हसरत मोहानी की पढ़ाई मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज से हुई जो बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में तब्दील हो गया।
स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल होने के जुर्म में मोहनी को 1903 में अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया, उस वक़्त नेताओं को आम कैदियों की तरह जेल में सजा दी जाती थी।
हसरत मोहानी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे अंग्रेजों के खिलाफ 1925 कानपुर में जब पार्टी की स्थापना हुई तो फिर से मोहनी को फिर से जेल में डाल दिया गया। 1947 तक कई बार जेल जाना पड़ा जिसकी वजह से इनकी माली हालत खराब हो गयी थी।
लेकिन जब देश आजाद हुआ तो मोहनी ने हिंदुस्तान को चुना और उन्होंने सरकारी सुविधा और आवास लेने से भी इंकार कर दिया यहां तक कि खुद के खर्चे से संसद जाते थे।
“इंकेलाब ज़िंदाबाद” का नारा मोहनी ने ही दिया था जिसे शहीद भगत सिंह ने हमेशा के लिए अमर कर दिया। भगत सिंह ने जब असेम्बली में बम फोड़ा तब भी “इन्क़लाब ज़िंदाबाद” का नारा बुलंद किया और जब भगत सिंह को फांसी पर लटकाया गया तब भी उनकी आख़री आवाज़ यही थी “इन्क़लाब ज़िंदाबाद”।
भगत सिंह ने ये नारा इतनी ज़ोर से लगाया था की उनकी आख़री आवाज़ लाहौर सेंट्रल जेल के बाहर तक कालोनियों में गूंज उठी और आने वाली नस्लों को बता गयी जब भी क़ौम पर ज़ुल्म होगा देश की हर अवाम इसी इंकेलाब ज़िंदाबाद के नारे के साथ क़ुर्बानी के लिए तैयार रहेगी लेकिन ज़ुल्म बर्दाश्त नही करेगी.