कल्याण सिंह की सरकार गिराने वाले जगदंबिका पाल भाजपा में रहकर JPC पर चलेंज कर रहे हैं?

“वक़्फ क़ानून में गलती निकली तो इस्तीफा दे दुंगा।”

इस्तीफ़ा से याद आया। बात 21 फरवरी 1998 की है। कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।

कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में जगदंबिका पाल यातायात मंत्री हुआ करते थे। 21 फ़रवरी को मायावती ने लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया जिसमें उन्होंने कहा कि वो कल्याण सिंह सरकार को गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।

इसी रोज़ मुलायम सिंह ने भी पत्रकारों से कहा कि अगर मायावती बीजेपी की सरकार को गिराने के लिए तैयार हैं, तो वो भी पीछे नहीं हटेंगे. बिल्कुल यही हुआ और उसी रोज़ क़रीब दो बजे मायावती अपने विधायकों के साथ राजभवन पहुंच गईं. उनके साथ अजीत सिंह की भारतीय किसान कामगार पार्टी, जनता दल और लोकतांत्रिक कांग्रेस के भी विधायक थे.

राजभवन में ही मायावती ने राज्यपाल रोमेश भंडारी से अनुरोध किया कि कल्याण सिंह मंत्रिमंडल को तुरंत बर्ख़ास्त करें, क्योंकि उसने अपना बहुमत खो दिया है और उसकी जगह जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाएं. उस रोज़ मुख्यमंत्री कल्याण सिंह गोरखपुर में अपनी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. जैसे ही उन्हें ख़बर मिली कि उनको हटाने के प्रयास शुरू हो गए हैं, वो अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर पांच बजे तक लखनऊ लौट आए. उन्होंने राज्यपाल को समझाने की कोशिश की कि उन्हें विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का मौक़ा दिया जाए, लेकिन रोमेश भंडारी के सामने उनकी एक नहीं चली। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का कोई मौक़ा नहीं दिया। और उसी रात यानी 21 फ़रवरी की रात 10 बजे जगदंबिका पाल को राज्य के 17वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। जगदंबिका पाल के साथ नरेश अग्रवाल ने उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. राज्यपाल को जगदंबिका पाल को शपथ दिलाने की इतनी जल्दी थी कि राजभवन का स्टाफ़ शपथ ग्रहण समारोह के बाद राष्ट्रगान बजाना ही भूल गया.

जगदंबिका पाल पहले कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे, लेकिन फिर वो तिवारी कांग्रेस के सदस्य बन गए थे. वर्ष 1997 में उन्होंने नरेश अग्रवाल और राजीव शुक्ला के साथ मिलकर लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया था.

शपथ के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा, कोर्ट ने कल्याण सिंह के पक्ष में फैसला सुनाया और जगदंबिका पाल द्वारा ‘कब्ज़ाए’ गए मुख्यमंत्री पद को अवैध करारा दिया गया। उन्हें 31 घंटे बाद ही अवैध तरीके से कब्जाया गया मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। राजनीति में विचारधारा के ‘हृदय परिवर्तन’ होने का जगदंबिका पाल भी एक उदाहरण हैं। 1998 यूपी की भाजपा सरकार गिराने के लिए तमाम हथकंडे अपनाने वाले जगदंबिका पाल और नरेश अग्रवाल अब भाजपा में हैं।

जगदंबिका पाल ने बीते तीन लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर जीते हैं। वो वक्फ बिल के लिए बनी जेपीसी के अध्यक्ष थे। उन पर जेपीसी में शामिल विपक्षी सांसदों ने सुझाव ना मानने और मनमानी करने के आरोप भी लगाए थे। लोकसभा में जब Asaduddin Owaisi ओवैसी ने वक्फ बिल की कॉपी फाड़ी तो जगदंबिका पाल ने इसे ‘असंवैधानिक’ बताया था। मानो जैसे जगदंबिका पाल ने तमाम ज़िंदगी संविधान का ही पालन किया हो! वक्फ एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी और अंतरिम रोक के बाद जगदंबिका कह रहे हैं कि, “वक़्फ क़ानून में गलती निकली तो इस्तीफा दे दुंगा।” बात सही है! बात पर अडिग रहिएगा।

यदि अदालत ने संविधान की रोशनी में वक्फ एक्ट में खामियां निकाल दीं तब जगदंबिका पाल का इस्तीफा तय माना जाएगा?

Wasim Akram Tyagi

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