क्या है इतिहास लद्दाख के उस सरहद का जिसे मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने खिंचा था जिस पर अब चीन अपना हक़ जता रहा है।
मुग़ल सल्तनत में ये जगह लद्दाख के नामग्याल राजवंश का हिस्सा था जो बाल्टिस्तान से लेकर नेपाल तक फैला हुआ था।
1682 में तिब्बत के 5 वें दलाई लामा ने मंगोल गलदान बोसुग्तु खान के साथ मिलकर लद्दाख़ पर हमला कर दिया था। नामग्याल राजवंश उस वक़्त स्वतंत्र राज्य था मुग़लों के अधीन नही था। लेकिन मंगोल और दलाई लामा की गठबंधन सेना के हमले से बचने के लिए नामग्याल ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब से मदद मांगी।
औरंगजेब ने देलेक नामग्याल की मदद के लिए कश्मीर के मुगल गवर्नर इब्राहिम खान को भेजा। मुग़ल सेना ने तिब्बत और मंगोल सेना को जंग में हराकर वापस लद्दाख की सीमा से बाहर किया।
इस जंग के बाद देलेक नामग्याल श्रधांजलि के रूप में लद्दाख़ में एक मस्ज़िद की तामीर करवाई और अपना समर्थन मुग़लों को देते हुए राज्य की सुरक्षा लिए लद्दाख़ को मुग़लो के अधीन कर दिया और लद्दाख हिंदुस्तान का हिस्सा बन गया।
मुग़ल सल्तनत में खींची गई सरहद की वो लकीर 1962 तक कायम थी लेकिन इंडो चाइना युद्ध मे चीन ने भारत के काफी हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया उसके बाद भी चीन अपनी विस्तारवादी नीति के लिए भारत के हिस्से को अपना बताता रहता है।
जंग के बाद राजा नामग्याल द्वारा बनाई गयी लेह की जामा मस्ज़िद आज भी कायम है और उस दौर के इतिहास की गवाह है।
इसकी जानकारी फेसबुक मुगल सल्तनत पेज से ली गई है. hindrashtra इसके सही और गलत होने की पुष्टि नहीं करता.