“राष्ट्र और समुदाय के बीच विभाजन के बाद मुस्लिम विश्वविद्यालय और भारतीय राजनीति” पर आयोजित परिचर्चा


सर सैसद अकामी में डा लारेंस गौटियर की पुस्तक पर परिचर्चा आयोजित

Amu News अलीगढ़, 24 सितंबरः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सर सैयद अकादमी में डा लारेंस गौटियर की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक “राष्ट्र और समुदाय के बीचः विभाजन के बाद मुस्लिम विश्वविद्यालय और भारतीय राजनीति” पर आयोजित परिचर्चा के दौरान विभिन्न विषयों से जुड़े प्रख्यात विद्वानों और शिक्षाविदों ने समुदाय, राष्ट्र, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, राजनीति में विश्वविद्यालयों की भूमिका, मुस्लिम पहचान और ‘मुस्लिम विश्वविद्यालय’ के विकास के बीच जटिल संबंधों पर चर्चा की।

अलीगढ़ सोसायटी ऑफ हिस्ट्री एंड आर्कियोलॉजी (aligarh society of history and archeology) के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में लेखक डॉ. लारेंस गौटियर भी शामिल हुईं। परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए एएमयू के इतिहास विभाग के सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी में प्रोफेसर एमेरिटस प्रख्यात

इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब (AMU Historian Emeritus Professor Irfan Habib) ने कहा कि विभाजन के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (aligarh muslim university) की रक्षा कुमाऊं रेजिमेंट द्वारा की गई थी, जिसे सरदार पटेल ने गृह मंत्री के रूप में तैनात किया था। उस समय विश्वविद्यालय के सामने वित्तीय समस्या थी, प्रशासन पर भारी दबाव था लेकिन 1951 के विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत तत्कालीन सरकार और देश के नेतृत्व ने पूरी जिम्मेदारी ली। मौलाना आजाद यहां आए और हर प्रकार के सहयोग और सहायता का आश्वासन दिया।
विभाजन के समय की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1947-48 के दौरान अलीगढ़ में एक भी सांप्रदायिक घटना नहीं हुई।” “मैंने 1947 में हाई स्कूल पास किया और जैसे ही विभाजन नजदीक आया, कुछ शिक्षक, कर्मचारी और छात्र एएमयू छोड़ रहे थे, लेकिन कक्षाओं में पूरी उपस्थिति होती थी। जब एक शिक्षक जाता था, तो अगले दिन दूसरा शिक्षक कक्षा लेता था, जिसकी मैं आज भी प्रशंसा करता हूं। इसलिए इन सभी गड़बड़ियों और उथल-पुथल के बावजूद, परिसर में पढ़ाई जारी रही और उपस्थिति में कोई रियायत नहीं दी गई।

(AMU Muslim University) विश्वविद्यालय के सुचारु रूप से चलने का सारा श्रेय पंडित नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आजाद और निश्चित रूप से स्थानीय नेतृत्व को जाता है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि आजकल कक्षाएं बिना किसी कारण के छोड़ दी जाती हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, एएमयू की कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून (amu vc prof. naima khatoon) ने कहा कि हालांकि एएमयू और जामिया द्वारा की गई उपलब्धियों और शैक्षणिक परिवर्तनों पर केंद्रित कई किताबें, मोनोग्राफ और लेख प्रकाशित हुए हैं, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित दो विश्वविद्यालयों और विभाजन के बाद भारतीय राजनीति के बीच जटिल संबंधों को तलाशने का एक कठोर प्रयास अभी भी हमारे सामने नहीं आया है। लारेंस गौटियर ने जो छूट गया था, उसे पूरा करने की कोशिश की है। वह राष्ट्र और समुदाय के बीच बातचीत के लिए एक केंद्रीय मंच के रूप में एएमयू और जामिया की भूमिका को बहुत ही समझदारी से बताती हैं।

Vice Chancellor Professor Naima Khatoon Gulrez प्रोफेसर खातून ने डॉ. गौटियर की सराहना करते हुए कहा कि पुस्तक में दावा किया गया है कि इन संस्थानों ने बिना किसी सार्वजनिक नोटिस के केंद्र सरकार और मुसलमानों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम किया, क्योंकि देश भर में एक मजबूत मुस्लिम राजनीतिक दल का अस्तित्व नहीं था।
उन्होंने कहा कि गौटियर मुस्लिम पहचान की खोज और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में इसकी भूमिका के बारे में उचित समझ प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि सर सैयद अध्ययन के प्रसिद्ध विद्वान डेविड लेलवील्ड ने भी लोकतंत्र के सार के रूप में बहुलवाद को संरक्षित करने के लिए एएमयू और जामिया की सही प्रशंसा की है। साक्ष्यों के साथ एक बेहद पठनीय गद्य में, गौटियर यह दिखाने का प्रयास करती हैं कि मुसलमान, अपने खराब शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के बावजूद, भारत के गौरवशाली और सक्रिय नागरिक हैं, और साथ ही वे इस्लाम की ऐतिहासिक और प्राचीन विरासत को आगे बढ़ाते हैं।
कुलपति ने विभिन्न विषयों से संबंधित प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा प्रकाशित मौलिक पुस्तकों पर चर्चा आयोजित करने के लिए सर सैयद अकादमी की पहल की भी सराहना की।
लेखक डॉ. लॉरेंस गौटियर ने पुस्तक की सामग्री पर चर्चा की और इस धारणा को नकार दिया कि यह जामिया और एएमयू के बीच तुलना है। उन्होंने कहा कि पुस्तक को विभिन्न तरीकों से पढ़ा जा सकता है और मेरा मानना है कि ज्ञान उत्पादन को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि पुस्तक में यह भी समझने की कोशिश की गयी है कि ये दो संस्थान, एएमयू और जामिया राष्ट्र निर्माण में क्या भूमिका निभाते हैं।

डॉ. गौटियर ने विभिन्न वक्ताओं द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर भी चर्चा की।

प्रोफेसर सैयद अली नदीम रेजावी ने अलीगढ़ सोसाइटी ऑफ हिस्ट्री एंड आर्कियोलॉजी के इतिहास पर प्रकाश डाला और पिछले कुछ वर्षों में इसके योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने डॉ. गौटियर की पुस्तक पर एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया। उन्होंने उनकी विद्वेता की प्रशंसा की लेकिन यह भी बताया कि यह पुस्तक जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रति झुकाव को दर्शाती है। वह दृष्टिकोण से भी असहमत थे जामिया एक प्रगतिशील संस्थान प्रतीत होता है जबकि एएमयू एक प्रतिगामी संस्थान। वह इस बात से भी असहमत थे कि जैसे-जैसे एएमयू के शिक्षक जामिया में शामिल होने लगे, यह भी प्रतिगामी होने लगा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फरहत हसन इस बात से असहमत थे कि यह किताब जामिया और अलीगढ़ के बारे में है, बल्कि उन्होंने कहा कि इसे अकादमिक नजरिए से देखा जाना चाहिए। प्रोफेसर हसन ने कहा कि किताब में दिए गए विवरण को लेकर अलीगढ़ और जामिया के बीच तनातनी की लड़ाई अनावश्यक है। यह पूरी तरह से अनुभवजन्य शोध पर आधारित एक अकादमिक कार्य है। उन्होंने पुस्तक में अपनाए गए दृष्टिकोण और मौखिक परंपरा और प्राथमिक स्रोतों के उपयोग से निकाले गए निष्कर्षों की सराहना की। परन्तु उन्होंने किताब से उभरते हुए नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से आसहमति जताई।
सर सैयद अकादमी के निदेशक प्रोफेसर शाफे किदवई ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अलीगढ़ के इतिहास की एक महत्वपूर्ण एवं आकादमिक चर्चा है। यह एक ऐसी पुस्तक है जो इतिहास की कालानुक्रमिक तस्वीर प्रस्तुत नहीं करती बल्कि इतिहास का एक विचारशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। उन्होंने कार्यक्रम में आये विशिष्ट वक्ताओं एवं अतिथियों का स्वागत भी किया।
प्रोफेसर नईमा खातून ने अन्य गणमान्य गतिविधियों व्यक्तियों के साथ पुस्तक का विमोचन किया।
डॉ. मोहम्मद शाहिद ने धन्यवाद ज्ञापित किया, जबकि संचालन सैयद हुसैन हैदर ने किया।

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