एएमयू कुलपति मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, प्रो. नाइमा खातून की नियुक्ति सही ठहराई।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रो. नाइमा खातून की नियुक्ति को दी मंजूरी

एएमयू की पहली महिला कुलपति पर उठे सवाल हुए ख़ारिज, कोर्ट के फैसले के बाद कैंपस में जश्न का माहौल

नई दिल्ली, 8 सितंबर: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रोफेसर नाइमा खातून की नियुक्ति पर लगाई गई चुनौती को पूरी तरह से खारिज कर दिया। जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की दो सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सही था।

इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही एएमयू में लंबे समय से चली आ रही अनिश्चितता खत्म हो गई और पूरे विश्वविद्यालय परिसर में राहत और खुशी का माहौल है। छात्र संगठनों से लेकर शिक्षकों तक, सभी ने इस निर्णय का स्वागत किया और इसे एएमयू के लिए गौरव का क्षण बताया।


मामला क्या था?

प्रोफेसर नाइमा खातून को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किए जाने के खिलाफ प्रोफेसर मुजफ्फर उरुज रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफ़ा ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी। उनका आरोप था कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही और प्रो. खातून को उनके पति के वोट के कारण कुलपति बनाया गया।

उस समय नाइमा खातून के पति एएमयू के कार्यवाहक कुलपति थे और निर्णायक वोट भी उन्हीं का था। याचिकाकर्ताओं ने इसे हितों का टकराव (Conflict of Interest) बताया। उनका तर्क था कि पति-पत्नी के बीच इस प्रकार का सीधा संबंध नियुक्ति प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।

लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन आरोपों को नकार दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उस निर्णय को बरकरार रखा।


सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ के समक्ष आया। सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को ध्यान से सुना, लेकिन अंततः यह माना कि नाइमा खातून की नियुक्ति प्रक्रिया विधिसम्मत और वैध रही है।

कोर्ट ने कहा कि केवल पति के निर्णायक वोट के आधार पर पूरी चयन प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। विश्वविद्यालय की चयन समिति और संबंधित निकायों ने सभी नियमों और प्रक्रियाओं का पालन किया है।

इससे पहले, 18 अगस्त को जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था। इसके बाद यह मामला जस्टिस माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली बेंच को सौंपा गया, जिसने सोमवार को अंतिम फैसला सुनाया।


एएमयू के इतिहास की पहली महिला कुलपति

प्रोफेसर नाइमा खातून का कुलपति बनना एएमयू के लिए ऐतिहासिक है। यह विश्वविद्यालय लंबे समय से भारतीय शिक्षा जगत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, लेकिन अपने 100 से अधिक वर्षों के इतिहास में कभी भी किसी महिला को शीर्ष पद पर नहीं देखा गया था।

नाइमा खातून की नियुक्ति ने न केवल विश्वविद्यालय की परंपराओं को तोड़ा, बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक मजबूत संदेश दिया। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को “ऐतिहासिक और प्रेरणादायक” कहा जा रहा है।


एएमयू समुदाय की प्रतिक्रिया

फैसले के बाद एएमयू प्रवक्ता प्रोफेसर विभा शर्मा और उमर पीरजादा ने कहा,

“आज का दिन बहुत ऐतिहासिक है। पूरी अलीगढ़ बिरादरी इस फैसले का स्वागत करती है। इससे यह साबित हो गया कि चयन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष थी।”

उन्होंने यह भी कहा कि अब विश्वविद्यालय शिक्षकों और छात्रों के हितों के लिए और बेहतर तरीके से काम करेगा। फैसले के बाद परिसर में मिठाइयां बांटी गईं और छात्रों ने इसे न्याय की जीत बताया।


याचिकाकर्ताओं के आरोप

याचिकाकर्ता प्रोफेसर मुजफ्फर उरुज रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफ़ा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि नाइमा खातून की नियुक्ति “हितों के टकराव” का मामला है। उनका दावा था कि उनके पति ने निर्णायक वोट डालकर चयन को प्रभावित किया।

हालांकि, अदालत ने माना कि पति का वोट पूरी प्रक्रिया का सिर्फ एक हिस्सा था और कुलपति नियुक्ति के लिए व्यापक परामर्श और समिति की राय ली गई थी। केवल इस आधार पर नियुक्ति को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।


महिला नेतृत्व की दिशा में बड़ा कदम

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय शिक्षा प्रणाली में महिला नेतृत्व को और प्रोत्साहन देगा। नाइमा खातून का कुलपति पद पर बने रहना यह संदेश देता है कि महिला नेतृत्व को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार किया जाना चाहिए।

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का कहना है कि यह निर्णय न केवल एएमयू बल्कि पूरे देश की विश्वविद्यालय प्रणाली के लिए मिसाल बनेगा।


कोर्ट का कानूनी आधार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि “किसी व्यक्ति की अयोग्यता केवल उसके व्यक्तिगत अधिकारों को प्रभावित नहीं करती, बल्कि उन मतदाताओं और हितधारकों के अधिकारों को भी प्रभावित करती है जिन्होंने उसे चुना या समर्थन दिया।”

यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे स्पष्ट होता है कि अदालत केवल व्यक्तिगत आरोपों के आधार पर किसी नियुक्ति को निरस्त नहीं कर सकती। इसके लिए ठोस सबूत और प्रक्रिया में गंभीर त्रुटि दिखाना जरूरी है।


एएमयू की बदलती छवि

एएमयू अक्सर अपने प्रशासनिक फैसलों और चयन प्रक्रियाओं को लेकर चर्चा में रहता है। नाइमा खातून की नियुक्ति पर शुरू में उठे सवालों ने विश्वविद्यालय की छवि को प्रभावित किया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद विश्वविद्यालय की निष्ठा और पारदर्शिता पर उठे सारे सवाल खत्म हो गए। अब उम्मीद की जा रही है कि एएमयू अपनी शैक्षणिक और शोध संबंधी उपलब्धियों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेगा।


छात्रों और शिक्षकों की उम्मीदें

एएमयू के छात्र संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया। उनका कहना है कि अब अनिश्चितता खत्म हो गई है और प्रशासनिक स्थिरता आएगी।

शिक्षकों का मानना है कि नाइमा खातून के नेतृत्व में विश्वविद्यालय नए मानदंड स्थापित करेगा। महिला नेतृत्व के कारण छात्राओं को भी ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा और विश्वविद्यालय का माहौल और सकारात्मक होगा।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल एक नियुक्ति विवाद का अंत नहीं है, बल्कि यह विश्वविद्यालयों की पारदर्शी चयन प्रक्रिया पर विश्वास को और मजबूत करता है। प्रोफेसर नाइमा खातून का एएमयू की पहली महिला कुलपति के रूप में बने रहना शिक्षा जगत में महिलाओं की भूमिका और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है।

इससे साफ है कि भारत का न्यायपालिका संस्थान शिक्षा क्षेत्र में निष्पक्षता और योग्यता को सर्वोच्च महत्व देता है।