फ़तेह ने खत्म कर दिया था।
सुल्तान मोहम्मद फ़तेह सफेद घोड़े पर अपने वज़ीरों और सरदारों के साथ आया सोफिया (Hagia Sophia) चर्च पहुंचे। मरकज़ी दरवाजे के करीब पहुंचकर वह घोड़े से नीचे उतरे और सड़क से एक मुट्ठी धूल लेकर अपनी पगड़ी पर डाल दी। उनके साथियों की आंखों से आँसू बहने लगे। 700 सालों की मुसलसल कोशिशों के बाद मुसलमान आखिरकार कुस्तुनतुनिया फतह कर चुके थे।
कुस्तुनतुनिया की फ़तेह सिर्फ एक शहर पर एक बादशाह की हुक्मरानी का खात्मा और दूसरे की हुक्मरानी का आगाज़ नहीं था। इस वाक्ये के साथ ही दुनिया की तारिख का एक अध्याय खत्म हुआ था तो दूसरे का आगाज़ हुआ था। एक तरफ 27 ईसा पूर्व में कायम हुआ रोमन byzantine empire 1480 साल तक किसी न किसी रूप में बने रहने के बाद अपने अंजाम तक पहुंचा।
तो दूसरी ओर सल्तनते उस्मानिया ने अपने बुलंदियों को छुआ और वह अगली चार सदियों तक तक तीन बार्रेअज़ामों (Continents), एशिया, यूरोप और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर बड़ी शान से हुकूमत करती रही, 1453 ही वो साल था जिसे मध्यकाल के अंत और नए दौर की शुरुआत का आगाज़ माना जाता है।
सिर्फ यही नहीं बल्कि कुस्तुनतुनिया की फ़तेह को फौजी तारीख का एक मील का पत्थर भी माना जाता है क्योंकि उसके बाद ये साबित हो गया कि अब बारूद के इस्तेमाल और बड़ी तोपों की गोलाबारी के बाद दीवारें किसी शहर की हिफाज़त के लिए काफी नहीं हैं।
फिर भी 29 मई की सुबह सुल्तान को जो शहर नज़र आया था, ये वो शहर नहीं था जिसकी शानो शौकत के अफसाने उन्होंने बचपन से सुन रखे थे।
तवील अरसे से ज़वाल के बाद बांजिटिनी सल्तनत अपनी आखिरी सांसे ले रही थी और कुस्तुनतिया जो सदियों तक दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे मालदार शहर रहा था, अब उसकी आबादी सिकुड़ कर चंद हज़ार रह गई थी, और शहर के कई हिस्से वीरानी के कारण एक दूसरे से कटकर अलग-अलग गांवों में तब्दील हो गए थे।
शहर फतह करने के बाद सुल्तान ने अपनी दारुलहकूमत एड्रिन से कस्तुनतुनिया शिफ्ट कर ली और कैसर-ए-रोम का लक़ब भी इख्तियार कर लिया। आने वाले दशकों में इस शहर ने वो उरूज देखा जिसने एक बार फिर कदीम ज़माने की यादें ताजा करा दीं।