Sambhal Violence युवकों की मौत और हिंसा के लिए डीएम-एसपी पर हो कार्रवाई- रिहाई मंच

Sambhal Violence News लखनऊ 26 नवंबर 2024. रिहाई मंच ने संभल में चार मुस्लिम युवकों की मौत और हिंसा के लिए जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जिम्मेदार ठहराते हुए कार्रवाई करने की मांग की है.

Rihai Manch मंच ने कहा कि संभल में शांति और सौहार्द के माहौल को बनाए रखने में प्रशासन असफल रहा और उस पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप है. मृतकों के परिजनों का स्पष्ट आरोप है कि लड़कों की मौत पुलिस की गोली से हुई है.

sambhal jama masjid controversy रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शोएब ने कहा कि संभल मामले में सांसद जियाउर्रहमान पर एफआईआर ने जो कि वहां मौजूद नहीं थे साफ कर दिया है कि यूपी में कानून नाम की कोई चीज नहीं बची है. एडवोकेट जफर अली को मीडिया से बात करने के बाद पुलिस ने उठाकर आवाज को दबाने की कोशिश की. आजाद समाज पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को सम्भल जाने से रोकना या फिर सामाजिक-राजनीतिक लोगों को संभल न आने देना सच को छुपाने की कोशिश है. इस मामले में याचिकाकर्ता, सर्वे टीम की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए.

sambhal jama masjid case जिस तरह से बहराइच में स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया कि भाजपा की शह पर साजिश रची गई ठीक इस मामले में भी यही आएगा. तीन हजार से अधिक लोगों पर एफआईआर दर्ज करने वाली पुलिस बताए कि सर्वे टीम के साथ नारा लगाने वालों पर क्या एफआईआर हुई अगर नहीं तो क्यों नहीं. वीडियो फुटेज के आधार पर कार्रवाई की बात करने वाले प्रशासन को बताना चाहिए कि पुलिस द्वारा गोली चलाने और पत्थरबाजी वाले वीडियो पर क्या कार्रवाई की, क्या उन पर भी रासुका लगेगी.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि इतनी बड़ी हिंसा के बाद संभल के एसपी जिस तरह से हंस-हंसकर प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे वो बेहद शर्मनाक है. इस तरह के असंवेदनशील और गैरजिम्मेदार अधिकारियों का पद पर बने रहना राष्ट्रहित में नहीं है. जिस तरह कार्रवाई की वह बात कर रहे और मीडिया में आ रहा है कि घरों में घुसकर पुलिस ने तोड़फोड़ किया ऐसे में फर्जी एफआईआर, गिरफ्तारी और दबिश के नाम पर उत्पीड़न किया जा रहा है.

हिंसा में मारे गए युवकों के परिजनों के आरोपों को देखा जाए तो पुलिस द्वारा यह टारगेट किलिंग का मामला है. पुलिस यह कहकर नहीं बच सकती कि उसने गोली नहीं चलाई क्योंकि कई वायरल वीडियो में गोली ही नहीं पत्थरबाजी करती भी पुलिस नजर आई. इससे पहले भी 2 अप्रैल 2018 को दलित समाज द्वारा किए गए भारत बंद, 19-20 दिसंबर 2019 को हुए नागरिकता आंदोलन और किसान आंदोलन के दौरान भाजपा राज में गोलियों से आमजन मारे गए.

पूरे मामले में पुलिस की भूमिका को देखते हुए आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता कि पुलिस ने प्राइवेट हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया. सम्भल हो या उपचुनाव, जिस तरह से पुलिस ने महिलाओं तक पर असलहा ताना उसने यूपी पुलिस की मानसिकता को उजागर कर दिया है.

पुलिस का कहना है कि उसने आंसू गैस और लाठियों का प्रयोग किया. गोली चलाने के आदेश के बिना अगर डीएम, एसपी की संभल में मौजूदगी में पुलिस गोलियां चला रही है तो स्पष्ट है कि आला अधिकारियों से उनकी पुलिस ही नहीं संभल रही.

अगर ऐसा रहता तो उनपर कार्रवाई होती लेकिन ऐसा बिल्कुल न होना स्पष्ट करता है कि उन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त है. 19 नवंबर 2024 को देर शाम सर्वे और 24 की सुबह अलग-अलग गलियों से नारेबाजी करते हुए सर्वे टीम के आने के आरोपों को देखते हुए जिलाधिकारी की भूमिका पर भी सवाल उठता है. वहीं इतने संवेदनशील मुद्दे पर पीस कमेटी, दोनों समुदायों और शहर के संभ्रांत व्यक्तियों को दरकिनार करना कहीं से भी उचित नहीं था.

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