शिक्षा| कोरोना के भीषण संकट के बीच जहां देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है लोग बेरोजगारी से प्रताड़ित है। वहीं देश की शिक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई है। लम्बे समय से बन्द स्कूल और कॉलेजों ने बच्चों की प्रयोगात्मक शैली को प्रभावित किया है और अब वह ऑनलाइन क्लासेस तो करते हैं लेकिन वह अपने मस्तिष्क से ज्यादा गूगल पर निर्भर हो गए हैं। वहीं जब हम बात प्री से लेकर चौथी क्लास के बच्चों की करे तो कहना ही क्या।
इन बच्चों की स्थिति इतनीं दयनीय है की यह न तो अपने टीचर से सवाल कर पाते हैं और न ही उनके सवालों का सुचारू जवाब दे पाते हैं। व्हाट्सप्प की पढ़ाई उन्हें लिखना भरपूर सिखा देती है लेकिन उनको उस लिखे कथन को समझना अत्यधिक कठिन होता है। उदाहरण के तौर पर कोविड ने बच्चों की शिक्षा का दायरा इतना सीमित कर दिया है की उन्हें अब यह तो पता रहता है की संज्ञा को अंग्रेजी में नाउंन कहते हैं लेकिन नाउंन की पहचान क्या है वह उसे नहीं जानते।
हाल ही में अंग्रेजी माध्यम के महंगे स्कूल की ऑनलाइन क्लास का सर्व किया गया। सर्व में प्रथम क्लास को चुना। अध्यापक अंग्रेजी में कलेक्टिव नाउंन पढ़ा रही थी। उसे यह शब्द बोला और किताब की रटी रटाई डेफिनेशन बच्चे के सम्मुख पढ़ दी। बच्चों ने टीचर से कोई सवाल नहीं किया करते भी क्या छोटी क्लास के थे लेकिन इस सर्व से यह स्पष्ट था की भारत की शिक्षा अब किताब के रटे रटाए ज्ञान तक सीमित हो रही है टीचर्स ऑनलाइन क्लास के माध्यम से महज कोर्स पूरा कराने की होड़ में जुटे हैं। जिसके परिणामस्वरूप भारत मे शिक्षा का स्तर पीछे जा रहा है। बच्चे अपनी नई चीज का इनोवेशन करने से पहले ही दूसरों की चीजों को अनुसरित कर लेते हैं ।
By. Priyanshi Singh