84 वर्षीय बुजुर्ग स्टैन स्वामी अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए अदालतों से जमानत मांगते रहे ना मिल सकी लेकिन ज़िंदगी ने आज उनको अपनी क़ैद से रिहा कर दिया।
मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी (84) देश के सबसे बुजुर्ग शख़्स है जिन्हें UAPA लगा आतंकवादी बता 9 महीने से जेल में रखा गया था,आज मुंबई के एक अस्पताल में इलाज़ के दौरान उनकी म्रत्यु हो गई है,मुंबई हाइकोर्ट में आज स्वामी की जमानत याचिका पर भी सुनवाई होनी थी लेकिन आसमानी अदालत ने अपना फैसला कुछ पल में सुना दिया जिसमें फ़ैसला आया कि आज के बाद स्टैन स्वामी सिर्फ़ दिलों में रहेंगे इस फानी दुनिया में अन्याय के शोर से गूंज रही ज़मीन पर नही रह सकते।
जितने कम समय मे संविधान के निर्माताओं ने संविधान को लिख डाला उससे भी कम समय मे अदलाते फ़र्ज़ी केसों में फ़सा जेलों में रखे गये नागरिकों पर लगे आरोपों को नही पढ़ पाती है सरकार की दलीलों को सर्वोपरि रखते हुए सरकार के विरोध में हर उठने वाली आवाज़ को जेलों में सड़ा देती है,देश का संविधान देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए बना था लेकिन उसी संविधान का गला रेत कर मौत के घाट उतारा जा रहा है,कानून का गलत इस्तेमाल कर उन्ही नागरिकों को जेलों में मारा जा रहा जो उनकी देखभाल के लिए बना था।
नक्सली होने का आरोप झेल जेलों में सड़ रहे 3000 से अधिक आदिवासी पुरुष व महिलाओं को जमानत देने के लिए स्टैन स्वामी ने अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया था लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि एक दिन अदालतों में उन्हें खुद की जमानत के लिए जेल व लाइफ सपोर्ट पर रहते हुए याचिकाएं दाख़िल करने की आवश्यकता पड़ेगी, स्वामी पिछले 9 महीने से नवी मुंबई की तलोजा जेल में सरकार का दमन झेल रहे थे,कुछ महीनों पहले जेल में उनकी हालत गंभीर हुई तो अस्पताल में भर्ती कराया गया,उन्होंने अस्पताल में रहते हुए भी अदालत से जमानत देने गुहार लगाई बीमारी का हवाला दिया गया लेकिन यहां भी अदालत ने सरकारी दलीलों को आगे रखते हुए स्वामी की जमानत को जमानत देने से इंकार कर कर दिया।
इंसाफ़ ज़ालिमों की हिमायत में जायेगा,
ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा।
इस पोस्ट को लिखने वाले सोशल एक्टिविस्ट और युवा पत्रकार जाकिर अली त्यागी है।