एएमयू अब अमीरों की जागीर बन चुकी है – गरीबों के लिए दरवाज़े बंद!

एएमयू की रूह को ज़ख्म: अब यहां गरीब नहीं, सिर्फ अमीरों के बच्चे पढ़ सकते हैं” – मोहम्मद नदीम अंसारी का तल्ख बयान

एएमयू अब अमीरों की जागीर बन चुकी है – गरीबों के लिए दरवाज़े बंद!

जब उस्ताद सत्ता के दरबार में झुकते हैं, तब छात्रों पर लाठी चलती है”

बढ़ती फीस और ऐशो-आराम में डूबे चैम्बर – क्या एएमयू अपने मक़सद से भटक चुका है?

अलीगढ़, 5 अगस्त – अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष मोहम्मद नदीम अंसारी ने हालिया घटनाओं पर गहरा रोष जताते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन और कुछ फैकल्टी सदस्यों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सोशल मीडिया पर जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि एएमयू की पहचान और आत्मा को योजनाबद्ध तरीके से कुचला जा रहा है।

नदीम अंसारी ने लिखा, “कल यूनिवर्सिटी के भाइयों और बहनों को देखकर दिल बहुत उदास हुआ। जिन छात्रों ने कभी सीनियरों को चाय-नाश्ता दिया था, आज वही यूनिवर्सिटी के नए छात्रों को धक्के दे रहे हैं।“ उन्होंने कहा कि अब यूनिवर्सिटी में ऐसे लोग हावी हो गए हैं जिन्हें सिर्फ अपना ऐशो-आराम चाहिए और जो इंतजामिया से खर्चा लेकर अपने ज़मीर का सौदा कर चुके हैं।

पूर्व छात्र नेता ने सीधे तौर पर प्रोफेसरों को भी आड़े हाथों लिया। उनका कहना था कि “कुछ उस्ताद हज़रात दिल्ली के आकाओं के दरबार में अपनी टोपी गिरवी रख आए हैं और उन्हीं की मर्ज़ी से अब एएमयू के छात्रों को गुंडों से पिटवाया जा रहा है।”

गरीब छात्रों के लिए बंद होते दरवाज़े

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि एएमयू जो कभी गरीबों, मजदूरों, पिछड़े और दबे-कुचले तबकों की आशा हुआ करती थी, अब वहां कोई गरीब बच्चा दाख़िला लेने की बात तो दूर, वहां घूमने की भी नहीं सोच सकता। उन्होंने बढ़ती फीस और जीवन-यापन की लागत को गरीबों के सपनों को कुचलने वाला बताया।

“पहले सीनियर्स मिलकर किसी गरीब की फीस भर देते थे, अब तो यूनिवर्सिटी की दीवारें ही अमीरों की जागीर बनती जा रही हैं,” – अंसारी ने कहा।

“ये एएमयू है, एमिटी नहीं”

नदीम अंसारी ने वीसी से गुज़ारिश करते हुए कहा, “इस यूनिवर्सिटी को एएमयू ही रहने दें, इसे लवली प्रोफेशनल या एमिटी यूनिवर्सिटी ना बनाएं। पहले ही हमारी कौम तालीम से दूर है, अगर यही हाल रहा तो और दूर हो जाएगी।”

उन्होंने सवाल उठाया कि जब जेएनयू और बीएचयू जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं की फीस कम रखी जा सकती है, तो एएमयू में छात्रों पर इतनी आर्थिक बोझ क्यों डाला जा रहा है? क्या यह अल्पसंख्यकों को शिक्षा से दूर रखने की साज़िश है?

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यह बयान एक ऐसे समय आया है जब देशभर में शिक्षा को लेकर निजीकरण, मंहगाई और अवसरों की गैर-बराबरी पर बहस तेज़ है। एएमयू जैसे ऐतिहासिक संस्थान में इस प्रकार की स्थिति निश्चित ही चिंता का विषय है।

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