CBI Special Court ने सुनाया फैसला 10 आरोपियों को मिली सजा।
यूपी पुलिस के बहादुर जवान जब अपने सीओ जिया उल हक की जान भीड़ से नहीं बचा पाए
कुंडा के बाहुबली विधायक राजा भैया को मिली राहत. था आरोप पर हो गए बरी।
CBI के विशेष जज धीरेंद्र कुमार ने फुलचंद्र यादव, पवन यादव, मंजीत यादव, घनश्याम सरोज, रामलखन गौतम, छोटे लाल यादव, राम आसरे, मुन्ना पटेल, शिवराम पासी और जगत बहादुर पटेल उर्फ बुल्ले पटेल को यह सजा सुनाई।
DSP Ziaul Haq के हत्या करने वाले के10 में से हर दोषी पर 19 हजार पांच सौ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माने की कुल राशि 195000 रुपये में से आधी रकम डीएसपी जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद को मिलेगी।
CBI Special Court ने इन 10 सभी को भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 149, 323, 353, 332, 302 एवं शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दंगा करने, लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन से रोकने, उन पर हमला करने एवं उनकी हत्या करने के अपराध में 5 अक्तूबर को दोषी ठहराया थथा।
हत्याकांड के एक अन्य आरोपी सुधीर को साक्ष्य के अभाव में पहले ही बरी किया जा चुका है।इस चर्चित मामले में हक की हत्या का आरोप पहले कुंडा के बाहुबली विधायक और मंत्री रघुराज प्रताप उर्फ राजा भैया पर लगा था। तब राज्य में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार थी और राजा भैया मंत्री थे।
हत्या का आरोप लगने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि जांच के दौरान ही सीबीआई ने राजा भैया को क्लीन चिट दे दी थी।
मामले की केस डायरी के अनुसार, 2 मार्च, 2013 की शाम साढ़े सात बजे जमीन विवाद के चलते प्रतापगढ़ के कुंडा के बलीपुर गांव के प्रधान नन्हें यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटना की सूचना पर प्रधान नन्हें यादव के समर्थक बड़ी संख्या में हथियारों से लैस होकर बलीपुर पहुंच गए थे और कामता पाल के घर को आग के हवाले कर दिया।
इसकी जानकारी मिलने पर तत्कालीन सीओ कुंडा Zia Ul Haq, हाथीगवां थाना प्रभारी मनोज कुमार शुक्ला और कुंडा थाना प्रभारी सर्वेश मिश्र पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंचे।
भीड़ ने पुलिस को घेर लिया, DSP Zia Ul Haq को छोड़कर सारे पुलिसकर्मी भाग गए। वहीं, भीड़ को समझा रहे सीओ से झड़प में प्रधान नन्हें यादव के छोटे भाई सुरेश यादव की गोली लगने से मौत हो गई। इसके बाद भीड़ ने सीओ जियाउल हक की पिटाई के बाद गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
देवरिया जनपद के नूनखार टोला जुआफर के रहने वाले सीओ जिया उल हक को 2012 में कुंडा सर्किल की जिम्मेदारी मिली थी। सीओ की हत्या में प्रधान नन्हें सिंह के बेटे योगेंद्र उर्फ बबलू व भाई पवन, फूलचंद्र और गार्ड मंजीत को मुख्य आरोपी बनाया गया था।
DSP Zia Ul Haq का शव खड़ंजे पर मिला था।
पुलिस ने रात 11 बजे अपने सीओ की तलाश शुरू की तो उनका शव प्रधान के घर के पीछे खड़ंजे पर पड़ा मिला। तिहरे हत्याकांड को लेकर कुल तीन एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
पहली रिपोर्ट थाना प्रभारी मनोज शुक्ला ने प्रधान नन्हें यादव के भाईयों और बेटे समेत 10 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई। वहीं, प्रधान और सुरेश की हत्या को लेकर भी रिपोर्ट दर्ज हुई थी। सीओ की पत्नी परवीन आजाद ने इस मामले में आखिरी एफआईआर दर्ज कराई थी।
DSP Zia Ul Haq घटना के कुछ दिन बाद ही सरकार पर निष्पक्ष जांच का दबाव पड़ने लगा था। इसे देखते हुए सपा सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।
CBI ने आठ मार्च, 2013 को मामला दर्ज किया कर विवेचना शुरू की थी। इस मामले में सीबीआई ने सबसे पहले अप्रैल, 2013 में पवन यादव, फुलचंद्र, मंजीत यादव और नन्हें यादव के किशोर बेटे को गिरफ्तार किया था।
डीएसपी जिया उल हक हत्याकांड: राजा भईया बेटे से खार खाए बैठे थे, पिता शमसुल लगाया आरोप, कहा- वो थे साजिशकर्ता
Dsp Zia ul haq Murder Case: डीएसपी जिया उल हक 2013 में प्रतापगढ़ जिले में तैनात थे। जहां भीड़ ने उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस मामले में राजा भईया समेत कई लोगों के ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ था। घटना की जांच सीबीआई ने की थी। सीबीआई ने राजा भईया को बरी कर दिया था। 10 लोगों को सजा सुनाई है।
उत्तर प्रदेश प्रतापगढ़ जिले के कुंडा में तैनात रहे सीओ जिया उल हक के हत्यारों को सजा मिलने पर देवरिया जिला स्थित उनके पैतृक गांव के लोगों ने खुशी जताई है।
CO Zia Ul Haq के पिता शमसुल हक और उनकी मां हजरा खातून ने सीबीआई कोर्ट के फैसले से खुशी जाहिर की। हालांकि राजा भईया और गुलशन यादव के बरी होने का मलाल भी है। पिता शमसुल हक ने कहा कि सारी घटना राजा भईया के इशारे पर हुई थी। उन्होंने ने ही साजिश की और गुलशन यादव भी उसमें शामिल था। ऐसे में उनको सजा जरुर मिलनी चाहिए थी।
आपको बता दे समाजवादी पार्टी के जब दर्जा प्राप्त मंत्री थे राजा भैया हालांकि बाद में पार्टी से समझौता खत्म हो गया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और गुलशन यादव हालिया 2022 विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट से लड़ा था और ऐसे में एक सवाल और उठ रहा है कि समाजवादी पार्टी अपने ही सरकार के दौरान डीएसपी जिया उल हक के कातिल के साजिश करता के शक में शामिल होने वाले गुलशन यादव को टिकट क्यों दिया था क्या इसलिए कि जिया उल हक मुसलमान थे और गुलशन यादव थे और क्या मुसलमान की खून की कोई कीमत नहीं जो इस देश के लिए शहीद हो गया।
जिस तरह से बीते सालों में देखा गया है अगर यही घटना किसी अन्य समाज के अधिकारी के साथ हुई होती दूसरी तरफ सामने वाला मुस्लिम समाज से आता तो फैसला वैसे ही होते जो कभी पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी और पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ आया करते थे यह बात मैं नहीं इस देश के आवाम के जे़हन में उबल रहा है।